डॉ शारिक़ अहमद ख़ान
लाल रंग का ये एपीफ़ेनी चर्च लालबाग़ लखनऊ में है.ब्रिटिश दौर में सन् 1871 के क़रीब बनना शुरू हुआ और सन् 1877 में इसकी तामीर मुकम्मल हुई.चर्च की एक ख़ासियत इसका टावर है और दूसरी सबसे बड़ी ख़ासियत जो है,वो है यहाँ के हरे-भरे परिसर के पेड़ों पर हज़ारों की संख्या में परिन्दों की रिहाइश।ये पक्षी यूँ तो यहाँ दिन भर कलरव करते रहते हैं .लेकिन दिन में दूसरे शोरों की वजह से उनकी आवाज़ मद्धम होती है.
सुबह और सूरज ढलने के आसपास हज़ारों परिन्दों की ऐसी किस्म-किस्म की आवाज़ें आती हैं जो कर्णप्रिय होती हैं,बहुत से लोगों को ये तेज़ शोर मालूम हो सकता है,लेकिन मेरे कानों को तो इस चर्च के कैंपस के पेड़ों के परिंदों का चहकना भला मालूम देता है,लिहाज़ा आज मॉर्निंग वॉक के क्रम में परिंदों की आवाज़ें सुनने के लिए एपीफ़ेनी चर्च की तरफ़ चले गए थे,तभी चर्च की ये तस्वीर भी कैमरे में क़ैद कर ली.जीसस कोरोना से धरती वासियों की रक्षा करें.
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