दिलीप अरुण तेम्हुआवाला
भारत के हरियाणा प्रदेश के भाटी माइन्स में काम करने वाले मज़दूर हों या बिहार के कैमूर की तपती पहाड़ी के नीचे पत्थर काटने वाले मज़दूर.उड़ीसा, महाराष्ट्र, गोवा, राजस्थान के बॉक्साइट खदानों में काम करने वाले मज़दूर हों या सांप-बिच्छू के संग खेत-खलिहानों में काम करने वाले मज़दूर.बिहार के भभुआ स्थित भुड़कुड़ा पहाड़ी के खदानों, केरल, हिमाचल प्रदेश,
तमिलनाडु, महाराष्ट्र के नमक की खानों में काम करने वाले मज़दूर हों या अंडमान-निकोबार, पुडुचेरी, सिक्किम, लक्ष्यद्वीप, लद्दाख, दादरा-नगर हवेली, दमन-द्वीव, मिजोरम, नागालैंड तथा त्रिपुरा में जद्दोजेहद की ज़िंदगी जीने वाले मज़दूर - ये सभी अपनी मेहनत की तिल्ली से देश की दहलीज़ पर समृद्धि का दीया जलाते हैं.
महाराष्ट्र, आँध्र प्रदेश, झारखंड के ताम्बा, मैंगनीज, सोना,चांदी, कोयला खदानों में काम करने वाले मज़दूर हों या गुजरात, उत्तराखंड,महाराष्ट्र तथा हिमाचल प्रदेश के दवा निर्माण उद्योगों में काम करने वाले मज़दूर. छत्तीसगढ़, झारखंड, आँध्र प्रदेश के अभ्रख खदानों से लेकर तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक, उड़ीसा के लौह खदानों में काम करने वाले मज़दूर हों या असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश के पेट्रोलियम खदानों से लेकरकेरल, पंजाब, उत्तर प्रदेश के सीमेंट उद्द्योगों में काम करने वाले मज़दूर. महाराष्ट्र, हरियाणा, बिहार, उत्तर प्रदेश के चीनी उद्द्योगों में काम करने वाले मज़दूर हों या पश्चिम बंगाल, आँध्र प्रदेश के काग़ज़ उद्द्योगों में काम करने वाले मज़दूर. कर्नाटक तथा जम्मू- कश्मीर के रेशम उद्द्योगों में काम करने वाले मज़दूर हों या उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र के वायुयान निर्माण उद्द्योग सहित देश के अन्य उद्द्योगों में काम करने वाले मज़दूर- ये सभी अपने पसीने की स्याही से वतन की कहानी लिखते हैं.
माँ-बाप, बीबी-बच्चे, परिवार तथा समाज से सैकड़ों किलोमीटर दूर रहकर महाराष्ट्र के धारावी, पंजाब के लुधियाना, दिल्ली के नवी करीम,
सदर बाज़ार और बवाना सहित देश के अन्य शहरों के बंद कमरों में काम करने वाले मज़दूर हों या 1400 डिग्री सेल्सियस तापमान वाली भट्ठी के पास बैठ कर चूड़ियां और कृषि औज़ार बनाने वाले मज़दूर. अमीरों के उँगलियों में सजने वाले रत्न जड़ित अंगूठी तथा बदन पर झिलमिलाने वाले हीरे-जवाहरात पर पॉलिश करने वाले मज़दूर हों या बनारस, लुधियाना, जयपुर, सूरत, कलकत्ता सहित देश के अन्य वस्त्र उद्द्योगों में कपड़े की कटाई, सिलाई, बुनाई, रंगाई करने वाले मज़दूर- ये सभी अपने क़दमों की ताक़त से मुल्क का मुक़द्दर संवारते हैं.
शहरों के चौक-चौराहों, ट्रैफ़िकों तथा प्रतिमा स्थलों के पास काम की तलाश में बैठने वाले मज़दूर हों या जान जोखिम में डालकर
बिल्डिंग तथा पुल बनाने वाले मज़दूर. सड़कों और गलियों में झाड़ू लगानेवाले, गटर और शौचालय साफ़ करने वाले, ईंट पाथने वाले मज़दूर हों या पोल गाड़ने वाले, सड़क बनाने वाले, रेल की पटरियां बिछाने वाले मज़दूर. एयरपोर्ट, बस स्टैंड तथा रेलवे स्टेशनों पर काम करने वाले मज़दूर हों यामार्मागोवा, कांडला, एन्नौर, कोच्चि, विशाखापत्तनम सहित अन्य बंदरगाहों पर काम करने वाले मज़दूर- ये सभी अपने बाजुओं की क़ूवत से खुशियों की सौग़ात सरज़मीं के हवाले करते हैं.
धरती के सीने को चीरकर अनाज के बीज बोने वाले मज़दूर हों या समंदर, पहाड़ और ज़मीन के जिस्म को चीरकर सुरंग बनाने वाले मज़दूर.गोदामों, गैराजों तथा ट्रांसपोटों में काम करने वाले मज़दूर हों या रेलवे
रैक प्वाइंट पर काम करने वाले मज़दूर. अंग-अंग जला देने वाली गर्मी में कुदाल भांजने वाले मज़दूर हों या हाड़ हिला देने वाली सर्दी में हथौड़ा चलाने वाले मज़दूर. भरी बरसात में माल ढुलाई करने वाले मज़दूर हों या भीषण बर्फ़मारी में बोझा ढ़ोने वाले मज़दूर- इन सबों की ज़िंदगी राष्ट्र की रगों में लहू की बून्द बनकर दौड़ती है. मतलब, हिमालय से लेकर कन्या कुमारी तक तथा सिंधु से लेकर
ब्रह्मपुत्र तक की सारी इमारतों में, सड़कों में, कारखानों में इन मज़दूरों के खून और पसीने की बालू और सीमेंट लगी हुयी है. लिहाज़ा आइये, मुल्क के इन मेहनतकश मज़दूरों की ख़ातिर भारतवर्ष की सम्मानित सरकार के सामने हम अपना दामन फैलाकर "राईट टू हेल्थ" की भीख मांगते हैं.
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