हर भाषा मे गालियां सौंदर्य केंद्र होती है

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हर भाषा मे गालियां सौंदर्य केंद्र होती है

चंचल  
चू.... गाली है , होगी , लेकिन जहां गाली मानी जाती होगी वहां होगी . हिंदी पट्टी में यह दो तरह से चलती है , ताव खाएंगे तो धड़ल्ले से बोलेंगे और यही लोग जब आदर्श बघारने लगेंगे तो मुंह  ऐसे बिचकाएँगे जैसे जघन्य अपराध है ,  चूतिया बोलना . अब आइये मौजूदा मौजू पर  कि अचानक यह शब्द कैसे जोर पकड़ लिया ?  कई संभ्रांत लोंगो ने इस विषय पर लिखा , हमने पढा फिर किसी मित्र ने वह क्लिप दिखयी जिसकी वजह से यह चूतिया जेरे बहस हुआ . यकीन मानिए हम योगी जी को जितना जानते आये हैं उसमें वे एक बेढंगे , अड़ियल ,  जिद्दी और बेबाक इंसान हैं . संचय की प्रवृति नही है , केवल सांसारिक पूंजी की बात नही कर रहा हूँ ,वे अपनी भावनाओं को भी नही छुपाते साफ साफ प्रकट कर देते हैं . ऐसे लोग घातक नही  होते . खुला खेल फरुक्खाबादी . हम  भुक्तभोगी हैं . व्यक्तिगत  नही नीतिगत . एक बार हम दो जन हम और राज बब्बर गोरखपुर जा रहे थे युवाजनों के बीच सभा करने .  महंथ का बयान आया हम उन्हें गोरखपुर में बोलने नही देंगे . हमने राज से कहा देखा जाएगा बहुत दमदार लोग है जन्होने बुलाया है . वीरेंद्र शाही , फतेहबहादुर सिंह वगैरह हैं देखा जाएगा . लेकिन जीत हुई महंथ की ही . हम बे बोले निकले .  बहरहाल आइये चूतियापे पे . हमे योगी जी अच्छे लगे . दो वजहों से - एक अपने सूबे की आम भाषा मे एक भाव व्यक्त किया गया था . दूसरा - जिसके लिए चूतियापे का प्रयोग हुआ , उसके बारे में कमोबेश यही भाव हर एक के मन मे है और हम विशेष कर यही विशेषण आज की मीडिया को देते चल रहे हैं . अपने सूबे के मुख्यमंत्री ने हमारी बात अपने सहज अंदाज में किया . जिसे आपत्ति हो कृपया सामने आये और जिसके लिए यह शब्द बोला गया उसके बारे में आदि भाषा संस्कृत में बोल कर बता दें . भाषा की अपनी  रवानी होती है . आइये भाषा पर चलते हैं .  
     माजी के दो बड़े सियासतदां का जिक्र है .  एक समाजवादी नेता लोकबंधु राज नारायण और दूसरे बिहार के प्रसिद्ध नेता श्याम नंदन मिश्र . 77 में केंद्र ने मोरारजी भाई की सरकार दिया . सरकार भसकने लगी . उसके गृह मंत्री चौधरी चरण सिंह ने इंडिया गेट पर बहुत बड़ी रैली की . आयोजन में उनके तत्कालीन हनुमान  नेता राजनारायण जी थे . रैली बहुत सफल रही . लाखों की भीड़ थी लेकिन राज नारायण जी का  'गिना गिनाया 'आंकड़ा था एक करोड़ जन था . यह सूचना फोन से नेता जी श्यामनंदन बाबू को दे रहे थे . हम कई लोग नेता जी के पास बैठे थे इनमे भाई मुख्तार अनीस भी थे जिनका अभी तीन दिन पहले इंतकाल हुआ . नेता जी श्याम बाबू को समझा रहे हैं एक करोड़ का आंकड़ा -  
     - अब देखिए !  यह बात केवल हमी नही कह रहे हैं , मुख्तार अनीस का  भी  यही आंकड़ा है .  
