देश में कई जगह सूखा ,पलायन शुरू !

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देश में कई जगह सूखा ,पलायन शुरू !

नई दिल्ली.देश का मीडिया बंगाल के आगे कुछ देख नहीं पा रहा और विदेशी मीडिया भारत में सूखे की खबर दे रहा है .दि गार्जियन ने देश के सूखे पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है.कुछ सूबों में सूखा किस कदर भयावह हो गया है इसका अंदाजा भी लगा पाना किसी के लिए मुश्किल है.यह बात निश्चित तौर पर कही जा सकती है कि उसकी तस्वीर देखने और सुनने के बाद किसी के भी जेहन में सिहरन पैदा हो जाएगी.रिपोर्ट के मुताबिक सैकड़ों गांवों के लोगों को पानी की किल्लत के चलते अपने घरों से दरबदर होना पड़ा है.गांव के गांव वीराने हो गए हैं.रिपोर्ट की मानें तो वहां खोजने पर अब भूत भी नहीं मिलेगा.

हाल के दिनों में देश को सर्वाधिक उच्च तापमान का सामना करना पड़ा है.यहां तक कि राजधानी दिल्ली का तापमान 48 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था.चुरू ने एक बार फिर 50.8 डिग्री सेल्सियस का तापमान हासिल कर बाजी मार ली है.और धरती का सबसे गर्म स्थान बन गया है।

देश की वित्तीय राजधानी मुंबई से महज 250 किमी दूर महाराष्ट्र के तमाम गांव निर्जन हो गए हैं.एक अनुमान के मुताबिक इलाके के 90 फीसदी लोग पलायन कर चुके हैं.गांव में केवल बुजुर्ग और बीमार बचे हैं जिन्हें या तो ढोया नहीं जा सकता है या फिर किसी दूसरी मजबूरी में उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया है.ये तस्वीर महाराष्ट्र के बीड जिले हतकरवादी गांव की है जो जिला मुख्यालय से महज 20 किमी दूर स्थित है.45 डिग्री सेल्सियस के तापमान में इलाके के सभी नल और कुएं सूख गए हैं.अधिकारियों का कहना है कि 1972 के सूखे से भी बुरी स्थिति है.सूबे के तकरीबन ढाई करोड़ लोग इस संकट की चपेट में हैं.दिसंबर से गांवों से शुरू हुआ पलायन मई में पूरा हो गया जब सारा गांव ही खाली हो गया.हतकरवादी गांव की 2000 की आबादी में केवल 10-15 परिवार बचे हैं।


एक अनुमान के मुताबिक पड़ोसी कर्नाटक के 80 फीसदी जिले और महाराष्ट्र के 72 फीसदी सूखे की चपेट में हैं.इन जिलों में फसलें न के बराबर हुईं.नतीजतन 8 करोड़ किसानों के सामने जीवन का संकट खड़ा हो गया है.बताया रहा है कि महाराष्ट्र के गांवों में रोजाना के स्तर पर 6000 टैंकरों के पानी की सप्लाई हो रही है.और पानी के स्रोतों के साझा होने के चलते दोनों राज्यों के बीच अक्सर विवाद खड़ा हो जा रहा है.


पानी के इस भीषण कमी की सबसे ज्यादा मार खेती आधारित आबादी पर पड़ी है.फसलें चौपट हो चुकी हैं और लोग पशुओं को उनके हाल पर छोड़ने के लिए मजबूर हो गए हैं.पानी की सबसे ज्यादा पशुओं पर पड़ी है जो जगह-जगह पड़े उनके शवों के तौर पर देखा जा सकता है.प्रमुख स्थानीय फसलों में मकई, सोया, कॉटन, दाल और मूंगफली पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी हैं.

सूखे से सबसे ज्यादा प्रभावित महाराष्ट्र के अकेले मराठवाड़ा इलाके में पिछले पांच सालों में 4700 किसानों ने आत्महत्या की है.इसमें पिछले साल के 947 किसान भी शामिल हैं.लेकिन इस बात को लेकर कहीं कोई चर्चा नहीं है.और अब सरकार ने भी इन आंकड़ों को आधिकारिक तौर पर इकट्ठा करना बंद कर दिया है.शायद उसको इसी में समस्या का समाधान दिखता है.लेकिन आंख बंद कर लेने से संकट हल नहीं होता है.सचाई यह है कि यह संकट और बढ़ गया है.बीड में तो हालत यह है कि लोगों के पास शौच और कपड़े धोने तक के लिए पानी नहीं है.और प्रदूषित पानी पीने की वजह से अस्पतालों में मरीजों का तांता लग गया है.साथ ही डिहाईड्रेशन और पेट संबंधी तमाम बीमारियों ने ऊपर से हमला बोल दिया है।

लिहाजा ऐसे लोग जो पानी खरीद कर उले हासिल कर सकते हैं उन्हें भी 1000 लीटर पानी के लिए 200 रुपये देने पड़ रहे हैं.यहां तक कि कौए भी गंदा पानी पीने से इंकार कर दे रहे हैं.क्योंकि झीलों और तालाबों में वही बचा है.


बीड सिटी अस्पताल के डॉक्टर देशमुख ने बताया कि “पिछले डेढ़ महीनों में डायरिया, गैस्ट्रिक के मरीजों में 50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।” उन्होंने इसके लिए प्रदूषित पानी के सेवन को प्राथमिक तौर पर जिम्मेदार ठहराया है साथ ही उन्होंने लोगों को पानी को गर्म कर पीने की सलाह दी है.22 लाख की आबादी वाले बीड जिले में तकरीबन 2.5 लाख को सुबह से ही पानी की तलाश में निकल जाना पड़ता है.बाकियों को पानी के लिए अपने पड़ोसियों से गुजारिश करते हुए देखा जा सकता है.

प्रधानमंत्री का स्वच्छता और घर-घर में शौचालय बनवाने का अभियान यहां दम तोड़ता दिख रहा है.शिवाजीनगर की ऊषा जाधव ने बताया कि उनका परिवार ट्वायलट इस्तेमाल करना अब बंद कर दिया है.क्योंकि यह अब लक्जरी कटेगरी में आ गया है.परिवार के सभी सदस्य रात होने का इंतजार करते हैं जिससे वो खुले में शौच के लिए जा सकें.उनका कहना है कि वो अब फ्लश में 5-10 लीटर पानी का इस्तेमाल नहीं कर सकती हैं क्योंकि उन्हें पानी खरीदना पड़ रहा है. 


एक अनुमान के मुताबिक भारत का 43 फीसदी हिस्सा सूखे की चपेट में है.और यह सिलसिला 2015 से चल रहा है इसमें 2017 अपवाद है.महाराष्ट्र के 20 हजार गांवों में भीषण पानी का संकट है.यहां के 35 मुख्य डैम पूरी तरह से सूख चुके हैं.बाकी 1000 छोटे बांधों में पानी 8 फीसदी से भी नीचे चला गया है.इन बांधों तक पानी पहुंचाने वाली नदियां भी सूख चुकी हैं.उनमें पानी का नामोनिशान तक नहीं है।

भारत के पानी की जरूरतों का 40 फीसदी हिस्सा भूमिगत जल से पूरा होता है.लेकिन वह भी संकटग्रस्त है.नीति आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली, बंगुलूरू, चेन्नई और हैदराबाद समेत 40 शहरों में 2020 तक भूमिगत जल खत्म हो जाएगा.और 40 फीसदी आबादी जो भूमिगत जल पर निर्भर है उसे 2030 तक इस साधन को भी छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.जनचौक डाट काम  ,फोटो आज की आवाज 

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