राफेल सौदे में कमीशन नए सबूत सामने आए

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राफेल सौदे में कमीशन नए सबूत सामने आए

हिसाम सिद्दीकी 
नई दिल्ली! फ्रांस से मोदी के जरिए किए गए राफेल सौदे में दस लाख दस हजार यूरो या साढे आठ करोड़ का कमीशन एक हिन्दुस्तानी डिफेंस डीलर सुशेन गुप्ता को दिया गया. यह खुलासा तब हुआ है जब फ्रेंच एण्टीकरप्शन ब्योरो ने राफेल बनाने वाली ‘द साल्ट’ कम्पनी के खातों का आडिट किया. कांग्रेस ने इस खुलासे के बाद राफेल में कमीशन खोरी का मामला फिर से जोरदार तरीके से उठाया है. वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी और उनकी पूरी पार्टी इस मामले पर खामोश रही अकेले वजीर टेलीकम्युनिकेशन रविंशकर प्रसाद मीडिया से रूबरू हुए और इंतेहाई गुरूर के साथ बोले कि राफेल में किसी किस्म का कमीशन नहीं खाया गया है. कांग्रेस को शर्म आनी चाहिए कि वह बार-बार एक बेबुनियाद मुद्दा उठा रही है. उन्होने कहा कि फ्रांस की एक मैगजीन ने फ्रेंच एण्टी करप्शन ब्योरो की रिपोर्ट की बुनियाद पर कमीशन खाने वाले डिफेंस दलाल जिस सुशेन गुप्ता का नाम लिया है उसे 2016 में गिरफ्तार किया गया था. उस वक्त हमारी सरकार थी. रविशंकर प्रसाद ने यह दावा तो किया गुप्ता को उन्हीं की बीजेपी सरकार के जमाने में गिरफ्तार किया गया था लेकिन उन्होने यह नहीं बताया कि उसकी गिरफ्तारी किस मामले में और क्यों हुई थी. उधर ‘द साल्ट’ कम्पनी के खातों में लिखा मिला है कि ‘गिफ्ट टू क्लाइण्ट’ यह कलाइण्ट आखिर कौन है? राफेल के लिए फ्रांस के उस वक्त के सदर के साथ वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी ने सीधे बातचीत करके डील को आखिरी शक्ल दे दी थी. मोदी ने उस वक्त तो अपने डिफेंस मिनिस्टर तक को इस सौदे की भनक नहीं लगने दी थी फिर कमीशन की रकम खाने वाला यह क्लाइण्ट कौन पैदा हो गया और कहां से आया? वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी ने भले ही इस वक्त अपने गुलाम मीडिया के जरिए इस मामले को दबवा दिया है. लेकिन इस मामले से वह बच नहीं सकते हैं. आज नहीं तो कल उन्हें इसका जवाब देना ही पड़ेगा. इस जवाबदेही से वह बच नहीं सकते. दूसरी बात यह कि राफेल का ताल्लुक डिफेंस मिनिस्ट्री से है तो जवाब देने राजनाथ सिंह के बजाए रविशंकर प्रसाद क्यों आए? क्या मोदी को राजनाथ सिंह की सलाहियतों पर भी कुछ शक है? 
नए हकायक सामने आने के बाद राफेल मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जाने वाले साबिक वजीर अरूण शोरी व यशवंत सिन्हा और सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट से पूछा है कि  क्या सुप्रीम कोर्ट राफेल मामले की जांच नए सिरे से कराएगा? याद रहे कि यही तीनों लोग 2018 में राफेल का मामला सुप्रीम कोर्ट ले गए थे उस वक्त मोदी भक्त रंजन गोगोई सुप्रीम कोर्ट कें चीफ जस्टिस की हैसियत से बैठे थे. उन्होने पूरी तरह बेईमानी करते हुए नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार को क्लीन चिट दे दी थी. उस वक्त सरकार ने कहा था कि राफेल की कीमतों को आम करना एयरफोर्स के हक में मुनासिब नहीं है. इसलिए हम बंद लिफाफे में कीमतों की तफसील सुप्रीम कोर्ट को सौंप देंगे. सरकार ने यही किया और रंजन गोगोई ने उसे मंजूर कर लिया था. गोगोई ने यह कहकर मामला खारिज कर दिया था कि राफेल और उसकी कीमतों पर सीएजी की रिपोर्ट आ गई है जिसे पार्लियामेंट में भी पेश किया जा चुका है. हालांकि सीएजी रिपोर्ट आई ही नहीं थी फिर पार्लियामेंट में पेश होने का क्या मतलब? मोदी ने गोगोई के इस एहसान को चुकाया और उनके रिटायर होने के बाद उन्हें राज्य सभा में नामजद करा दिया. 
