सतीश जायसवाल
स्थानीय लोगों ने फ्रांसीसी दिनों के स्ट्रैण्ड को अब अपना गंगा घाट बना लिया है. और अब यही कहते हैं.
चन्दन नगर हुगली जिले में है. और गंगा घाट के ठीक सामने, जो यहां से दिख रहा है वहाँ, से उत्तरी २४ परगना जिला लग जाता है. दिन भर घर से बाहर रहे काम-काजी लोग शाम के समय नदी पार करके अपने घरों को लौटते हैं. जैसे चिड़ियाँ अपने नीड़ों की तरफ लौटती हैं. और देर तक आकाश पर कलरव करती रहती हैं. नदी पार कराने के लिए यहां स्टीमरें चलती हैं.
रोजाना आना-जाना करने वाले लोगों के साथ मैंने भी नदी का एक फेरा लगाया. अभी तक मैं घाट से नदी को देख रहा था. अब नदी से घाट की तरफ देख रहा था. नदी पर अँधेरा उतर रहा था. और घाट की तरफ रोशनियां हो रही थीं. रोशनियां पानी में उतर रही थीं. और नाव से उतरे हुए लोग अपने-अपने घरों को जाने की जल्दी में थे. रोशनियों में उनकी ये जल्दियाँ दिख रही थीं. और रोशनियों से थोड़ा दूर होते ही वो लोग छायाओं में तब्दील हो रहे थे.
घाट पर मछलियों की एक दुकान लगी हुयी थी. और अभी-अभी नदी से निकाली गयी ताज़ी मछलियां दुकान पर मिल रही थीं. उस एक अकेली दुकान पर भीड़ थी. दिन भर के बाद घर लौट रहे अपने लोगों के लिए, वहां देहमयी बंग स्त्रियां मछली खरीद रही थीं. और दुकान की रौशनी में दूर से दिख रही थीं. मछलियां खरीदती हुयी स्त्रियों की देह गंगा के जल से छल-छल हो रही थीँ. और एक विपुल दृश्य की रचना कर रही थीं. दृश्य में संगीत की लयबद्धता थी. वह किसी संध्या राग में निबद्ध थी. और यहां तक सुनाई पड़ रही थी,जहां बैठकर हम चाय पी रहे थे.
हमने वहीं, घाट पर एक गुमटी में बैठकर चाय पी. चाय के साथ सरसों तेल के झाल वाली मूडी भी खायी. और उस संध्या राग का स्पर्श किया.
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