डॉ शारिक़ अहमद ख़ान
ये लखनऊ की कोठी 'दर्शन विलास' है.अवध के नवाब नसीरूद्दीन हैदर के दौर में सन् 1832 में बनकर तैयार हुई.ये कोठी नवाब नसीरूद्दीन हैदर ने अपनी प्रिय पत्नी कुदसिया बेगम के लिए बनवायी थी लिहाज़ा इस कोठी का एक नाम 'कुदसिया महल' भी था,ये कोठी चारों दिशाओं से खुली हुई थी इस वजह से इसका एक नाम 'चौरूख़ी कोठी' भी पड़ा.कुदसिया बेगम इस कोठी में रहा करतीं.नवाब अक्सर इस कोठी में आने पर आम जनता को दर्शन देते इसलिए ये कोठी 'दर्शन विलास' के नाम से प्रसिद्ध हुई.
ये इमारत इंडो-फ़्रेंच शैली की है.कुदसिया बेगम नवाब की पत्नियों में से उनकी प्रिय पत्नी तो थीं लेकिन एक समय ऐसा आया जब नवाब अपनी दूसरी पत्नी तलत क़मर समेत अन्य पत्नियों को अधिक मानने लगे,कुदसिया बेगम को ये बात नागवार गुज़री,लिहाज़ा कुपित हो उन्होंने 'संखिया' खाकर केवल चौबीस बरस की उम्र में ख़ुदकुशी कर ली.नवाब दुखी हो गए लेकिन अब कुदसिया बेगम वापस तो आ नहीं सकती थीं,नवाब ने कुदसिया बेगम की याद में बसंत का मेला लगाया जिसकी रवायत चल निकली.क़रीब तीन बरस बाद सिर्फ़ पैंतीस बरस के नवाब को भी ज़हर देकर अंग्रेज़ों ने मार दिया.
नवाब की कब्र कुदसिया बेगम की कब्र के बगल में बनी और दोनों वहीं ऐसी नींद में ग़ाफ़िल हैं जिस नींद से आज तक कोई नहीं जागा.आज सुबह सैर के दौरान क़ैसरबाग़ स्थित कोठी दर्शन विलास की तरफ़ जाना हुआ तो कोठी की ये तस्वीरें क़ैद कर लीं.स्थानीय पुराने लोगों का कहना है कि उन्होंने अपने पुरखों से सुना है कि इस कोठी में पूरी तरह सजी-धजी कुदसिया बेगम की रूह अक्सर रातों को भटकती थी जो विरह में पगा गीत गाती थी,गीत सुनकर सुनने वाले रोने लगते थे.
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