प्रिय राहुल जी
संगठन की संवैधानिक बारीकियों ने उलझ कर हमें यह नही बताना है कि, यह खत हम आपको ही क्यों लिख रहे हैं , विशेषकर तब जब कि इस खत का मजमून आपके व्यक्तिगत विषय से जुड़ा हुआ नही है ,बल्कि देश नही दुनिया के सबसे बड़े जनाधार वाली पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अगले कदम के बारे में है .यहां आप उस तकनीकी सवाल को न उठाएं कि - हम कौन होते हैं , कांग्रेस के बारे में फैसला करने वाले ? हम एक सांसद सदस्य भर हैं और कांग्रेस के सामान्य कार्यकर्ता की हैसियत से संगठन के साथ जुड़े हैं ' .तकनीकी तौर पर यह सही है लेकिन असलियत यही है कि आज भी कांग्रेस की आस, विश्वास और बल गांधी नेहरू परिवार में ही दिखाई पड़ता है और सच भी यही है .कांग्रेस के इस हिस्से पर या हमारे इस बेबाक बयान पर अनेक सियासी लोग छिद्रानुवेषण करनेवाले तल्ख हो सकते हैं , और यह उनका हक भी है लेकिन हमारे पास इसका माकूल जवाब है, कांग्रेस में कई दफे यह पेंच उलझा है और तकनीकी सवाल भी उठे हैं और कांग्रेस संगठन का सैद्धांतिक ढांचा व्यक्तित्व की ऊंचाई से नीचे रह गया है .उदाहरण के लिए - देश की आजादी मुहाने पर खड़ी थी , जिन्ना के डायरेक्ट ऐक्शन की घोषणा से उपजा कत्लेआम का खेल उफान पर है .वायसराय माउंटवेटन की परेशानी का सबब है दंगा, जिसे हिन्दू मुस्लिम दंगा कहा गया है .लीग से बात करके वायसराय जिन्ना को राजी करा लिए की कांग्रेस और मुस्लिम लीग की सामूहिक सहमति से मुल्क में अमन चैन के लिए एक अपील निकाली जाय जिसपर दो लोंगो के दस्तखत हों .लीग की तरफ से जिन्ना की और कांग्रेस की तरफ से गांधी जी के .माउंटबेटन जब यह प्रस्ताव लेकर गांधी जी के पास आये तो गांधी जी ने स्पष्ट शब्दों में कहा - कांग्रेस सदर दस्तखत करेंगे , हम कौन होते हैं ? हम तो कांग्रेस के सदस्य भी नही रहे .( गांधी जी 1934 मे ही कांग्रेस से इस्तीफा देकर रचनात्मक कार्यों में लग गए थे , एक क्लॉज जुड़ा हुआ रहा कि जब कांग्रेस को जरूरत पड़े वह गांधी जी से विचार विमर्श कर सकते हैं आमंत्रित सदस्य की हैसियत से ) गांधी जी ने सुझाव दिया कि लीग के सदर जिन्ना के साथ कांग्रेस सदर जे बी कृपलानी दस्तखत करेंगे .जिन्ना को यह मंजूर नही था , जिन्ना चाहते थे उनके साथ अपील पर गांधी जी दस्तखत करें , और वही हुआ भी .अनेक लोंगो को यह युक्ति नागवार गुजर सकती है कि ' कांग्रेस माने गांधी नेहरू परिवार ' /
असलियत यही है .कांग्रेस का यह स्थायी भाव है .इसकी वजह है आम जन का यकीन और उनकी आस्था .दिलचस्प बात यह है कि भारतीय राजनीति के केंद्र में कांग्रेस इतनी गहराई तक उतर गई है कि देश मे ही नही विदेश तक मे कांग्रेस के इस परिवार की साख जस की तस बनी हुई है .उदाहरण देख लें , बीसियों साल से कांग्रेस सत्ता में नही है , मरहूम राजीव गांधी के बाद इस परिवार का कोई सदस्य मंत्री तक नही हुआ , लेकिन जितने भी विदेशी मेहमान , राजनयिक , राष्ट्राध्यक्ष भारत आये उन सब ने औपचारिक रूप से बगैर गांधी नेहरू परिवार से मिले वापस नही गया है .
माजी में उतर कर इतने सारे वाक्यातों का जिक्र इसलिए करना पड़ा कि जनाब राहुल गांधी ! यह सवाल जन यकीन का है कि देश को गर गर्त से निकाल कर पटरी पर लाना है तो कांग्रेस को 'जन सरकार ' का विकल्प बनाना ही पड़ेगा और इस जन सरकार को समर्थ स्वरूप राहुल गांधी ही दे सकते हैं .
कोविद महामारी अपने चरम पर पहुची हुई है , कारण केवल सरकार की तुगलकी सोच और सनकी फरमान बन गया है .इन बातों से जनता वाकिफ है .कांग्रेस को चाहिए कि वह केवल कोविद तक महदूद न रहे उसकी आड़ में सरकारी लूट और सनक पर दौड़ रही फिजूल खर्ची पर भी रोक लगे .कांग्रेस को जिले स्तर तक कोविद कंट्रोल रूम बनाये और अपने साधन और सहयोग पर आम जन तक पहुंचे .देश मे एक पॉजीटिव माहौल बने .
इस गिरोह ने देश को गर्त में डाल दिया है .सामने जो कुछ दिख रहा है इससे भी भयंकर चीजें अभी तलहटी में हैं , मौका मिलते ही साथ पर आएगी इसमे से एक है अराजकता .इस पर अभी से नियंत्रण बनाना पड़ेगा .
कांग्रेस की ' जन सरकार ' फिलहाल दो मुद्दों पर कार्यक्रम तय करे .एक - अल्प कालिक जो तत्कालीन सवालों को सुलझाए और दूसरा - दीर्घकालिक .इसमे टूटे हुए आर्थिक ढांचे का पुनर्निर्माण .विकेन्द्रित अर्थ व्यवस्था , बेराजगारी के खिलाफ रोजगार का विकल्प .सामाजिक समरसता .
आपका -
चंचल
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