     उधर से जो भी आवाज आई हो , हम लोग नही सुन पा रहे थे लेकिन अंदाज हो रहा था , राज नारायण जी के जवाब से - ' नही  भाई ! चूतिया नही है , मिनिस्टर हैं उत्तर प्रदेश में , गलत थोड़े ही बोलेंगे , अकेले सीतापुर से चौदह बस भर के जनता आयी है . '  
   मुख्तार भाई मुस्कुराए , हमे कुहनी मारे , चलो काम हो गया . रास्ते मे मुख्तार ने बताया अपनी भाषा मे - काम ?  सुना नही ? हमने रेडियो के मुह में एक खबर डाल  दी है - सीतापुर से मुख्तार अनीस चौदह बस लेकर आया है . अब यह रिकॉर्ड बजेगा तब तक ज  तक दूसरा न मिल जाय . वहां चूतिया किसी को भी नही अखरा , सीमा मुस्तफा जी को भी नही , जो नेता जी के इंटरवियू के लिए आई थी .  
   भाषा की सुचिता संभालने वाली सोच अंदर से बहुत कुटिल होती है . मशहूर कथाकार मंटो को बहुत भुगतना पड़ा है . बार बार उनके लिखे की वजह से अदालत तक पेशी हो जाती रही . किसी कहानी में मंटो ने  'चूची ' शब्द लिख दिया था . लाहौर की अदालत में मुकदमा हो गया . दिलचस्प मुकदमा चला . दौरान ये जिरह एक जगह प्रतिवादी वकील को मंटो ने रोका और अदालत से कहा - माननीय ! हमने एक बार चूची लिखा और बम्बई से लाहौर बुला लिया गया , और इन वकील साहब को देखिए बार बार चूची ऐसे बोल रहे है  जैसे मूंगफली फोड़ रहे  हों .' अदालत ठहाके से भर गई . इसी वकफे का अगला हिस्सा  और भी दिलचस्प है . अदालत ने मंटों को बा इज्जत बड़ी करते हुए उन्हें  शाम को अपने घर बुलाया और बताया कि हमारी बीवी आपके लिखे की दीवानी है , आपको अदालत में बुलाने के पीछे एक मंशा यह भी रही . बहरहाल . पाकिस्तान से आइये अपने मुल्क . गोरखपुर के बगल गाजीपुर में . कई बार लिखा जा चुका है , पर संक्षेप में सुन लें . गंगौली गांव से निकले राही मासूम रजा का बहुचर्चित उपन्यास है ' आधा गांव ' . गालियों से भरा पड़ा .  राजकमल  प्रकाशन की तत्कालीन मालकिन शिला संधू ने राही साहब को खत लिखा कि अगर आपने इसमे गालियां न लिखी होती तो साहित्य अकादमी का पुरष्कार आपको मिलता . राही ने बहुत माकूल जवाब दिया - शीला जी ! साहित्य अकादमी से पुरष्कार लेने के लिए हम अपने गांव के पात्रों से संस्कृत के श्लोक तो बुलवा नही सकता , पुरष्कार  मिले या न मिले . और खिसकिये बनारस आइये हिंदी के बहु पठित , बहु चर्चित कथाकार भाई काशीनाथ सिंह का मोहल्ला असी पढिये , अब तो इस पर फ़िल्म भी बन चुकी है बेलौस गालियां गलियों में खुले आम घूमती है का मजाल कि कोई चोटहिल हो जाय . और तो और अदब और नफीस सलीके का शहर  लखनऊ , यशपाल जैसा विद्रोही लेखक देता है ,  'झूठा सच '  में कांग्रेस के लिए जबरदस्त मांसाहारी गालियां हैं .  
     हर भाषा मे गालियां सौंदर्य केंद्र होती है , उसे मिटाए न .   योगी जी . अपने कार्यालय से कहें कि वह चुप रहे , सफाई न दे . आज की मीडिया वही  कर रही है जो  आपने कहा है .

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