विशाखापत्तनम किरंदुल पैसेंजर

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

विशाखापत्तनम किरंदुल पैसेंजर

अंबरीश कुमार 

जगदलपुर के सर्किट हाउस से निकले तो देर हो चुकी थी .दरअसल बीती रात से ही बरसात हो रही थी और रात का खाना पीना ही काफी देर से हुआ .दरअसल जनसंपर्क विभाग के एक आदिवादी अधिकारी कुरेटी का आग्रह था कि बस्तर आए और कड़कनाथ का स्वाद नहीं लिया तो यात्रा का क्या अर्थ . चित्रकोट जल प्रपात और आसपास घूमकर लौटे तो सर्किट हाउस के एक कोने में जिधर कटहल का पेड़ लगा था उधर ही बैठकर चाय पी और खानसामा से बात करते लगा .वह कडकनाथ का इंतजाम करने निकल रहा था .यह पुराना सर्किट हाउस है पर सामने छोटा सा बगीचा होने की वजह से काफी हराभरा दिखता है .वैसे भी चारो तरफ जंगल ही जंगल तो है .हमें जाना अरकू घाटी और फिर उसके बाद विशाखापत्तनम था .दफ्तर की गाड़ी थी पर अपना ड्राइवर चंद्रकांत को साथ लेकर आया था ताकि वह हमें किरंदुल पैसेंजर पर बिठाकर रायपुर लौट जाए .अपने को इस पैसेंजर से ही अरकू घाटी तक जाना था .पर स्टेशन पर जब टिकट लेने गए तो पता चला सिर्फ फर्स्ट क्लास में ही आरक्षण होता है और बाकी सारी ट्रेन जनरल डब्बे वाली है .खैर टिकट ले ही रहे थे तभी ट्रेन ने प्लेटफार्म छोड़ दिया .चंद्रकांत ने कहा ,सर चिंता न करें हम इस ट्रेन को अगले स्टेशन तक पकड़ लेंगे .

दरअसल पैसेंजर ट्रेन थी और हर स्टेशन पर एक मिनट ही रूकती पर रफ़्तार बहुत ज्यादा नहीं थी इसलिए दो स्टेशन छोड़कर हम छोटे से स्टेशन अमगुडा पर पहुंचे तो ट्रेन दूर से आती हुई दिखी .इससे पहले ट्रेन को पीछे छोड़ते हुए हम तेज रफ़्तार से सड़क पर आगे बढ़ रहे थे .बरसात बंद हो चुकी थी पर सड़क पर कोई ख़ास ट्रैफिक नहीं था..यह ओडिशा का ग्रामीण अंचल है जो काफी हराभरा है .इस ट्रेन से अमूमन गरीब आदिवासी ही सफ़र करते हैं .गांव से फल सब्जी आदि लेकर वे दूसरे कस्बे तक जाते हैं .ज्यादातर के हाथ में लाठी भी नजर आ रही थी .ट्रेन के फर्स्ट क्लास में एक केबिन अपना ही हो गया क्योंकि हम चार लोग थे और चार बर्थ थी .बहुत दिन बाद ऐसे डिब्बे में बैठना हुआ जिसमें खिड़की का सीसा उठा दिया तो बाहर से भीगी हुई ताज़ी हवा आ रही थी .बरसात की वजह से मौसम सुहावना हो चुका था .थर्मस में काफी थी और दोपहर का खाना सर्किट हाउस के खानसामा नें ठीक से बांध कर रख दिया था .पराठा ,सब्जी ,दही और अचार मिर्च भी .कुछ देर खिड़की पर बैठने के बाद आकाश ,अंबर ऊपर की बर्थ पर जाकर सो गए .सविता कोई उपन्यास पढने लगी तो मै अख़बार देखने लगा .करीब साढ़े ग्यारह पर जब जयपोर स्टेशन पहूंचे तो काफी पीने की इच्छा हुई .स्टेशन का नाम हिंदी में जयपुर लिखा था पर बोल रहे थे जयपोर .उड़िया में यही कहते होंगे .यह ट्रेन छतीसगढ़ के पहाड़ों से होते हुए पहले ओड़िसा से गुजरती है फिर आंध्र प्रदेश में समुद्र तट पर बसे अत्याधुनिक शहर विशाखापत्तनम तक जाती है .पर हमें बीच में ही अरकू घाटी में उतरना था .यह एक छोटा सा पहाड़ी सैरगाह है .कोरापुट के बाद एक छोटा सा स्टेशन आया सुकू .नीचे उतरे और छोटे से स्टेशन का जायजा लिया .  

