किस्सा कोठी गुलिस्तान-ए-इरम का

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किस्सा कोठी गुलिस्तान-ए-इरम का

डॉ शारिक़ अहमद ख़ान 
ऐसा नहीं था कि अवध के नवाब बस शराब पीते रहते थे.कबाब खाते रहते थे,नाच देखते रहते थे और स्तंभन शक्ति बढ़ाने का पलंगतोड़ पान खाते रहते थे.ये तो  नवाबों से दुश्मनी की वजह से अंग्रेज़ों और कुछ ग़ैर अंग्रेज़ मक्कारों ने उनके ऊपर चुटकुले बनाए और एक ज़बान से दूसरी ज़बान पर ये चलते गए.फिर मूर्ख देसी लोग उन चुटकुलों को सही मानने लगे.ऐसा समझने लगे कि नवाब लोग चौबीस गुणे सात यही करते होंगे. 
शराब-कबाब और शबाब तो उनका शौक़ था ही लेकिन ये भी सही है कि अवध के नवाब मौक़ा आने पर जंग के मैदान में जाते,दुश्मनों के दांत खट्टे करते,दरबार के काम करते और कई नवाब तो आला दर्जे के विद्वान थे.इसी में से एक नवाब थे नासिरूद्दीन हैदर,जिनके दौर में तस्वीर में नज़र आ रही कोठी गुलिस्तान-ए-इरम बनकर तैयार हुई.गुलिस्तान-ए-इरम का मतलब है जन्नत का गुलिस्तान,स्वर्ग का उपवन.ये कोठी दुनिया के ख़ूबसूरत पेड़-पौधों से घिरी हुई थी. 
इस कोठी में नवाब नासिरूद्दीन हैदर की लाइब्रेरी थी और इसमें क़रीब नब्बे हज़ार किताबें थीं जिन्हें दुनिया के कोने-कोने से मंगाया गया था.विदेशी भाषाओं की किताबों का नवाब अनुवाद भी करवा लेते और उन किताबों को अपनी इस निजी लाइब्रेरी में रखा करते.नवाब को पहरों-पहर यहाँ बैठकर किताबें पढ़ने का शौक़ था.इसी कोठी की छत पर अक्सर शामों को नवाब दावतों का आयोजन करते जिसमें अपने राज्य में रहने वाले अंग्रेज़ रेज़ीडेंट और दूसरे अंग्रेज़ों को भी बुला लेते.अंग्रेज़ों का नवाब नासिरूद्दीन हैदर पर ख़ास बस नहीं चल रहा था,वो उन्हें रास्ते से हटाना चाहते थे.अब अंग्रेज़ों ने कई दरबारियों समेत कोठी में तैनात 'धनियाँ मेहरी' नाम की मुख्य सेविका को लालच दे अपने साथ मिला लिया. 
आख़िर वो क़त्ल की रात आ ही गई जिसका अंग्रेज़ों को इंतज़ार था.धनियाँ मेहरी ने शराब में ज़हर मिलाकर गिलास नवाब को थमा दिया,नवाब प्याला पी गए और इसी कोठी की छत पर सिर्फ़ पैंतीस बरस की आयु में उनकी तड़पकर मौत हो गई.अब अंग्रेज़ों ने अपनी पसंद के नवाब को गद्दी पर बैठा दिया.सन् अट्ठारह सौ सत्तावन में कोठी अंग्रेज़ों द्वारा लूट ली गई और इसमें आग लगा दी गई,किताबें जल गईं.आज शाम लखनऊ के क़ैसरबाग़ स्थित इस कोठी की तरफ़ से गुज़र हुआ तो ये बातें याद आ गईं और हमने कोठी की एक तस्वीर भी अपने कैमरे से क़ैद कर ली. 
 

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