चंचल
निर्मल वर्मा का नाम ही इतना मुकम्मिल और मकबूल है कि उनके नाम के साथ साहित्यकार , उपन्यासकार , कहानी लेखक वगैरह बताना गैर जरूरी लगता है .सुननेवाला समझ जाता है कि किस निर्मल वर्मा की बात हो रही है .ज्ञानपीठ , और साहित्य अकादमी पुरष्कार व पद्मभूषण अलंकरण से नवाजे जा चुके निर्मल वर्मा का आज जन्म दिन है . 3 अप्रैल .आज हम उन्हें महज इसलिए नही याद करने बैठे हैं कि वे कितने बड़े लेखक थे या अदब की दुनिया मे वे किस मुकाम पर थे , उनके साथ जो पल , दिन या सांझें साथ गुजरी हैं उसे याद किया जाय .
वर्ष 1982 के आस पास हम दिल्ली पहुंच चुके थे और बंगाली मार्केट के पीछे , रेलवे लाइन के उस पर महावत खां रोड पर बहैसियत एक किराएदार रह रहा था .सांझ बंगाली मार्केट में जी गुजरती .बंगाली मार्केट में जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी का एक गेस्ट हाउस है , गोमती गेस्ट हाउस .उन दिनों उसमे कवि पंकज सिंह रह रहे थे .उसी गेस्ट हाउस में मशहूर रंगकर्मी भानु भारती , वगैरह रह रहे थे . शाम वही से शुरू होती .इस कम्पनी में अक्सर निर्मल वर्मा जी आ पहुंचते .निहायत शरीफ , जहीन, कम बोलनेवाले , शांत मिजाज .हमसे कुछ ज्यादा ही नजदीकी रहती , उसकी वजह शायद एक यह भी रहा कि वे लेखक रहे , हम कलाकार .ज्यों ज्यों रात गाढ़ी होती , बहस ऊंची होती चलती बाज दफे कट्टी तक का फैसला हो जाता लेकिन दूसरे दिन फिर ढाक के तीन पात .एक दिन अनहोनी हो गयी . हैदराबाद से कवि ओम प्रकाश निर्मल आये हुए थे और उसी गोमती गेस्ट हाउस में रुके थे .ओम प्रकाश निर्मल कभी कल्पना से जुड़े हुए थे .सांझ को निर्मल वर्मा और पंकज सिंह में मामला गंभीर हो गया और पकड़ी पकड़ा की नौबत आ गयी .गालियां खूब चली .निर्मल जी घबड़ाये हुए हमसे बोले इसे खत्म कराओ वरना अनर्थ हो जाएगा .भाई भानु भारती और हमने मिल कर किसी तरह दोनो को अलग किया .मामला बाद में खुला -
पंकज सिंह ओम प्रकाश निर्मल से इस वजह से नाराज थे कि हैदराबाद के किसी कवि सम्मेलन में ओम प्रकाश निर्मल ने नागार्जुन को मंच से कविता नही पढ़ने दिया था .वजह था नागार्जुन जी की आपातकाल में ढुलमुल नीति .जेपी आंदोलन में बढ़चढ़ कर भाग लेने वाले बाबा नागार्जुन जब आपातकाल में गिरफ्तार हुए तो आंदोलन की मुखालफत में उतर आए और जेल से रिहा होने के बाद बड़ी बेतुकी बात बोल गए थे .इस घटना की जानकारी पंकज को थी और ओम प्रकाश निर्मल को देखते ही पंकज हिंसक हो गए .यह बात निर्मल वर्मा जी को बुरी लगी और वे उठ कर चले गए .कई दिन तक नही आये .दो एक बार हम उनसे मिलने उनके घर करोल बाग गए .बाद में पता चला हमारी मित्र गगन गिल निर्मल वर्मा जी से मोहब्बत करती हैं और शादी करनेवाली हैं .
गगन जी वामा पत्रिका में थी , मृणाल पांडे जी के साथ और हम अक्सर साथ साथ कैंटीन में दोपहर का खाना खाते .दीदी सुमिता चक्रवर्ती , विभा सक्सेना , गगन गिल , और हम .उन्ही दिनों दीदी सुमिता चक्रवर्ती मूर्तिशिल्प में एक प्रयोग कर रही थी .साहित्य के पात्रों को लेकर मूर्तिशिल्प गढ़ना .बहुत कमाल का प्रोजेक्ट साबित हुआ .जिन उपन्यासों के चरित्र को उठाया गया था उसमें निर्मल वर्मा जी के उपन्यास रात का रिपोर्टर भी था और यू आर अनंतमूर्ति के संस्कार की चन्द्री .वगैरह .इस प्रदर्शनी का उद्घाटन गगन जी ने निर्मल वर्मा से ही करवाया .इसी अवसर पर निर्मल जी ने रेणु के उन्यास
परती परिकथा पर बेहद खूबसूरत बयान दिया था कि रेणु ने उपन्यास विधा को किस तरह नया आयाम दिया .
सादर नमन निर्मल जी
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