डॉ शारिक़ अहमद ख़ान
डाब' वाले भी मौक़ा देख 'दाब' कर कमा रहे हैं.आपदा में अवसर जो उनके हाथ आया है.डाब मतलब नारियल पानी महंगा हो गया है,कहते हैं कि नारियल पानी कोरोना में फ़ायदा करता है,लिहाज़ा जनता डाब पीना चाह रही है,इसी का लाभ डाब वाले दाबकर उठा रहे हैं,आख़िर डाब वाले क्यों ना उठाएं जब इतना ज़िम्मेदार आदमी लोगों को 'आपदा में अवसर' जैसी सीख दे.बहरहाल,जहाँ नारियल पानी बहुतायत में होता है वहाँ इसकी ख़ास वैल्यू नहीं है,मेरे साथ एक कन्या पढ़ती थी,दक्षिण भारतीय थी,उसके सिर के बाल बहुत घने थे,साउथ में घने-काले और बड़े बालों का विशेष महत्व है,इसे नारी के सौंदर्य में चार चाँद लगाने वाला माना जाता है,
लखनऊ और दिल्ली समेत नार्थ के शहरों में परकटी कही जाने वाली महिलाओं मतलब ब्वाए कट वालियों का जलवा है.जबकि साउथ में ऐसा नहीं है.क्लासफ़ेलो कन्या पूछने पर अपने बालों का राज़ ये बताती कि जब से होश संभाला कभी ज़मीन से निकले पानी से सिर नहीं धोया,उसकी जगह नारियल पानी बाल्टियों में भरा जाता,उसी से सिर धोते,इसी वजह से बाल बड़े और घने हैं.वो कन्या अपने सिर के बाल खोलकर कभी-कभार कोपभवानी शक्ल बनाए आती,जैसे 'मुँह झाड़ू सिर पहाड़'.ख़ैर,ये तस्वीर आज रेज़ीडेंसी लखनऊ के सामने मेरे कैमरे से,प्यास लग आई थी,डाब पीने टीम समेत यहाँ रूके थे,तभी वहाँ आए तीन ग्राहक डाब वाले से लड़ गए कि मौक़ा देख लूट मचाए हो,डाब वाले ने कहा कि बाबूजी हमें आजकल ख़ुद महंगा माल मिल रहा है,हम सस्ता कैसे बेचें,लूट तो फलों के थोक व्यापारी मचा रहे हैं,वही ब्लैक करा रहे हैं,उन्होंने ही रेट बढ़ाया है,तिजोरी उनकी भर रही है,हम लोग तो ग़रीब लोग हैं,एक डाब पर पांच रूपया लेते हैं.
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