रायपुर से बस्तर तक कोई रेलगाड़ी नही जाती पर बस्तर में जो रेलगाड़ी चलती है उसका सफ़र कभी भूल नही सकते .छत्तीसगढ़ से सटा एक खूबसूरत पहाड़ी सैरगाह अरकू घाटी तेलुगू फिल्म निदेशकों की पसंदीदा लोकेशन भी है .देश में सबसे ज्यादा ऊँचाई पर चलने वाली ब्राड गेज ट्रेन का सफ़र हमने बस्तर से शुरू किया .किरंदुल विशाखापत्तनम पसेंजर सुबह दस बजने में दस मिनट पहले जगदलपुर से छूटती है.रायपुर से धमतरी होते हुए जब हम जगदलपुर के आसपास घूम कर सर्किट हाउस पहुंचे तो शाम हो चुकी थी  .रात सर्किट हाउस में बिता कर सुबह ट्रेन पकडनी थी .बस्तर के अपने संवाददाता वीरेंदर मिश्र साथ थे .यह इलाका तीन राज्यों आंध्र ,ओड़ीशा और छत्तीसगढ़ से घिरा है और यहाँ की संस्कृति पर भी इसका असर दिखाई पड़ता है . साल ,आम, महुआ और इमली के पेड़ों से घीरें इस इलाके घने जंगलों की वजह से जमकर बरसात होती है और देखने वाली होती है ..खैर बस्तर पर बाद में पहले अरकू घाटी की तरफ बढ़ें .बाग- बगीचे , जंगल ,पहाड़ और समुंद्र के सम्मोहन से मै बच नही पाता हूँ .बचपन मुंबई में गुजरा .पापा भाभा एटामिक एनर्जी में इंजीनियर थे और इसका आवासीय परिसर चेम्बूर में जहाँ पर था उसके रास्ते में एक बड़ा गोल्फ मैदान ,आरके स्टूडियो और फिल्म अभिनेता राजकपूर का घर भी पड़ता था .उनके घर के आगे बड़े बड़े पेड़ थे जिससे भीतर का हिस्सा ज्यादा नहीं दिखता था .तब पैदल ही स्कूल जाता और कई बार गोल्फ मैदान में देर तक घूमता .मुंबई का वह इलाका काफी हरा भरा था और तब कैनेरी की गुफा देखने गए तो वहां का जंगल देख कर हैरान रह गए .आज भी वह जंगल याद आता है .पर छत्तीसगढ़ के जंगलों के आगे कही के जंगल नही टिकते है .याद है एक बार अजित जोगी ने कहा था - अफ्रीका के बाद उतने घने जंगल सिर्फ बस्तर में ही है . हेलीकाप्टर से बस्तर का दौरा करने पर जंगल का विस्तार ढंग से दिखता है .और इन्ही जंगलों के बीच से आंध्र प्रदेश की अरकू घाटी का रास्ता भी गुजरता है पर ज्यादा हिस्सा ओड़िसा और आंध्र का पड़ता है .

जंगल ,पहाड़ और चौड़े पाट वाली नदियों के ऊपर से गुजरती रेल अचानक हरियाली में प्रवेश करती है .दूर दूर तक फैले धान के हरे भरे खेत और उनके बीच चटख रंगों की साड़ी में आदिवासी महिलाए काम करती नज़र आती है .इससे पहले जब हमारा ड्राइवर चंद्रकांत गाड़ी लेकर जगदलपुर स्टेशन पंहुचा तो गाड़ी रेंगने लगी थी और दो बच्चों के साथ ट्रेन पकड़ना संभव नहीं था .तभी चंद्रकांत ने कहा -अगला स्टेशन अमगुडा कुछ किलोमीटर दूर है वहां से गाड़ी पकड़ लेंगे .अगले स्टेशन पर हम पहुंचे ही ट्रेन आती दिख गई .इस ट्रेन में एक डिब्बा प्रथम श्रेणी का लगता है .जगदलपुर से अरकू घाटी का प्रथम श्रेणी का रेल का किराया तब २६७ रुपए था . बच्चों का किराया आधा हो जाता है . चार लोग थे इसलिए पूरा केबिन मिल गया था .अभी बैठे कुछ देर ही हुए कि छोटा सा स्टेशन आ गया .स्टेशन भी बहुत छोटा सा .हमारा डिब्बा पीछे था जहां  तक चाय वाले भी नहीं पहुँच पाते कि ट्रेन छूट जाती.गनीमत थी कि सर्किट हाउस से फ्लास्क में काफी और नाश्ता/खाना लेकर चले थे .अम्बागांव , जयपोर  ,चट्रिपुट जैसे स्टेशन गुजरने के बाद एक बड़ी नदी आई और फिर पहाडी जंगल में ट्रेन भटक गई .हम खिड़की से बहार का बदलता भूगोल ही देखते जा रहे थे .छोटे स्टेशनों पर दक्षिण भारतीय व्यंजन मिल रहे थे पसिंजर ट्रेन होने के बाद भी हर स्टेशन पर यह समय से छूट रही थी .दो इंजन के सहारे यह ट्रेन करीब साढ़े तीन बजे अरकू पहुंची तो पहले इस छोटे से पहाड़ी हिल स्टेशन पर एक बार फिर काफी पीने की इच्छा हुई .

जारी 

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :