चंचल
तमीज से पेश आवो , हिटलर के कारिंदों . एक सतर में समझाओ - ' मास्क तुम्हे कॅरोना से बचायेगा , इसे अपने लिए लगाओ ' . लेकिन मास्क तुम्हारे लिए ,लूट का हथियार बन गया है . मनमानी वसूली ? बेहिसाब डंडे बाजी ? मास्क कानून का पुर्जा नही है कि वह टूट जाएगा तो निजाम खिसक जायगा , मास्क जिंदगी को सहूलियत दे रहा है . असम की महिलाओं ने किसी जमाने मे इसी तरह की बदतमीजी का जवाब दिया था , लबे सड़क नंगी हो गयी थी . तवारीख ने दर्ज कर लिया है - महिलाएं नंगी नही हुई थी , हुकूमत उघार हो गयी थी . पुलिस की वर्दी पहने कर एक मास्क के लिए पुलिसिया रंग दिखाने लगे ?
कितने का फाइन तय किया है सरकार ने ? इस जजिया टैक्स लगाने का हक इसे किसने दिया ? कमबख्त ! संविधान तो पढ़ , नियम कानून तो देख , - अवाम की हिफाजत , सुरक्षा यह सब सरकार की जवाबदेही है . जिस दिन जनता अपने पर उतर आएगी , अपने वाजिब हक और हुक़ूक़ की बात करेगी तुम्हे हर कफ़न का जवाब देना पड़ेगा . मास्क क्या है ? पांच इंच लम्बा , साढ़े तीन इंच चौड़ा कपड़े का एक टुकड़ा जिसे दो नाडा कान में लटका देते हैं . कितनी कीमत बनेगी तुगलक के वारिस ? 500 या 1000 रुपया ? किसने तय किया यह रकम ? जनसरोकार से जुड़े होते तो इसका आदर्श तरीका निकलता .
हर चौराहे पर , हर गली के मोड़ पर जहां जहां पुलिस खड़ी रहती दस बीस रुपये के हिसाब से मास्क रखे रहते . जनता खुद आकर लेती . पहनती और आगे बढ़ जाती . इससे केवल जिंदगी ही महफूज नही बनती पुलिस और अवाम के बीच एक रिश्ता बनता जो यकीनन जमराज वाला नही होता . भरोसा भी जरूरी है मास्क तरह . जाओ केरल देख लो .
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