विनाश का ताजा लक्ष्य लक्षद्वीप

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विनाश का ताजा लक्ष्य लक्षद्वीप

कुमार सिद्धार्थ  
देश की मुख्य-भूमि से कोई साढ़े चार सौ किलोमीटर दूर, अरब महासागर की गोद में बसा 36 द्वीपों का समूह लक्षद्वीप प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक रूप से अद्भुत है. यह देश का संभवतः एकमात्र समुद्री किनारा है, जहां सागर नीला दिखता है. लक्षद्वीप की सांस्कृतिक व भौगोलिक विशेषताएं केरल, तमिलनाडु एवं मालदीव से मिलती-जुलती हैं. अपने प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर लक्षद्वीप केरल के लोगों के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ा हैं और यहां की अधिकांश आबादी मलयालम बोलती है. यह द्वीप देश का इकलौता मूँगा द्वीप हैं, जो दूसरे द्वीप समूहों से इसे अलग किस्म की विशिष्टता प्रदान करती है. 
इतिहास पर नजर डाले तो एक नवंबर 1956 को इन द्वीपों को केरल के मालाबार इलाके से अलग करके केंद्र शासित क्षेत्र बनाया गया था. लक्षद्वीप में 95 फीसदी मुस्लिम आबादी है. 36 द्वीपों वाले लक्षद्वीप में केवल 10 द्वीपों पर ही मानव बसाहट है. 12 द्वीप अब तक वीरान हैं और 14 बहुत छोटे द्वीप हैं, जिनमें अपार समुद्री संपदा और पशु-पक्षियों का बसेरा है. इनका कुल क्षेत्रफल 32 वर्ग किलोमीटर है. सन् 2011 की जनगणना के अनुसार, इस केंद्र शासित प्रदेश की कुल जनसंख्या 64,473 थी. यहां की मुख्य पैदावार नारियल है, मछली पालन विशेष रूप से टूना मछली का बड़ा कारोबार होता है। 
लक्षद्वीप में कई विचित्रताएं दिखाई देती हैं. मसलन - पूरे द्वीप समूह में कभी, न कोई चोरी की घटना दर्ज हुई,  न हत्या की और न ही लूट या बलात्कार की. यहां घरों में कभी ताले नहीं लगते. न्यायालय हैं, लेकिन अपराध-मुक्त क्षेत्र होने से इन न्यायालयों की कोई अहमियत नहीं है. इन द्वीप समूहों में पिछले 74 वर्षों से पूर्णतः शराबबंदी का पालन हो रहा है. ये ऐसा इलाका है, जहां ‘नारी प्रधान व्यवस्था’ में महिलाएँ समाज में विशिष्ट हैसियत रखती हैं.   
अपनी संस्कृति और परम्‍परा पर, नये प्रशासक प्रफुल्‍ल खोडा पटेल व्‍दारा लिये गए अजीबोगरीब कानूनी फैसलों की वजह से मंडरा रहे खतरे के चलते आजकल यही लक्षद्वीप सुर्खियों में है. ताजा विवाद ‘आधुनिक विकास’ की तैयारी के सिलसिले में लागू किये जा रहे कानूनों से उपजा है. पहले प्रफुल्‍ल पटेल गुजरात की नरेंद्र मोदी सरकार में गृहमंत्री थे और 2016 में उन्हें दमन-दीव-दादरा और नगर-हवेली के प्रशासक के रूप में नियुक्त किया गया था. लक्षद्वीप में उनकी नियुक्ति से ही अंदाजा हो गया था कि किसी विशेष एजेंडा के अन्तर्गत उन्हें यह जिम्मेदारी दी गई है. 
 
