चंचल
चुनाव विजय का दस्तावेज है , अपराजित का महिमामंडन करता बही खाता है .पराजित का जिक्र इसलिए हो जाता है कि विजयी के बहादुरी को पुख्ता किया जा सके .कई बार यह विधा ,यह बनी बनाई रूपरेखा खुद टूट गयी है और इतिहास को, पराजित को कंधे पर बिठाना पड़ा है .मसलन वाटरलू की लड़ाई देखिये , यहां नेपोलियन बोनापार्ट युद्ध मे पराजित होता है लेकिन जीता कौन ? कम लोंगो को याद है क्यों कि यहां भी इतिहास झुका है नेपोलियन की तरफ .भारत मे भी कई मिसालें हैं लेकिन सबसे चर्चित और प्रवाहित है , आचार्य नरेन्द्रदेव की हार .समाजवादी कांग्रेस से बाहर कर दिए गए , उस समय आचार्य नरेंद्र देव उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य थे , आचार्य जी ने विधान सभा की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया गो कि कांग्रेस का एक बड़ा हिस्सा आचार्य के विधानसभा से इस्तीफ़े के पक्ष में नही था जिसमे पंडित नेहरू , डाक्टर संपूर्णानंद प्रमुख थे ये लोग चाहते थे गर आचार्य नरेंद्र देव इस्तीफा दे भी देते हैं और सोशलिस्ट टिकट पर चुनाव मैदान में उतरते हैं तो कांग्रेस को उनके खिलाफ उम्मीदवार नही उतारना है .लेकिन चूंकि उत्तर प्रदेश में पंडित बालगोविंद पंत की सूबेदारी थी चुनांचे वे इस पर राजी नही हुए और कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार भी उतारा नतीजा रहा कांग्रेस जीती और आचार्य नरेंद्र देव हारे .लेकिन इतिहास है बाज दफे वक्र गति से भी चलता है .कांग्रेस के विजयी उम्मीदवार ने अपनी जीत पर पहला तमाचा पंत की के ही मुह पर मारा यह कहते हुए कि आचार्य को जीतना चाहिए था , उनके मुकाबले हम क्या हैं .कट .
एक मजाकिया वक्फे को देखिए - आपकी अदालतवाले रजत शर्मा राजेश खन्ना को अपनी अदालत तक ले जाने के लिए राजी कर लिए .उसमे हमारा भी हाथ था , क्यों कि रजत से हमारे भी रिश्ते अच्छे रहे .काका की एक खूबी थी अपने विषय की मुकम्मिल जानकारी लिए बगैर वे मैदान में उतरते नही थे .चुनांचे साहब दस दिन तक रोज तैयारी चलती रही .शाम होते ही मह तीन जन काका , हम और बीआर इशारा साहब काका की तैयारी कराते .एक सांझ हमने काका को याद दिलाया -
काका भाई ! जब आप दिल्ली का पहला चुनाव आडवाणी जी के खिलाफ लड़ा तो आडवाणी जीते, लेकिन अखबारों ने आडवाणी के जीत की खबर नही दी , सब ने लिखा 'राजेश खन्ना हारे .' बात जम गई और रजत से काका ने यह सवाल पूछ ही लिया . रजत इस सवाल के लिए तैयार नही थे .जज की कुर्सी पर बैठी थी मशहूर लेखिका और पत्रकार मृणाल पांडे .मुस्कुराई .शायद यह हिस्सा एडिट कर दिया गया है .बहरहाल .
पिछले दो महीने से हमारे गांव में चुनाव टहल रहा था .कोर्ट , सरकार , मुलाजिम हिट हुए आखिरकार तारीख भी आ गयी .चुनाव का लुबबेलबाब हिता है जीता कौन या जीतेगा कौन ? इसका वाजिब जवाब शहर में कोई विक्षिप्त देता है, जिसे कोई परवाह नही , न आगे नाथ न पीछे पगहा .और हमारे गांव में बेबाक इंसान है - अशोक कुमार अंडावाले .मनचले इन्हें अंडाकुमार भी बोलते है .
हमने पूछा कौन जीत रहा है भाई -
- आबकारी विभाग .
जारी
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