त्रिभुवन
नरेंद्र मोदी भारत की नई राजनीति के बिग ब्रैंड हो गए हैं. वे उस गेंद की तरह साबित हुए हैं, जिसे जितना दबाओ, दुगुना उछलती है. मैंने ऐसा पहला नेता देखा, जिसकी नीतियों से जिनका फ़ायदा हुआ, वे तो उसके गीत गा ही रहे थे, जिनके धंधे चौपट या बदतर हुए, वे भी मुखर होकर कह रहे थे , मोदी को वोट न दें तो क्या कांग्रेस को वोट दें. कुछ लोग कांग्रेस के स्थानीय नेताओं के भ्रष्टाचार की गाथाएं गा रहे थे तो कुछ का कहना था कि ग्राउंड पर कांग्रेस है ही कहाँ?
मोदी की आंधी में जब राज्यों में कांग्रेस के तम्बू बुरी तरह उखड़ गए, तब पंजाब में अमरेंद्र सिंह बड़े नायक बनकर उभरे हैं. अमरेंद्र सिंह का आत्मविश्वास ग़ज़ब का था. एकदम चट्टानी. कांग्रेस को चाहिए कि वह नरेंद्र मोदी के विकल्प के तौर पर अमरेंद्र सिंह को प्रस्तुत करे और राहुल गांधी से इस्तीफ़ा देने को कहे. अगर आप नाकाम लोगों का तिरस्कार और कामयाब लोगों का पुरस्कार नहीं करेंगे तो वही होगा, जो कांग्रेस में हो रहा है. राहुल गांधी को एक बार कांग्रेस के आधिकारिक नेतृत्व से अलग होना होगा.
नरेंद्र मोदी के बारे में एक वाट्सएप चल रहा है, जो कि इस चुनाव की राजनीतिक संवेदना को रेखांकित करता है. वह यह कि अब तक राजनीतिक विज्ञान में पढ़ा था : एमपी मिलकर पीएम बनाते हैं, लेकिन यहां तो एक पीएम ने इतने एमपी बना दिये. कुछ हद तक ये बात सही है, लेकिन ये याद रखना होगा कि मोदी लहर कुछ नहीं कर पाती अगर ज़मीन पर भाजपा का संगठन इतना मजबूत और सुसंगठित न होता. भाजपा की किलेबंदी मज़बूत थी और उसके सैनिक बहुत सन्नद्ध. इसके विपरीत कांग्रेस का संगठन ज़मीन पर एकदम ध्वस्त.साभार
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