लक्षद्वीप के 35 वें प्रशासक के रूप में नियुक्‍त राजनीतिज्ञ प्रफुल्‍ल पटेल ने अपने पांच माह के कार्यकाल के दौरान कुछ कानून तैयार किए हैं. इनमें ‘एनिमल प्रिजर्वेशन रेग्युलेशन,’ ‘लक्षद्वीप प्रिवेंशन ऑफ एंटी सोशल एक्टिविटीज रेग्युलेशन,’ ‘लक्षद्वीप डेवलपमेंट अथॉरिटी’ और ‘लक्षद्वीप पंचायत स्टाफ रूल्स’  में संशोधन आदि शामिल हैं. प्रशासक द्वारा बनाए गए इन कानूनों के प्रावधान ऐसे हैं जिनका विरोध स्थानीय मुस्लिम, जो कुल आबादी के 95 प्रतिशत हैं, कर रहे हैं. 
लक्षद्वीप प्रशासक द्वारा लागू कानूनों में एक है – गौमांस या बीफ और उसके उत्पादों की बिक्री, संग्रहण या परिवहन पर रोक. ऐसा करने वाले व्यक्ति को सात से 10 साल तक की सजा और एक से पांच लाख रुपयों तक का जुर्माना देना होगा. गौरतलब है कि देश के कई राज्यों में कानूनन बीफ की खरीद – बिक्री करने और खाने पर कोई पाबंदी नहीं है.  केरल और लक्षद्वीप में, जहाँ हिन्दू-मुस्लिम सभी परंपरागत रूप से बीफ खाते हैं, उसकी खरीद – बिक्री पर प्रतिबंध कैसे स्वीकार किया जा सकता है. असम में भी, जहाँ हाल ही में भाजपा दोबारा सत्ता में आई है, बीफ खाने पर कोई पाबंदी नहीं है. आखिर देश के सभी पूर्वोत्तर राज्यों – अरुणाचल, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और त्रिपुरा- के अतिरिक्त गोवा, बंगाल और केरल में कानूनन बीफ की खरीद – बिक्री करने और खाने की अनुमति है. तब हड़बड़ी में लक्षद्वीप में लगाये प्रतिबंध के पीछे प्रशासक की मंशा पर शंका होती है. 
इसके अलावा प्रशासन ने एक और अजीब फैसला लिया है, जिसमें शराब की बिक्री को बढ़ाने की नीति बनाई गई है. इन मुद्दों को लेकर तमाम राजनीतिज्ञ, स्थानीय निवासी विरोध कर रहे हैं. आजादी के 74 वर्ष बाद भी देश में शराबबंदी पर पूर्ण पाबंदी आज तक नहीं लगाई जा सकी, लेकिन गुजरात और लक्षद्वीप जैसे कुछ राज्यों में आज भी पाबन्दी है. गुजरात से गए प्रफुल्ल पटेल ने लक्षद्वीप में शराबबंदी पर पाबंदी हटाने पर काम करना आरंभ कर दिया है. लक्षद्वीप में सात दशक से अधिक बरस तक शराब पर पाबंदी लागू रही है, ऐसे में इस पाबंदी को समाप्त करने की आवश्यकता क्‍यों आन पड़ी, समझ से परे है. इस पर प्रफुल्‍ल पटेल कहना है कि द्वीप समूह में पहले से अवैध शराब की बिक्री हो रही है और रोक हटने से गुणवत्‍तापूर्ण शराब लोगों को मिल सकेगी और पर्यटन विकास के लिए भी यह जरूरी है.  
तीसरा कानून पंचायत चुनाव में दो बच्चों का नियम लगाए जाने का है, जबकि ये कायदे लक्षद्वीप के सामाजिक ताने-बाने के मुताबिक नहीं हैं, साथ ही गैरजरूरी भी प्रतीत होते हैं. लक्षद्वीप में जन्मदर देश में सबसे कम है और साक्षरता-दर भी शत-प्रतिशत है. यहां की परंपरा में लड़कियों के पैदा होने पर खुशियां बनाई जाती है, वहीं शादी के बाद लड़के को अपना घर छोड कर लड़की के घर पर रहने का रिवाज है. ऐसे में यहां दो से ज्यादा संतान होने पर चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य करार दिए जाने का नियम कितना न्‍यायसंगत होगा. 