नए सबूत आने के बाद राफेल वाली कम्पनी द साल्ट ने भी पैसा दिए जाने की बात कबूल कर ली है और कहा है कि राफेल एयर क्राफ्ट बनाने के एक हिन्दुस्तानी बिचौलिए को कमीशन दिया गया जबकि कम्पनी के खातों में गिफ्ट टू क्लाइण्ट लिखा गया है. फ्रेंच एण्टी करप्शन ब्योरो के मुताबिक सत्ताइस सितम्बर 2016 के फौरन बाद ग्यारह लाख यूरो भारतीय बिचौलिए को दिया गया. 
दरअस्ल फ्रांस की न्यूज वेबसाइट मीडिया पार्ट ने राफेल पेपर्स शाया करते हुए दावा किया है कि राफेल डील में भारी करप्शन हुआ. रिपोर्ट के मुताबिक सौदे के लिए दलाल को दस लाख यूरो दिये गये और सरकार ने इस करप्शन को दफ्ना दिया. रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में सौदे पर दस्तखत हो जाने के बाद फ्रांस की एण्टी करप्शन एजेंसी एएफए को इसकी जानकारी हुई. एएफए को पता चला कि राफेल बनाने वाली कंपनी दसौ एविएशन ने एक बिचौलिए को 10 लाख यूरो देने पर रजामंदी जतायी थी. रिपोर्ट के मुताबिक अक्टूबर 2018 में फ्रांस की पब्लिक प्रोसिक्यूशन एजेंसी पीएनएफ को राफेल सौदे में गड़बड़ी के लिए अलर्ट मिला. तकरीबन उसी वक्त दासौ एविएशन के आडिट का भी हुआ. 2017 के खातों की जाँच का दौरान ‘क्लाइंट को गिफ्ट’ के नाम पर 5,08,925 यूरो के खर्च का पता लगा जिससे शक हुआ. इस पर जब वजाहत तलब की गयी तो दासौ एविएशन ने एएफए को 30 मार्च 2017 का बिल मुहैया कराया जो भारत की क्मिले ैवसनजपवद की तरफ से दिया गया था. यह बिल राफेल लड़ाकू जहाज के 50 माडल बनाने के लिए दिए आर्डर का आधे काम के लिए था. इस काम के लिए फी माडल 20, 357 यूरो के हिसाब से बिल दिया गया. ऐसे में सवाल उठा कि दासौ अपने ही हवाई जहाज का माडल किसी और से क्यों बनवायेगी और इसके लिए इतनी मोटी रकम क्यों देगी? जाहिर है, तमाम कोशिशों के बावजूद राफेल का जिन्न बार-बार बाहर आ ही जाता है. 2019 के लोकसभा एलक्शन में कांग्रेस लीडर राहुल गाँधी ने इसे बड़ा मुद्दा बनाते हुए चौकीदार चोर है जैसा कड़ा नारा भी दिया था. अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा जैसे बीजेपी के पुराने लीडरान ने भी तमाम दस्तावेजी सबूत देकर राफेल सौदे में करप्शन को लेकर मोदी को घेरा था, लेकिन पुलवामा में हुए हमले ने करप्शन के मुद्दे को पीछे कर दिया. मोदी दोबारा पीएम बन गये. ऐसे में सवाल यह है कि राफेल पेपर्स की इशाअत का क्या असर पड़ेगा. जाहिर है, यह  रिपोर्ट राहुल गाँधी के मोदी सरकार पर लगाये इल्जामात पर मुहर लगाती है लेकिन क्या फ्रांस सरकार इसकी जाँच को लेकर संजीद होगी. खासतौर पर जब फ्रांस के साबिक सदर फ्रांस्वा ओलांद ने शुरू में ही कहा था कि अनिल अंबानी को इस सौदे में शामिल करने के लिए सीधे भारत सरकार ने दबाव डाला था. बीजेपी के लिए ऐन चुनाव के बीच इस खबर का आना परेशान करने वाला है. उसे इन इल्जामात पर नये सिरे से जवाब देना होगा. उसका मसला यह है कि यह कांग्रेस पार्टी की जानिब से लगाये गये महज इल्जाम नहीं हैं. बहुत से दस्तावेज फ्रांस के सरकारी सिस्टम में इस सौदे में हुए करप्शन की गवाही दे रहे हैं.जदीद मरकज़

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