राज कुमार सोनी
छत्तीसगढ़ से भाजपा के वरिष्ठ नेता बृजमोहन अग्रवाल पर लिखी गई इस पोस्ट से बहुत से लोगों की असहमति हो सकती हैं. असहमतियां वाजिब है या गैर-वाजिब इस पर बहस भी हो सकती हैं, लेकिन इस बात पर कोई असहमति नहीं हो सकती कि बृजमोहन यारों के यार है. दोस्त बनाना..रिश्ते निभाना और अपनी विचारधारा के विपरीत लोगों के काम को भी अपना मानकर करना वे बखूबी जानते हैं. लोगों से जीवंत संपर्क रखने की कला में उनका कोई सानी नहीं है. यकीन न तो एक छोटा सा न्योता देकर देख लीजिए. वे पहुंच जाएंगे या फिर उनका कोई आदमी आपके घर पहुंचकर फोन पर उनसे आपकी बात करवा देगा.
आज एक मई है और उनका जन्मदिन है.उन्हें खूब सारी बधाई. ही नहीं... देश-दुनिया के अनेक पत्रकारों और लेखकों से उनके अच्छे रिश्ते हैं. अगर कभी किसी ने उनके खिलाफ कुछ लिखा भी तो थोड़े ही दिनों में लिखने वाला उनका नजदीकी बन जाता है. ऐसे समय जबकि राजनेताओं में सहिष्णुता लगभग खत्म हो गई है तब बृजमोहन अग्रवाल कटुता से दूर रहने की भरसक कोशिश करते हैं और वे इसमें सफल भी रहते हैं. उनकी सबसे बड़ी खासियत भी यहीं कि वे लिखने-पढ़ने वालों से शत्रुता का भाव पालकर नहीं चलते. उनका सम्मान करना जानते हैं.
एक वाक्या याद आ रहा है. छत्तीसगढ़ में जब भाजपा की सरकार थीं तब संविदा में पदस्थ एक अफसर ने उनके खिलाफ खबरें प्लांट की थीं. अफसर की ओर से प्रतिदिन फीड की जा रही एक जैसी खबर को अमूमन हर चैनल और अखबार वाला परोसने के लिए मजबूर था. जो कोई भी अफसर की बात मानने से इंकार कर देता था उस अखबार के विज्ञापन में कटौती हो जाती थीं. पत्रकार पर झूठा मुकदमा दर्ज कर दिया जाता था. पत्रकार का तबादला हो जाता था या फिर उसे नौकरी से हाथ धोना पड़ता था.
मैं जिस अखबार में था उस अखबार के संपादक को भी बृजमोहन के खिलाफ खबरें छापने का कांट्रेक्ट ( ठेका ) दिया गया था. खबरों में उखाड़ देंगे...पछाड़ देंगे... निपटा देंगे...बता देंगे. आया ऊंट पहाड़ के नीचे जैसा दौर चल रहा था. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि बृजमोहन के खिलाफ संपादक ही रिपोर्टर बनकर खबरें लिखता था. खबरें संपादक लिखता था मगर बृजमोहन अग्रवाल का पक्ष लेने की जवाबदारी मुझे सौंपी गई थीं. हर रोज़ बृजमोहन अग्रवाल के खिलाफ खबरें छपती थीं. एक रोज बृजमोहन अग्रवाल ने कहा- मैं तुम्हारी भाषा को जानता हूं इसलिए इस बात को भी भली-भांति जानता हूं कि खबरें तुम नहीं लिख रहे हो. जो लिख रहा है वह भी दरअसल लिख नहीं रहा है...ब्लकि उससे लिखवाया जा रहा है. मैंने यह बात संपादक को बताई तो उन्होंने कहा- बात तो सही है...लेकिन यह बात तुमसे छिपी नहीं है कि अभी अफसर ही प्रदेश का असली मुख्यमंत्री है. जैसे-तैसे विज्ञापन प्रारंभ हुआ है. अब मालिक नुकसान ज्यादा सहने के पक्ष में नहीं है इसलिए रिस्क नहीं ले सकते.
एक रोज़ जब फिर से पक्ष लेने के लिए फोन लगाया तो उधर से आवाज आई- खबरें छपती रहेगी... तुम बहुत दिनों से मिलने क्यों नहीं आ रहे हो ? मिलने पहुंचा तो इधर- उधर की खूब सारी बातें होती रही, लेकिन खबर के छपने-छपाने को लेकर कोई बात नहीं हुई. दो कप चाय के बाद जब जाने को हुआ तब बृजमोहन ने सिर्फ इतना कहा- और कामरेड़ राजकुमार सब ठीक तो है.
मैंने कहा- अभी तक तो सब ठीक है... लेकिन भाजपा में भी कामरेड़ कहने की परम्परा प्रारंभ होनी चाहिए. अगर ऐसा होता तो मैं आपको कामरेड़ ही कहता. एक कामरेड़ प्रतिबद्ध होता है. उदार होता है. कट्टर नहीं होता.
छत्तीसगढ़ ही नहीं... देश के बहुत से नामचीन भाजपा नेताओं को मैं पसंद नहीं करता हूं. हालांकि मेरी पसंदगी और नापसंदगी से किसी का कुछ बनने- बिगड़ने वाला नहीं है. मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि बृजमोहन अग्रवाल से मेरा रिश्ता अच्छा है. मैं उनके अंदाज को पसंद करता हूं. मेरे जैसे और भी बहुत से पत्रकारों और लेखकों से उनका रिश्ता शानदार और जानदार है. सभी उनके अंदाज के दीवाने हैं.
एक बार फिर से जन्मदिन की मुबारकबाद.
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