ममता ने मारा गोल, फाउल करके

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

ममता ने मारा गोल, फाउल करके

के विक्रम राव 
हालांकि उनके पार्टीजन जवाहरलाल नेहरु का दृष्टांत पेश कर सकते हैं. इस लोकशाहीवाले सिद्धांत का उल्लंघन तब किया गया था. उनकी कांग्रेस पार्टी के नेता चन्द्रभानु गुप्ता को यूपी का मुख्यमंत्री बनाया. वे दो दो बार यूपी विधानसभा का चुनाव हार चुके थे. पहली बार तो लखनऊ (पूर्व) से वे मार्च 1957 में कांग्रेस के प्रत्याशी बनकर लड़े थे. तब यूपी सरकार के काबीना मंत्री थे. उन्हें प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के बाबू त्रिलोकी सिंह ने हराया था. फिर बुन्देलखण्ड के मौदाहा रियासत की रानी साहिबा राजेन्द्र कुमारी को इन्ही प्रजा सोशलिस्टों ने उपचुनाव में लड़ाया और गुप्ताजी दोबारा हार गये. फिर भी प्रधानमंत्री नेहरु ने गुप्ताजी को नामित कर दिया. संपूर्णानन्द की जगह यूपी के मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलायी गयी. ऐसे कई उदाहरण कांग्रेस इतिहास से कई मिल जायेंगे. मगर प्रश्न रहेगा कि जनवादी सिद्धांत के अनुसार एक पराजित प्रत्याशी को मुख्यमंत्री बनना चाहिये? ममता से यही सवाल है, सदाचार के आधार पर. 

अब कई निष्णात और ज्ञानीजन टीएमसी के पक्ष में अभूतपूर्व चुनावी चित्र रंग रहे हैं. उन्हें  ताजा आंकड़े भी देखना चाहिये. मतदान का गणित स्पष्ट हो जायेगा. ममता की पार्टी को पश्चिम बंगाल की विधानसभा में 2011 के चुनाव में 184 सीटें मिलीं थीं. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के साढ़े तीन दशक के राज का उन्होंने खात्मा किया था. फिर पिछले 2016 के चुनाव में तृणमूल के 211 विधायक रहे. कल के परिणाम में उन्हें 217 सीटें मिलीं हैं. पांच वर्षों में मात्र सात आठ विधायक ही बढ़े हैं. वोट प्रतिशत भी 48 था जो 2016 की तुलना में मात्र पांच फीसदी ज्यादा था. तो क्या करिश्मा कर दिखाया ? 

ममता ने निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता पर आरोप लगाया कि तीन रिटायर्ड सरकारी नौकर सदस्य नामित होकर मतदान का निर्णय करेंगे? तो इस बांग्ला राजनेता ममता बनर्जी के को याद दिला दिया जाये कि उनकी पुरानी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राज में भारत के प्रधान न्यायाधीश थे सुधिरंजन दास, उनके दामाद थे नेहरु काबीना के कानून मंत्री अशोक कुमार सेन. उनके सगे भाई थे सुकुमार सेन जो मुख्य निर्वाचन आयुक्त थे. तीनों उच्च सरकारी पद एक ही कुटुम्ब में सीमित था. तब केवल राममनोहर लोहिया ने इस घृणास्पद वंशवाद का मसला उठाया था। 

अखबारों की आज सुखियां हैं कि ममता के रुप में भारतीय प्रतिपक्ष को एक सर्वमान्य राष्ट्रस्तरीय पुरोधा मिल गया. वही पुरानी पत्रकारी अतिशयोक्ति. भला जो महिला बंगाल को ही राष्ट्र माने, उसे भारत से भी बड़ा समझे, क्या वह मलयाली, नागा, लदृाखी, पंजाबी आदि विविध राजनेताओं का समर्थन कभी हासिल कर पायेंगी ?  ऐसी क्षेत्रवादी प्रवृत्ति का नेता बस एक प्रदेश का होकर रह जाता है. समूचे भारत का कभी नहीं. बंगपुत्री ममता बनर्जी हुगली तट और बंगाल की खाड़ी के मध्यस्थल को ही अपनी दुनिया मानती है. याद आता है रेलमंत्री के पद पर रहते जब ममता बनर्जी बजाये रेल भवन मुख्यालय के, सियालदह स्टेशन से राष्ट्र के रेल के चलाती थीं. गोमुख से चली पवित्र भागीरथी बहते बहते कोलकता पहुंचते हीं गंदली हुगली बन जाती है. फिर गंगासागर में समुद्र में गिरती है. मगर ममता इस गंगा को सिर्फ हुगली ही मानेंगी क्योंकि वह उनके राज्य में बस इतना ही भाग गंगा का बहता है. तो क्या ऐसी संकीर्णदिल महिला भारत की पीएम लायक होंगी?  
 

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :