ठर्रा के सामने कोरोना !

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ठर्रा के सामने कोरोना !

आलोक कुमार  
पटना.मुसहरों की स्थिति दलितों में सबसे कमजोर है. गरीबी और लाचारी ऐसी कि ये अक्सर चूहा, घोंघा, सितुआ खाकर जिंदगी काटते हैं.उस स्तर का महादलित दीघा मुसहरी में रहते हैं.यहां पर शुरूआती दौर में चेचक,अतिसार,कुपोपण,निमोनिया आदि से मासूम बच्चे मरते रहे.दीघा मुसहरी में मुसहरों में मौत की सूचना नहीं है. लेकिन चिंता की बात यह है कि वे वैक्सीन लेने को हरगिज तैयार नहीं. 

आरंभ में दीघा क्षेत्र के महादलित मुसहर खेतिहर मजदूर थे. राजीव नगर में किसानों के खेत में मजदूरी किया करते थे.खेती योग्य किसानों की जमीन को बिहार राज्य आवास बोर्ड ने अधिग्रहण कर लिया है.बिहार राज्य आवास बोर्ड ने 1024.52 एकड़ जमीन अधिग्रहण कर रखा है.यहां पर किसान मकई, प्याज,आलू,धान,गेहूं, सब्जी आदि उपजाते थे.यहां के उत्पादन सामग्री को किसान दीघा हाट में ले जाकर बेचते थे.आज भी दीघा हाट बरकरार है. बाहर से सब्जी लाकर बेचा जाता है. 
 
बिहार राज्य आवास बोर्ड के द्वारा राजीव नगर की जमीन को अधिग्रहण करने के बाद खेत में मजदूर काम नहीं कर सकने के कारण महिलाएं और बच्चे रद्दी कागज आदि चुनकर बेचने लगे.पुरूष लोग बगीचा में लकड़ी काटने और ठेका पर लेकर काम करने लगे. किसी तरह से जीविका चलाने लगे. 

महुआ और मिठ्ठा से महुआ दारू बना शुरू कर दिये. तब यह धंधा कुटीर उघोग का रूप ले लिया.उत्पाद विभाग के पुलिस और अधिकारियों के द्वारा लाख प्रयास करने के बाद भी कुटीर उघोग ठप नहीं हो पाया. पुरूष काम करके आने के थकावट दूर करने के नाम पर दारू पीने लगे.इस तरह मुसहर महुआ दारू से जीने और दारू पीकर मरने लगे.जानलेवा यक्ष्मा बीमारी होने के बाद अनगिनत मुसहर मौत के गाल में समा गये. 

उर्मिला देवी नामक महिला की मौत हो गयी.उसे  सिरोसिस ऑफ लीवर हो गया था.पेट और पैर में सूजन हो गया. इसके पहले महुआ दारू पीकर यक्ष्मा बीमारी की चपेट में आकर अनगिनत मुसहरों की मौत हो गयी है.एक बबन मांझी नामक मुसहर का कहना था कि हम लोगों को बासी पैसा नहीं धारण होता है. आज जितना भी कमाते हैं, उतना खा-पीकर खत्म कर देना है.बचत करने का सवाल ही नहीं उठता है. ऐसा करने से कुछ माह के अंदर परलोक सिधार चुके. 

यह हाल राजधानी पटना का है.जहां मंत्री से लेकर संतरी तक रहते हैं.पटना नगर निगम के वार्ड नम्बर-1 में है दीघा मुसहरी.वार्ड पार्षद हैं छठिया देवी. महादलित मुसहर समुदाय की हैं.परंतु अपने बिरादरी के लोगों का कल्याण और विकास करने की सृष्टि नहीं है. 

मजे की बात है कि यहां पर बिहार महादलित आयोग के द्वारा स्वास्थ्य केंद्र खोलना था.जो महादलितों की उदासीनता के कारण दीघा पोस्ट ऑफिस रोड में संचालित है.इसके पहले आंगनबाड़ी केंद्र भी महादलित बच्चों की पहुंच से दूर संचालित है. 

महादलितों की परिस्थिति को देखते हुए इस संदर्भ में कुर्जी होली फैमिली हॉस्पिटल के सामुदायिक स्वास्थ्य एवं ग्रामीण विकास केंद्र ने कदम उठाया. केंद्र की तत्कालीन निदेशिका आन डिसूजा और सामुदायिक विकास पर्वेक्षक आलोक कुमार ने संयुक्त प्रयास करके युद्धस्तर पर टीकाकरण व स्वास्थ्य शिक्षा अभियान चलवाया.ऐसा करने पर बच्चों की मृत्यु दर पर नियत्रंण पायी जा सकी. 

इसके बाद एकएक कर बुर्जुग और नौजवान परलोक सिधारने लगे.इस ओर व्यापक जन जागरण और जन शिक्षा कार्यक्रम करने के बाद मृत्यु पर लगाम लगा.अब वैश्विक कोरोना सर है.प्रथम लहर में दीघा मुसहरी में नुकसान नहीं हुआ.द्वितीय लहर के समय के बारे में विकास मित्र सुधीर कुमार कहते हैं कि दीघा मुसहरी में 122 घर है.इसमें 175 परिवारों में 1000 से अधिक लोग रहते हैं.यहां के 400 महादलितों ने कोविशील्ड के प्रथम डोज लिये.दो जून की रोटी के चक्कर में पड़ जाने महादलितों ने द्वितीय डोज नहीं लिये.केवल 2 ही लोग डोज लिये.एक पटना एम्स में और दूसरे विकास मित्र हैं. 

यहां के महादलितों का कहना है कि देशी ठर्रा के सामने कोरोना नहीं ठहरता हैं.वैक्सीन दिलवाने के बाद डॉक्टर के साथ अन्य लोग भी मर जा रहे हैं.हमलोग वैक्सीन नहीं दिलवाएंगे.उन लोगों को आने वाले तीसरी लहर से भी खौफ नहीं हैं.मास्क का प्रयोग नहीं करते हैं.एक जगह बैठकर गपबाजी करते रहते हैं.इनको प्रभु रक्षा करना.

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