'जार्ज को जिंदा नहीं पकड़ना था '

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'जार्ज को जिंदा नहीं पकड़ना था '

के विक्रम राव 
आज तीन जून बागी लोहियावादी जार्ज मैथ्यू फर्नांडिस 91 वर्ष के होते.जिस युवा समाजवादी के बंद के एक ऐलान पर सदागतिमान, करोड़ की आबादीवाली मुंबई सुन्न पड़ जाती थी.जिस मजदूर पुरोधा के एक संकेत पर देश में रेल का चक्का जाम हो जाता था.जिस सत्तर वर्षीय पलटन मंत्री ने विश्व की उच्चतम रणभूमि कारगिल की अठारह बार यात्रा कर मियां मोहम्मद परवेज मुर्शरफ को पटकनी दी थी.सरकारें बनाने-उलटने का दंभ भरनेवाले कार्पोरेट बांकों को उनके सम्मेलन में ही जिस उद्योग मंत्री ने तानाशाह (इमर्जेंसी में) के सामने हड़बड़ाते हुये चूहे की संज्ञा दी, वही पुरूष सुधबुध खोये, दक्षिण दिल्ली के पंचशील पार्क में क्लांत जीवन बसर करते चिरनिद्रा में सो गया था.जार्ज के देशभर में फैले मित्र आज याद करते हैं, नम आँखों से.विशेषकर श्रमिक नेता विजय नारायण (काशीवासी) और साहित्यकार कमलेश शुक्ल दोनों मेरे साथ तिहाड़ जेल में बडौदा डायनामाइट केस में जार्ज के 24 सहअभियुक्तों में रहे.अपने बावन वर्षों के सामीप्य पर आधारित स्मृतियां लिये एक सुहृद्र को याद करते मेरे इस लेख का मकसद यही है कि कुछ उन घटनाओं और बातों का चर्चा हो, जो अनजानी रहीं.काफी अचरजभरी रहीं. 

मसलन यही जून का महीना था.चालीस साल बीते.इन्दिरा गांधी का हुकुम स्पष्ट था सीबीआई के लिये कि भूमिगत जार्ज फर्नांडिस  को जीवित नहीं पकड़ना है.दौर इमर्जेंसी का था.दो लाख विरोधी सीखचो के पीछे ढकेल दिये गये थे.कुछ ही जननेता कैद से बचे थे.नानाजी देशमुख, कर्पूरी ठाकुर आदि.जार्ज की खोज सरगर्मी से थी.उस दिन (10 जून 1976) की शाम को बडौदा जेल में हमें जेल अधीक्षक ने बताया कि कलकत्ता में जार्ज को पकड़ लिया गया है.तब तक मैं अभियुक्त नम्बर एक था.मुकदमों का शीर्षक ''भारत सरकार बनाम मुलजिम विक्रम राव तथा अन्य'' था.फिर क्रम बदल गया.जार्ज का नाम मेरे ऊपर आ गया. 
तिहाड़ जेल में पहुँचने पर साथी विजय नारायण से जार्ज की गिरफ्तारी का सारा किस्सा पता चला.कोलकता के चौरंगी के पास संत पाल कैथिड्रल था.बडौदा फिर दिल्ली से भागते हुये जार्ज ने कोलकता के चर्च में पनाह पाई.कभी तरूणाई में बंगलौर में पादरी का प्रशिक्षण ठुकरानेवाले, धर्म को बकवास कहनेवाले जार्ज ने अपने राजनेता मित्र रूडोल्फ राड्रिक्स की मदद से चर्च में कमरा पाया.रूडोल्फ को 1977 में जनता पार्टी सरकार ने राज्य सभा में एंग्लो-इण्डियन प्रतिनिधि के तौर पर मनोनीत किया था.सभी राज्यों की पुलिस और सीबीआई के टोहीजन शिकार को सूंघने में जुटे रहे.शिकंजा कसता गया.चर्च पर छापा पड़ा.पादरी विजयन ने जार्ज को छिपा रखा था.पुलिस को बताया कि उनका ईसाई अतिथि रह रहा है.पर पुलिसिया तहकीकात चालू रही.कमरे में ही एक छोटे से बक्से में एक रेलवे कार्ड मिला.वह आल-इंडिया रेलवेमेन्स फेडरेशन के अध्यक्ष का प्रथम एसी वाला कार्डपास था.नाम लिखा था जार्ज फर्नाण्डिस.बस पुलिस टीम उछल पड़ी, मानो लाटरी खुल गई हो.तुरन्त प्रधानमंत्री कार्यालय से संपर्क साधा गया.बेशकीमती कैदी का क्या किया जाए ? उस रात जार्ज को गुपचुप रूसी फौजी जहाज इल्यूशिन से दिल्ली ले जाया गया.इन्दिरा गांधी तब मास्को के दौरे पर थीं.उनसे फोन पर निर्देश लेने में समय लगा.इस बीच पादरी विजयन ने कोलकता में ब्रिटिश और जर्मन उपराजदूतावास की बता दिया कि जार्ज कैद हो गये है.खबर लन्दन और बाॅन पहुंची.ब्रिटिश प्रधान मंत्री जेम्स कैलाघन, जर्मन चांसलर विली ब्राण्ड तथा नार्वे के प्रधानमंत्री ओडवार नोर्डी जो सोशलिस्ट इन्टर्नेशनल के नेता थे ने एक साथ इन्दिरा गांधी को मास्को में फोन पर गंभीर परिणामों से आगाह किया यदि जार्ज का एनकाउन्टर कर दिया गया तो.वर्ना जार्ज की लाश तक न मिलती.गुमशुदा दिखा दिया जाता.वे बच गये और तिहाड़ जेल में रखे गये. 
 

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