आलोक कुमार
बक्सर. आरटीआई एक्टिविष्ट हैं शिव प्रकाश राय. नागरिक अधिकार मंच, बिहार के अध्यक्ष भी है. कहते हैं कि वर्तमान लॉकडाउन में बक्सर में गंगा नदी के किनारे मिले लाशों के बारे में स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के मीडिया में तरह-तरह की चर्चाएं हैं तथा इस पर शासन, प्रशासन से लेकर न्यायपालिका एवं मानवाधिकार आयोग की भी नजर है.
इस संदर्भ में मैं कुछ तथ्यों को सविस्तार रख रहा हूँ जिस पर यथा जिम्मेवार अभिकरणों द्वारा निदानात्मक कार्रवाई अपेक्षित है. सबसे पहले तो मैं यह बता दूँ कि मैं स्वयं बक्सर का निवासी हूँ और हमारे यहाँ मरणोपरांत शवों के संस्कार की एक सदियों पुरानी परंपरा गंगा में प्रवाहित करने की भी है.
हालाँकि यह पर्यावरण एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सही नहीं है. इस विधि में शव को नाव के द्वारा बीच नदी में ले जाकर उनमें भारी पत्थर बाँध कर प्रवाहित किया जाता है, कोरोना के चलते मृतकों की संख्या एकाएक बढ़ गई है, दाह-संस्कार में अब बहुत खर्च भी बढ़ गया है तथा बक्सर में गंगा किनारे स्थित शवदाह करने के लिए कोई व्यवस्था भी नहीं है इसलिए भी गरीब तबके के लोग शवों को नदी में प्रवाहित कर देते हैं.
यूपी के सीमावर्ती जिलों में भी यह प्रथा प्रचलित है, अतः इन शवों का गंगा किनारे मिलना कोई बहुत आश्चर्य की बात नहीं है.
1. विदित हो कि बक्सर जिला में महादेवा चौसा, कुतुबपुर बारा, दानी का कुटिया, कृतपुरा, मुक्तिधाम चरित्र वन बक्सर, उमर पुर, केशो पुर मानिकपुर, गंगौली डूभ से लेकर नैनीजोर तक कोई श्मशान घाट नहीं है और गंगा किनारे स्थित किसानों के खेतों में ही शवदाह करना पड़ता है.
2.अतः इन सभी जगहों पर शव-दाह के लिए सरकारी श्मशान घाटों का निर्माण कराने की कृपा करें.तथा उपरोक्त सभी चिह्नित स्थानों पर प्रदूषण-मुक्त शवदाह हेतु उचित व्यवस्था का निर्माण अपेक्षित है.
3. अभी जो गंगा किनारे 71 शव मिले हैं उन्हें बक्सर जिला प्रशासन द्वारा उन्हें जलाने के बदले किनारे रखवा कर उन्हें मिट्टी से ढकवा दिया गया है, उन शवों का दाह-संस्कार किए जाने की अपेक्षा है.
4. बक्सर में अवस्थित मुक्तिधाम में चार जिलों के लोग शवदाह के लिए आते हैं, अतः यहाँ विद्युत शवदाह-गृह का निर्माण अपेक्षित है.
5. नमामि गंगे तथा स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत गंगा नदी की स्वच्छता हेतु और प्रदूषण-मुक्त रखने के लिए योजना बनाकर उसका क्रियान्वयन किया जाए.
6. दाह-संस्कार के लिए सरकारी दर सुनिश्चित किया जाए ताकि गरीब से गरीब लोग भी अंतिम क्रिया कर सकें और जो बिल्कुल असमर्थ हों उनका सरकारी सहायता से दाह-संस्कार की व्यवस्था की जाए.
अतः पुनः निवेदन है कि उपरोक्त सुझावों पर उचित कार्रवाई करने की कृपा करें. हम नागरिक तो इस देश में हमेशा से कृपाकांक्षी ही रहे हैं. इस मेल की एक प्रति माननीय उच्च न्यायालय पटना, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग में भी संज्ञान की उम्मीद से प्रेषित कर रहा हूँ.
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