डा शारिक़ अहमद ख़ान
लखनवी बिरयानी नफ़ीस होती है,इसी वजह से लखनवी बिरयानी पर रायता फैलाने की ज़रूरत नहीं होती.जबकि देहलीवाल मतलब दिल्ली की बिरयानी लद्धड़ होती है,उसे बिना रायता फैलाए खाया नहीं जा सकता.अगर लखनवी बिरयानी में रायते की ज़रूरत पड़ जाए तो इसका मतलब ये है कि जिसने बनाया उसके हाथ में रस नहीं है और ना उसे बिरयानी बनाने या खाने का सलीक़ा मालूम है.
कहीं की भी बिरयानी का मुख्य उन्सुर मतलब तत्व है चावल और गोश्त.बिरयानी ना बिना चावल बन सकती है ना बिना गोश्त.शाकाहारी बिरयानी जैसी कोई चीज़ नहीं होती,'दिल को बहलाने का ग़ालिब ये ख़्याल अच्छा है '.बहरहाल,चावल को सैकड़ों बरसों से दिल्ली में आबाद असली दिल्लीवाले 'चावन' कहते हैं.इस वजह से बादशाह शाहजहाँ की बिरयानी में चावन होते.
लखनऊ वाले चावल को 'चावल 'ही कहते हैं,इस वजह से नवाब ग़ाज़ीउद्दीन हैदर की बिरयानी में 'चावल' होते.बंगाली चावल को 'भात' कहते हैं,इस वजह से नज़रूल की बिरयानी में भात होता,मैसूर में चावल को 'अक्की' कहते,लिहाज़ा टीपू सुल्तान की बिरयानी में अक्की होता.भोजपुरी में चावल को 'चाऊर' कहते हैं,लिहाज़ा मेरी मतलब महाबली की बिरयानी में 'चाऊर' है.तस्वीर में आज हमारे दीवान-ए-ख़ास में बनी लखनवी बिरियानी.
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