आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी

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आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी

चंचल  
 हिंदी की एक विधा उठी और अपनी विरासत बेनामी बिखेर कर चली गयी .अब वह  विधा नही आएगी .अनामदास का पोथा , वाण भट्ट की आत्म कथा , पुनर्नवा कबीर  जैसी कृतियों का रचयिता  आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जो जीते जी एक अलग की  विधा  बन चुके थे ,बहुत कुछ छोड़ गए हैं . 
19  मई 1979 आखिरी दिन था जब आचार्य जी बिल्कुल खामोशी से आंख बंद कर लिए देश का स्वास्थ्यमंत्री जिनकी तीमारदारी में लगा था लोक बंधु राजनारायण अस्पताल की ड्योढ़ी पर बैठे जार जार रोये जा रहे थे .सत्ता के बाहर जा चुकी श्रीमती इंदिरागांधी ने घर के दरवाजे को बंद कर लिया था , यकीनन रो रही होंगी उनका अपना गुरुवर विदा ले लिया था .शांतिनिकेतन में आचार्य द्विवेदी  के प्रिय शिष्यों में गौरा (  शिवानी ) और इंदु की शैतानियां ऐसे वक्त में अबाध गति से बहती है  आंखों से .इंदु कभी के सामने रोती नही थी , सिवाय अपनी  तनहाई के .अब कौन पूछेगा - इंदू ( श्रीमती  इंदिरा गांधी ) के यहां अचार गया कि नही ? पंडित जी के घर से बेनागा हर साल दिल्ली अचार जाता था .अम्मा अपने हाथ से बनाती थी .आज रिश्तों का एक  पुल टूट रहा था . 
  हम उन सौभाग्यशाली लोंगो में  शामिल हैं जिन्हें उस परिवार से प्यार मिला , अपनापन मिला .बहुत लिखा  हूँ , इसी फेसबुक पर .आचार्य जी हमे बांगड़ू  बोलते थे . 
आचार्य जी के एक सुपुत्र गिप्पी ( श्री सिद्धार्थ द्विवेदी ) हमारे मित्र हैं .अगले किसी पोस्ट में उन वाकयात को उठाया जाएगा जिससे हम बावस्ता रहे हैं .अभी यो  बस  
      सादर नमन आचार्य जी

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