चंचल
उस्ताद भी .विचार एक ही है - ' समतामूलक समाज निर्माण के लिए प्रतिबद्ध ' .पर दल अलग है .आजम समाजवादी पार्टी के समाजवादी हैं और हम कांग्रेस में समाजवादी हैं .आजम की गिरफ्तारी , पूरे परिवार को दी जमनेवाली यातना की खबरें विचलित करती रही लेकिन थोड़ा बहुत सुकून कहें या गम गलत करने का ख्याल ही सही पर माजी इन वारदातों का जिक्र अपने सीने में दबाए बैठा है .देश नही दुनिया के इंसानी फितरत का खेल हुकूमत में मद घोलने का मिलता है जब वह अपने विरोधियों को यातना देता है एवज में विरोध की धार और पुख्ता होती है .और तवारीख मुस्कुराती है .गौर से देखें बिरले शख्सियत ही चांदी के जूते पहने पैदा हुए होंगे और अकूत संपत्ति पीठ पर लादे कब्र तक गए होंगे , लेकिन इन्हें तवारीख ने जगह नही दी . माजी में जगह घेरता है सूली पर लटकाया गया एक मासूम चेहरा जो बुदबुदाता है , बहुत धीमी आवाज में - ' इन्हें माफ कर देना , इन्हें ये नही मालूम ये क्या कर रहे हैं ' / आज तक यह आवाज गूंज रही है .तकलीफ और तिरस्कार से गुजरता है तथागत .राजघराने का कुंवर भी तो है , सनातन के सड़े मुह की कथा संभल जाती है तथागत भगवान के अवतार बना दिये गए और उनके अनुयायी म्लेच्छ बनाकर देश निकाला कर दिए गए .वही तकलीफ तो आज ग्लोब घेरे खड़ी है .भारत के विरोधी भी तथागत की शरण मे खड़े हैं .हम भटक नही रहे है , खुद को पॉजटिव डगर पर ले जा रहे हैं .जरूरी नही कि यह पढा ही जाय .बहरहाल असल सवाल है , हमारे बिगड़ते मिजाज की परिणति इस समाज को किधर ढ़केल रही है .यातना शख्सियत ढलने में , सहूलियत है ? संपर्क डगर है ? या समर हथियार ? या सब मिला जुला ? थ्योरो , सुकरात , गांधी कई नाम हैं जो दर्शन ही नही देते खुद पर प्रयोग भी करते हैं .गांधी का आखिरी शब्द - ' है राम ' एक बुलन्दी दे देता है .उसी बुद्ध , गांधी , नानक का मुल्क आज परसंताप की आग में जल रहा है ?
- आजम ?
- हाँ आजम दोस्त है , हम दोनों बनारस सेंट्रल जेल में दो साल साथ साथ गुजारे हैं .उसने हमारा नाम रखा था चे .क्यूबा वाला चे नही , उर्दू का चे .जीम में नीचे तीन बिंदी ( नुक्ता ) लगा दीजिये चे बन जाता है .चंचल उर्दू में चे से शुरू होता है और लाम पर रुक जाता है .जेल में आजम ने हमे उर्दू पढ़ाया है .हमारे उस्ताद हैं .इस निजाम ने उन्हें जेल में डाल दिया है , उनके बेटे को भी .कभी कभी सोचता हूँ -
- अपराध और अपराधी का फैसला सियासतदां करता है या नियम कानून ?
- अगर नियम कानून यह फैसला करता है तो हुकूमत बदलते ही नियम कानून भी बदल जाते हैं अपने आप ? बगैर कोई नियमतः बदलाव किए ?
- यह नियम कानून किसके संरक्षण में रहता है ? कार्यपालिका और न्यायपालिका ही उत्तरदायी है नियम कानून की तरलता और सहज गति के लिए तो वह सियासत के अनुरूप क्यों बदलती है ? नियम कानून के साथ होनेवाले इस छेड़छाड़ के लिए कार्यपालिका की जवाबदेही क्यों नही उघार होती ? इसे आजम के साथ समझिये .आजम के ऊपर जो भी आरोप लगे हैं वे सब उस जमाने के हैं जब वे सरकार में थे .जो आज अपराध बोला जा रहा है , उसका निस्तारण उस समय कार्यपालिका कर रही थी , वही कार्यपालिका आज उसे ही अपराध बता रही है .कार्यपालिका से नही पूवह्हा जाना चाहिए कि उस समय इसे क्यों नही रोका गया ?
इसी क्यों का जवाब हमारे तंत्र की बेहतरी का डगर बनाएगी क्यों अब इसे बंद कर दिया गया है .एक छोटा सा उदाहरण दे दूं .टटका है .उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे वीर बहादुर सिंह .हासिमपुर , मलियाना में PAC के एक सनकी गिरोही कमांडेंट ने दर्जनों युवा मुसलमानों को गोलियों से भून दिया और उनकी लाशों को हिंडन नदी में फेंकवा दिया .उस समय गाजियावाद के पुलिस कप्तान थे विभूति नारायण राय .रात में ही जब उनको इसकी खबर मिली खुद फोर्स लेकर हिंडन नदी तक गए लाशों को निकलवा कर बाहर किया एक जिंदा बच गया था उसे केंद्र में रख कर PAC के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ .मुख्यमंत्री खोजते रह गए अपने एक जिले के कप्तान को राय साहब अपनी जगह अड़े रहे गए .कार्य पालिका का एक चेहरा यह भी है .
न्याय पालिका प्रत्यक्ष , परोक्ष या प्रकारान्तर से आज जितनी जलील हो रही है शायद पहले कभी नही हुई है या अब न होगी .आलोचना के दायरे में इसलिए कि यह दबाव में है .एक आँखन देखी बात बता दूं -
बनारस के CJM थे बी आर यादव .काशी विश्व विद्यालय के पढ़े हुए .उनके सामने मुख्यमंत्री द्वारा भेजी गई एक फाइल आयी जसमे एक छात्रनेता पर से आपराधिक मामला वापस लेने की बात कही गयी थी .बी आर यादव जी ने मुकदमा वापस लेने से मना कर दिया .व्यक्तिगत बातचीत में उन्होंने बताया कि जिस मुकदमे को वापस लेने की बात हो रही है , वह वारदात हमारे सामने हुई थी .उसे हम कैसे वापस ले लें ?
इन्ही CJM के सामने हमारा भी मुकदमा लगा एक मजिस्ट्रेट को जान से मारने के आरोप लगा कर .दिलचस्प बात हुयी यह वारदात भी इन्ही बी आर यादव के सामने घटित हुई थी उस समय ये काशी विश्व विद्यालय में ला के छात्र थे . इस मुकदमे का जिक्र अलग पोस्ट में .
कल प्रसिद्ध कानूनविद भाई कनक तिवारी Kanak Tiwari जो छतीसगढ़ के एटॉर्नी रह चुके हैं ने बिहार के पप्पू यादव की गिरफ्तारी पर यही सवाल उठाए हैं .32 साल पुराने अपराध पर हुई गिरफ्तारी पर तिवारी जी ने पूछ है , 32 साल तक पुलिस प्रशासन कहाँ था ? बहरहाल , आजम जेल में ही नही हैं कोविद 19 की चपेट में हैं .कल भाई राजेन्द्र चौधरी से इस बाबत बात हुई .
आजम की बेहतरी के लिए दुआ ही तो मांग सकता हूँ. फोटो साभार पत्रिका
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