रमा शंकर सिंह
प्रधानमंत्री डा मनमोहनसिंह के समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसे कई काम किये जिससे भारत के प्रधानमंत्री पद की गरिमा कम करने का प्रयास हुआ जैसे राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक का घोषित रूप से बहिष्कार . २०१३ में ही मर्यादातोड पराकाष्ठा तब हुई थी जब १४ अगस्त को गुजरात के मुख्यमंत्री ने ऐलान किया कि कल यानी १५ अगस्त को लालक़िले से प्रधानमंत्री डा० मनमोहन सिंह का राष्ट्र के नाम संदेश कोई नहीं सुनेगा और देश की जनता मुझे सुनेगी. अगले दिन १५ अगस्त स्वतंत्रता दिवस के पर्व पर गुजरात के एक ज़िले में नक़ली लालक़िले के सैट से गुजरात मुख्यमंत्री ने भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में पहली बार एक ऐसा भाषण दिया जो शुद्धत: न सिर्फ़ क्षुद्र राजनीतिक था बल्कि स्वतंत्रता दिवस की ही गरिमा व मर्यादा को कम करने वाला था जिसकी दबी ज़ुबान से आलोचना स्वयं भाजपा के कई नेताओं ने की.
सब जानते हैं कि गुजरात के मुख्यमंत्री के पीआर ऑफिस एवं दो उद्योगपतियों द्वारा टीवी चैनलों को नक़द रक़म पहुँचाई गई कि लालक़िले के कार्यक्रम के बाद गुजरात मुख्यमंत्री का भाषण पूरा लाइव दिखाया जाये . उक्त घटनाओं की तुलना में कल बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी का कदम तो एकदम ही मामूली ही माना जायेगा जबकि हाल ही में चुनी सरकार को अस्थिर करने के लिये केंद्र सरकार , प्रधानमंत्री, राज्यपाल सब ओवरटाइम लगे हुये हैं.
मर्यादाहीन राज्यपाल शपथग्रहण समारोह में राजनीतिक भाषण देने लगता है यह जानते हुये भी कि चुनावों के दौरान प्रशासन चुनाव आयोग के तहत काम कर रहा था इसलिये उस दौरान हुई हिंसा के लिये ममता बैनर्जी ज़िम्मेदार नहीं कही जा सकती. शपथ ग्रहण के चार दिन बाद ही केंद्रीय जॉंच दल बंगाल में कथित रूप से बिगड़ती क़ानून व्यवस्था को देखने चला आता है और राज्यपाल थानों का मुआयना करने लगता है.
बंगाल में जिस यास तूफ़ान से हुये नुक़सान पर चर्चा करने के लिये प्रमं ने बैठक बुलाई थी वह निर्वाचित सरकार के साथ नहीं थी बल्कि पहले से ही प्रधानमंत्री के निमंत्रण पर वहॉं भाजपा विधायक दल का नेता बैठा हुआ था . आम तौर पर राज्य सरकार से बैठक के समय राज्यपाल की उपस्थिति का कोई औचित्य व परंपरा नहीं रही है !
ममता बैनर्जी किसी कांग्रेसी मुख्यमंत्री की तरह पिलपिली नहीं है कि प्रधानमंत्री कुछ भी करे और राज्य का मुख्यमंत्री जी-सर , जी-सर कहता रहे. जैसा प्रधानमंत्री का व्यवहार होगा उसे वैसा ही व्यवहार एक सीमा के बाद दिया जायेगा.आज चैनल के ग़ैर जानकार अनभिज्ञ नौसिखिया लौंडे जो पर्दे पर विलाप कर रहे हैं वे मात्र आठ साल पहले का कैसे भूल सकते हैं?रमा शंकर सिंह की वाल से साभार
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