छिंदवाडा बार की जान थे गुलाब दादा !

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छिंदवाडा बार की जान थे गुलाब दादा !

आराधना भार्गव 
कोरोना महामारी के कारण मैं कुछ दिन छिंदवाडा अदालत नही जा पाई, इस कारण मुझे गुलाब दादा के मृत्यु का समाचार विलम्ब से मिल सका. आप सबको मैं ये बताना चाहाती हुँ कि आखिर गुलाब दादा हमारे कौन थे ? सन् 1982 में मैने वकालत पास की तथा 5 नवम्बर 1982 को मेरा गुलाब दादा से पहला परिचय हुआ, जब मुझे छिन्दवाड़ा बार में वकालत करने की रजिस्टेशन फीस उनके पास जमा करनी थी. कहने को तो वे छिन्दवाड़ा बार के कर्मचारी थे, पर उनका व्यवहार ऐसा था कि वे छिन्दवाड़ा के हर अधिवक्ता के मानो परिवार के सदस्य थे. क्या क्या गुण बताऊ मैं आपको गुलाब दादा के, वे तो गुणों के खान थे. लाईब्रेरी की जिम्मेदारी भी गुलाब दादा के पास रहती थी, और मजाल है कि एक पुस्तक लाईब्रेरी से गायब हो जाये. अगर कोई पुस्तक उन्हें दिखाई नही देती, तो वे वकीलों द्वारा न्यायायल में नज़ीर पेश करने के लिए जो पुस्तक ले जाते थे, अगर वह पुस्तक लाईब्रेरी में वापस नही आई तो न्यायाधीश से वापस लेने की हिम्मत तो सिर्फ गुलाब दादा की ही थी. अगर किसी न्यायाधीश को भी लाईब्रेरी से पुस्तक चाहिए होती थी, तो उन्हें भी दादा बिना हस्ताक्षर किये पुस्तक नही देते थे. कोई भी अधिवक्ता लाईब्रेरी से पुस्तक अपने घर नही ले जा पाता था, गुलाब दादा की जितनी आँखे सामने थी उतनी ही आँखें पीछे. मैं हमेशा सोचती हूँ दादा ने कौन से स्कूल में पढ़ाई की थी और कितना संस्कारिक उनका परिवार था. कूट कूट कर उनके अन्दर समाजवाद भरा था. सब के साथ एक सा व्यवाहार करना, उनके फितरत में सवार था. उनको मैंने जाति, पैसा, पद के साथ अलग अलग व्यवाहार करते कभी नही देखा. जिस टोन पर वो मुझसे बात करते थे उसी टोन पर वे अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष तथा पदाधिकारियों से भी बात करते थे. एक बार कह दिया ना ये पुस्तक बार रूम में नही है तो चुपचाप हर अधिवक्ता वहाँ से चला जाता था पर दादा से कभी किसी भी अधिवक्ता ने विवाद नही किया. बाररूम में अधिवक्ताओं का मासिक शुल्क, रजिस्टेशन शुल्क, बीमा का पैसा अधिवक्ता स्टांप निधि आदि अन्य पैसों का हिसाब किताब भी दादा के पास था याने वे छिन्दवाड़ा बार के खजांची थे, परन्तु उनके जीवन काल में कभी भी पैसों के हिसाब किताब में गड़बड़ी नही पाई गई. 
बाररूम की कैन्टीन में दोपहर की चाय बनाने की जिम्मेदारी भी गुलाब दादा की थी. ना जाने कौन सा जादु उनके हाथों में था, कि पाँच सितारा होटल की चाय भी उनके द्वारा बनाये गई चाय के सामने फीकी थी. मैं जब भी छिन्दवाड़ा से बाहर होती दादा के हाथ की चाय और बाररूम मुझे बहुत याद आता. दादा की चाय पीने के लिए हर अधिवक्ता चाय के समय काम छोड़कर चाय पीने के लिए बाररूम में आ धमकता, क्योकि लेट होने पर दादा चाय देेने में आना कानी करते थे, ताकि वकीलों को समय की पाबंदी की शिक्षा दे सकें. गुलाब दादा आज हमारे बीच नही है किन्तु समय की कीमत की शिक्षा मेरे लिए आज अमूल्य है. दादा से मैने कई बार उनके जैसी चाय बनाना सीखने की कोशिश की, पर वैसी चाय नही बना सकी जैसी दादा चाय बनाते थे, क्योकि मेरे हाथ में दादा जैसे चाय बनाने का जादु नही था. 
बाररूम में जब भी कोई पार्टी होती, सारी जिम्मेदारी गुलाब दादा के पास होती, ना किसी प्रकार की अफरा तफरी और ना किसी प्रकार का भेदभाव. हम लोग दादा को कहते थे बाररूम के अध्यक्ष तो हर दो साल में बदल जाते है पर आप तो हमारे स्थाई अध्यक्ष हो. हर साल ठण्ड के समय गुलाब दादा को ठण्ड से बचने के लिए नया कोट दिलाया जाता था. 
जिस वक्त मैने वकालत शुरू की थी उस समय किसी भी अधिवक्ता द्वारा कोई नया सामान खरीदा जाता था, तो वे इसकी पार्टी अलग से बाररूम में देते थे, जो अधिवक्ता पार्टी देते थे उनके घर से सामान बनकर आता था, पर वे अधिवक्ता या उनका परिवार पार्टी में वस्तुओं का विवरण नही करते थे, दादा के सुपुर्द कर देते थे और दादा सबको बराबरी से वस्तुओं का वितरण करते थे. ‘‘मुखिया मुख सौ चाहिए’’ की कहावत को दादा ने चरितार्थ कर दिखाया था. सिर्फ बाररूम की पार्टी की जिम्मेदारी ही नही अधिवक्ताओं के घर पर होने वाले कार्यक्रम मैं भी दादा की अहम भूमिका होती थी. कोई भी अधिवक्ता ऐसा नही था जो अपने घर के कार्यक्रमों में दादा को नही बुलाता हो। 
जिस तरीके से गुलाब दादा ने छिन्दवाड़ा बार को अपना परिवार माना, अधिवक्ता परिवार ने भी दादा को अपने परिवार का सदस्य माना, दादा के परिवार के जितने भी बेटे हैं वे सब छिन्दवाड़ा अधिवक्ता संघ के कर्मचारी है. जब से दादा ने कैन्टीन में चाय बनाने कि जिम्मेदारी दूसरे कर्मचारियों को दी, चाय का वो स्वाद और बार की रौनक भी खत्म हो गई. अब बार में लाईब्रेरी देखने के लिए अलग से बार रूम के पदाधिकारी वा कर्मचारी नियुक्त है, परन्तु पुस्तक चोरी का सिलसिला नही रूक पाया. गुलाब दादा आपने बहुत सारी चीजें मुझे सिखाई अपने मुझे लाईब्रेरी में बैठकर किस तरीके से रूलिंग देखी जाती है ये भी समझाया, आज आप मेरे बीच में आपके दिये हुए ज्ञान के साथ मौजूद है, आपकी दी हुई शिक्षा मेरे जीवन को निखारने में बहुत सहायक है, आप इस दुनिया में ना होते हुए भी आपकी दी हुई शिक्षा के रूप मे मेरे साथ हैं. मुझे हमेशा इस बात का दुख रहेगा की मैं आपके अन्तिम दर्शन करने के लिए नही पहुँच सकी. गुलाब दादा आपको सादर नमन्.

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