लखनऊ. भाकपा (माले) की राज्य इकाई ने कहा है कि पंचायत चुनाव खत्म हो गए, मगर कई जगहों पर हारे हुए प्रत्याशियों के गुर्गों ने जीते उम्मीदवारों के समर्थकों के घरों पर हमले कराए हैं और पुलिस ने हमलावरों के विरूद्ध कार्रवाई करने की जगह पीड़ितों का ही उत्पीड़न करना शुरू कर दिया है. पार्टी ने इन हमलों को रोकने और हमलावरों व उन्हें संरक्षण देने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है.
शुक्रवार को जारी बयान में राज्य सचिव सुधाकर यादव ने कहा कि और तो और, न्याय दिलाने की जगह खुद पुलिस भी कार्रवाई के नाम पर घरों में घुसकर तोड़फोड़ करने व महिलाओं से अभद्र व्यवहार करने जैसा काम कर रही है.
उन्होंने प्रतापगढ़ जिले में गुरुवार (छह मई) को हुई घटना का जिक्र करते हुए कहा कि थाना महेशगंज की पुलिस ग्राम पंचायत कन्हैया दुल्लापुर गांव (तहसील लालगंज) में आयी और गाली-गलौज करते हुए जो भी मिला उन्हें मारने-पीटने लगी. गांव के एक नवयुवक मनोज को पकड़ लिया. इसके बाद पुलिस नवनिर्वाचित प्रधान राकेश पटेल के घर पहुंचकर उनके बारे में पूछने लगी. जब घर के लोगों ने कारण जानना चाहा तो महिलाओं से अपशब्दों और गाली-गलौज में बातचीत करते हुए घर में घुस गयी. राकेश पटेल के नहीं मिलने पर घर के पंखे, बिजली बोर्ड, कुर्सी-मेज, मोटरसाइकिल आदि सामानों को तोड़ डाला. पुलिस की इस कार्यवाही से गांव में दहशत व्याप्त है.
राज्य सचिव ने कहा कि प्रधान राकेश पटेल 29 मई को पुनर्मतदान के बाद दो मई से शुरू हुई मतगणना में विजयी घोषित किए गए थे. इसके पहले, 19 मई को दूसरे चरण में उक्त पंचायत के लिए हो रहे मतदान के दौरान प्रधान पद की एक अन्य प्रत्याशी सुषमा के पति विपिन चन्द्र त्रिपाठी व उनके समर्थकों द्वारा मतदान केंद्र में व्यवधान डाला गया और मतपेटी से मतपत्रों को निकाल कर बिखेर दिया गया था. पीठासीन अधिकारी द्वारा इस घटना की एफआईआर दर्ज कराई गई थी. पीड़ित प्रधान के परिवार ने प्रतापगढ़ के डीएम व एसपी से शिकायत कर दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है.
राज्य सचिव ने कहा कि सीतापुर जिले में हरगांव थानाक्षेत्र के परसेहरा शरीफपुर गांव में प्रधान पद के एक प्रत्याशी ने वोट न देने वाले गरीब परिवार के लोगों को सरे बाजार गालियां देने के बाद गुंडे बुला कर बेदर्दी से पिटाई करवा दी. किसी का हाथ टूटा, किसी का सर फूटा और कइयों को गंभीर चोट आई. मामला थाने तक पहुंचा. पुलिस ने दबंगो के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय उल्टे पीड़ित लोगों पर ही केस दर्ज कर जेल भेज दिया. पीड़ित परिवारों की तरफ से दी गई तहरीर पर अब तक मुकदमा तक पंजीकृत नहीं किया गया है, जबकि हमले की घटना अंतिम चरण का मतदान समाप्त हो जाने के बाद 30 अप्रैल की है. कई परिवार पुलिस और हमलावरों से बचने के लिए घर-बार छोड़ कर रिश्तेदारों के यहां चले गए हैं.
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