नन्दीग्राम-सिंगुर आंदोलन राजनीतिक षडयंत्र की उपज नहीं था - माले

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नन्दीग्राम-सिंगुर आंदोलन राजनीतिक षडयंत्र की उपज नहीं था - माले

लखनऊ, . भाकपा (माले) ने कहा है कि नन्दीग्राम-सिंगुर का आंदोलन किसी राजनीतिक षडयंत्र की उपज नहीं था, जैसा कि टीएमसी नेता ममता बनर्जी के हालिया आरोपों के मद्देनजर कुछ राजनीतिक टिप्पणीकारों द्वारा कहा जा रहा है. 

माले के राज्य सचिव सुधाकर यादव ने सोमवार को जारी एक बयान में कहा कि नन्दीग्राम-सिंगुर के शक्तिशाली जन आंदोलन को पश्चिम बंगाल की तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार के खिलाफ राजनीतिक षडयंत्र कहना वैसा ही है, जैसे कि मोदी सरकार वर्तमान में दिल्ली बार्डर सहित तमाम राज्यों में चल रहे किसान आंदोलन को केंद्र सरकार के खिलाफ षडयंत्र के रूप में चित्रित करती है. 

माले नेता ने कहा कि निश्चित रूप से उस आंदोलन की सबसे बड़ी राजनीतिक लाभार्थी के रूप में ममता बनर्जी और उनकी पार्टी उभरी थी, मगर इससे आंदोलन की विश्वसनीयता व प्रमाणिकता नहीं प्रभावित होती. उन्होंने कहा कि इसका कारण यह है कि नंदीग्राम में भूमि अधिग्रहण की वाम मोर्चा सरकार की योजना वास्तविक थी. वहां इसके खिलाफ जन विक्षोभ, आंदोलन व उभार वास्तविक था. वहां जनसंहार में जानें गईं थीं, यह वास्तविक था. यह भी सच है कि नंदीग्राम सामने तब आया, जब उसके पहले सिंगुर हो चुका था, जहां भूमि अधिग्रहण वास्तव में हुआ था और उसके खिलाफ चले आंदोलन पर मोर्चा सरकार का बर्बर दमन भी हुआ था.  

का. सुधाकर ने कहा कि नन्दीग्राम में माले जांच दल के सदस्य गिरफ्तार किये गए थे. सिंगुर में माले की पश्चिम बंगाल राज्य कमेटी के सदस्य कामरेड तपन आंदोलनकारियों पर पुलिस लाठीचार्ज में घायल हुए थे और उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था. इसके अलावा, नन्दीग्राम और सिंगुर में तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार के जनता के साथ उस दमनकारी वर्ताव को भी नहीं भुला जा सकता, जिसके चलते यह विद्रोह पनपा. 

माले राज्य सचिव ने कहा कि नन्दीग्राम-सिंगुर का आंदोलन कोई अलग-थलग नहीं था, बल्कि औद्योगिकरण, विकास व शहरी सुंदरीकरण के नाम पर जबरिया भूमि अधिग्रहण के हरेक मामले में, जमीन और आजीविका खोने के कारण यह जन सामान्य का आम प्रतिवाद था. उन्होंने कहा कि कारपोरेट भूमि हड़प के विरुद्ध अपनी जमीन व आजीविका बचाना हाल के किसान आंदोलनों की मुख्य प्रेरक शक्ति रही है। 

का. सुधाकर ने कहा कि यह नंदीग्राम-सिंगुर का आंदोलन ही था जिसने औपनिवेशिक काल के 1894 के भूमि अधिग्रहण कानून को समाप्त कराया. यही नहीं, जबरिया भूमि अधिग्रहण के खिलाफ संरक्षा उपायों के साथ 2013 के कानून बनने का कारण बना. इस कानून में जमीन और/या आजीविका खोने पर मुआवजे की व्यवस्था की गई. 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून को बदलने की मोदी सरकार की कोशिशों को जनप्रतिवाद के आगे मुंह की खानी पड़ी. 

माले राज्य सचिव ने कहा कि सुश्री बनर्जी द्वारा नन्दीग्राम में चुनाव प्रचार के दौरान अपनी उम्मीदवार के पक्ष में, पाला बदलकर भाजपा में गए अधिकारी परिवार पर लगाये गए नए आरोपों और जवाबी प्रत्यारोपों से उपरोक्त बुनियादी बातों पर कोई असर नहीं पड़ता है. 
 

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