बड़ा विरोध ‘प्रीवेंशन ऑफ एंटी सोशल एक्विविटीज एक्ट’ को लेकर है. यहां अपराध-दर लगभग शून्‍य होने पर भी, इस कानून के तहत सख्ती का प्रावधान है. इसको लेकर प्रशासक का तर्क है कि हम इस द्वीप को समग्र रूप से विकसित करने की योजना बना रहे हैं. ऐसे में कानून और व्यवस्था के मोर्चे पर समझौता नहीं किया जा सकता. 
इन कानूनों के अलावा 'लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण नियमन - 2021'  को लेकर भी बवाल मचा है. इस नियम के तहत 'व्यवस्थापक को नगर नियोजन या किसी अन्य विकास गतिविधि के लिए स्थानीय लोगों को उनकी संपत्ति से हटाने का अधिकार दिया गया है. इस संशोधन के तहत विकास योजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण किया जाएगा. प्रशासक प्रफुल पटेल का तर्क हैं कि आज देश के लोग मालदीव जाने को उत्सुक हैं, पर लक्षद्वीप कोई भी नहीं आना चाहता. ऐसे में इस द्वीप पर पर्यटन के विकास के लिए ही इस कानून को लाया गया है. 
दरअसल, भारत सरकार ने द्वीपों के समग्र विकास को उच्च प्राथमिकता दी है और इस प्रक्रिया को गति प्रदान करने का ‘नीति आयोग’ को आदेश दिया गया है. ‘नीति आयोग’ चाहता है कि यह द्वीप समूह दक्षिण एशिया के प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो और पर्यटन परियोजनाओं के लिए निवेश आकर्षित कर सके. इसके लिए लक्षद्वीप में बांगरम, चेरियम, मिनिकॉय, सुहेली और टिन्नाकारा द्वीपों की पहचान की गयी है. कवरत्ती को स्मार्ट सिटी बनाने की भी बात चल रही है. हाल ही में प्रशासन ने सरकारी कार्यालयों के पुनर्निर्माण के लिए टेंडर आमंत्रित किये है. ऐसी योजना है कि द्वीप समूह पर बड़े जहाजों की बर्थिंग (रुकने की जगह) सुविधाओं के विकास में निवेश किया जाए. नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार यहां के छह द्वीपों में 1092 होटल रूम बनाने की तैयारी है. इन द्वीपों के छोटे आकार को देखते हुए नीति आयोग ने फ्लोटिंग विला का भी प्रस्ताव रखा है. 
प्रशासक के नये फैसले कई गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं. ईको पर्यटन और द्वीपों के विकास की आड़ में यहां द्वीपों के निवासियों के जीवन और संस्कृति के लिए खतरा पैदा हो गया है. इनका केरल के साथ संबंध घनिष्ठ रहा है और वे शिक्षा, रोजगार, चिकित्सा और व्यवसाय के माध्यम से जुड़े हुए हैं. इस पूरी कवायद से प्रतीत होता है कि केरल के साथ लक्षद्वीप के संबंधों को भी समाप्‍त करने की ‘पहल’ दिखती है. इस उद्देश्य के लिए केरल के कोचीन बंदरगाह के स्‍थान पर कर्नाटक के मंगलुरु बंदरगाह पर निर्भर रहने की प्रक्रिया को आगे बढाया जा रहा है. इससे स्‍थानीय व्‍यापार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. 
लक्षद्वीप के मौजूदा संकट को उजागर करने के लिए पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया आंदोलन उभरा है. लक्षद्वीप और केरल के लोग ‘लक्षद्वीप बचाओ’ के नारे के साथ सोशल मीडिया पर छाए हुए है. लक्षद्वीप के संदर्भ में कुछ सांसदों ने प्रशासक के फैसलों के खिलाफ राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखा है जिसमें कहा गया है कि इन मसौदों का उद्देश्य लक्षद्वीप की संस्कृति को खत्म करना है और लक्षद्वीप को ‘दूसरा कश्मीर’ बनाने की तैयारी की जा रही है. (सप्रेस)   
 




 

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