डा शारिक़ अहमद ख़ान
'अपने हाथ की आस्तीं तर न कर,मेरे नाम की चूड़ियाँ पहनकर,मेरे पास मरहम-ए-इश्क़ है,जो तेरे पास ज़ख़्म-ए-जिगर भी है'.ये गुनगुनाते हुए हम आज गड़बड़झाला पहुँचे.मुग़लिया दौर में ऐसी ख़ालिस ज़नाना बाज़ार आगरे में चलन में आयी जहाँ भीड़-भड़क्के और आम लोगों से हटकर मुग़लिया हूक़ूमत के हाक़िमों के घरों की बहुएं-बेटियों और बेगमों समेत शाही घराने की ख़वातीन ख़रीददारी और तफ़रीह के लिए जातीं,उस जगह का नाम मीना बाज़ार पड़ा.जब राजधानी आगरे से दिल्ली आयी तो दिल्ली के लाल क़िले में भी मीना बाज़ार शुरू हुई.अवध के नवाब क्योंकि मुग़ल बादशाह के नायब थे लिहाज़ा उन्होंने मीना बाज़ार की तर्ज पर लखनऊ के अमीनाबाद में महिलाओं के लिए एक अलग बाज़ार की व्यवस्था की जिसे 'गड़बड़झाला बाज़ार' के नाम से जाना गया.
लेकिन मीना बाज़ार के उलट ये बाज़ार ख़ास के साथ आम महिलाओं के लिए भी थी.इस बाज़ार का नाम गड़बड़झाला पड़ने की पीछे रवायत में वजह ये है कि यहाँ उस दौर में भी डुप्लीकेट ज़ेवर सुनार बनाया करते जिसे लोग 'गड़बड़' ज़ेवर कहते.'झाला' उस जगह को कहा जाता जहाँ लकड़ी के ऊँचे खंभों पर छप्पर होता,इस वजह से इस जगह का नाम 'गड़बड़झाला' पड़ा.आज भी गड़बड़झाला बाज़ार थोड़ी तरमीम के साथ जैसी की तैसी है.गड़बड़झाला बाज़ार मॉल कल्चर से पहले का मॉल कही जा सकती है,लेकिन ये लेड़ीज़ मॉल था जहाँ महिलाओं के साज-सिंगार से संबंधित सभी चीज़ें मिलतीं.मसलन चूड़ियाँ-सुरमेदानी- काजल बिंदी कामदार जूतियाँ-कपड़े-सजावटी नक्काशीदार चीज़ें वग़ैरह.
कहाँ तक गिनाएँ.आज भी ये सब यहाँ मिलता है और आधुनिक फ़ैशन की चीज़ें भी मिलती हैं,यहाँ के सामान आधुनिक मॉल के अपेक्षाकृत सस्ते होते हैं लेकिन जो चीज़ें मॉल में नहीं मिल पातीं मसलन हाथ की कारीगरी के सामान वो यहाँ मिल जाते हैं,इस वजह से शौक़ीन लोग भी यहाँ का रूख़ करते हैं.क्योंकि हम भी शौक़ीन हैं इसलिए हम भी आज गड़बड़झाला पहुँचे और कुछ हाथ के बारीक काम की कलात्मक वस्तुएं लीं.
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