असहमति कांग्रेस की स्थायी पूंजी रही है

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असहमति कांग्रेस की स्थायी पूंजी रही है

चंचल  
असहमति कांग्रेस की स्थायी पूंजी रही है . दिलचस्प हिस्सा है . जिस तरह  कांग्रेस आंदोलन को दासी की तरह चलाती रही , उसी तरह वह असहमति को भी गले लगाती रही . वरना कोई कारण नही कि 136 साल पुरानी पार्टी उत्तरोत्तर युवा होती रहे . कांग्रेस के प्रखर आलोचक ,समाजवादी  विचारक स्वर्गीय मधु लिमये अपनी पुस्तक ' राजनीति के अंतर्विरोध ' में लिखते हैं -  
' कांग्रेस देश की नही दुनिया की सवसे  बड़े जनाधार की पार्टी है . इसके समाप्त होने की भविष्यवाणी कई बार हुई , लेकिन हरबार यह नई  ताजगी के साथ उठ खड़ी होती है . '  
  कांग्रेस विशेष कर गांधी जी , अपने अंदर की असहमति से यह खुद को परिमार्जित करती है .  चमक के लिए जिस तरह बर्तन को रगड़ा जाता है , कांग्रेस भी उसी तरह अपनी चमक के लिए खुद को मॉजती है . यह उसका परिमार्जन  है . और असहमति उसका आधार . हम विस्तार में नही जाएंगे . संक्षेप में देख  लीजिये .  
 1916 में गांधी जी दक्षिण अफीका से लौट कर भारत आते हैं . उस समय कांग्रेस व्यक्तिवाद में पड़ी ऊंघ रही थी . बाल ( गंगा धर तिलक ) गोपाल (  गोपाल कृष्ण  गोखले ) पाल ( विपिन चंद पाल ) के साथ साथ एक युवावर्ग भी जुड़  रहा था . जवाहर लाल नेहरू , वल्लभ भाई पटेल ,  मोहम्मद अली जिन्ना , वगैरह हैं . गांधी का भी प्रवेश इसी जमात में होता है . '  16  लखनऊ कांग्रेस में गांधी का छोटा सा भाषण है . इसके पहले जिन्ना साहब की जोरदार तकरीर हो चुकी है . गांधी ने  तीन या चार सतर में अपनी बात कह गए . लुब्बे लुबाब था -  
   ' हम कुछ पढ़े लिखे लोग मिल बैठ कर भाषण करदें , कुछ लिबरल पत्रिकाएं उसे छाप भी दें तो उससे कुछ नही होगा . सुराज के लिए हमे  गांवों में जाना होगा , खेत खलिहान को समझना होगा . ' 
   कांग्रेस के अंदर यह पहली असहमति थी .  गांधी यहां अकेला दिखता है , अपनी राय का . चालू ढर्रे से असहमति लिए अकेला दिखता है लेकिन वह मंच के नीचे पहुंच गया . जिन्ना के बाद गांधी जी जब  बोलेने खड़े हुए तो सामने बैठी जनता उठ कर जाने लगी लेकिन गांधी के आखिरी वाक्य के पहले ही वह लौट कर बैठ गयी और गांधी से अपना मिलान करने लगी . चंपारन के  राजकुमार शुक्ल को नेता मिल गया था . असहमति का यह प्रयोग कांग्रेस के परिमार्जन के काम आयी और दूसरे दिन से कांग्रेस का नया रूप सामने आया . इसी असहमति से  ' चंपारन ' उठा . और चंपारन ने देश को ही नही दुनिया को चौंका दिया . केवल इतना ही नही हुआ इस असहमति के साथ कांग्रेस भी  गांधी की तरफ बढ़ी . चंपारन वापसी के बाद जिन्ना साहब ने अपने घर पर दावत दी थी . यहां पटेल , मौलाना , कृपलानी सब हैं . पटेल जी सब से मिलवाते हैं . पंडित नेहरू की तरफ इशारा करते हैं , आप तो इन्हें पहचानते ही होंगे ? बापू का सधा  हुआ जवाब आता है - हाँ , अब पहचानने लगा हूँ . इशारा था एक अमीर बाप मोतीलाल नेहरू का बेटा , कोट , बूट टाई , पतलून छोड़ कर खादी के लिबास में खड़ा मिला . कांग्रेस अभिजात्य वर्चश्व से निकल कर भा  ' भारत '  की ओर चल पड़ी .  
     चम्पारन में गांधी जी ने अपनी असहमति को  नए कायदे से पेश किया . अब तक कांग्रेस के नेता   अंग्रेजी  हुकूमत के खिलाफ उठाये गए किसी भी तरह के कदम पर अपना बचाव करते थे . गांधी जी कांग्रेस की इस चालू विधा को उलट दिया . चंपारन में चले अपने मुकदमे में गांधी जी ने अपना बचाव  नही किया , उल्टे सजा की मांग तक कर  डाली और साबित किया कि हम यानी किसान नही गलत है , बल्कि तुम्हारा कानून ही गलत है .हम अपनी बात पर अडिग है जो सजा देना हो दे दीजिये . अदालत बौखला गयी . पहले तो सौ रुपये के मुचलके पर छोड़ने की बात कही , गांधी जी ने उसे भी नही माना . हम एक पैसा भी नही देंगे .  अंत मे अदालत ने उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया  . असहमति  तवारीख में टर्निंग प्वाइंट बन कर दर्ज है .  
      असहमति ?  जिससे असहमत हैं उसके प्रति आपका क्या कर्तव्य है ?  क्या सुलूक करेंगें उसके साथ ?  कैसा  होगा आपकी असहमति का रूप ?  
   ( बोर मत होइए . गिरोहियों के एक झुंड का जवाब है . बेचारे इतिहास से बेखबर हैं . उनके लिए वक्त जाया कर रहा हूँ , आपतो सब जानते ही हैं . )  
 जी ! असहमति का रूप ?  
  - हम आपसे सहमत नही हैं , लेकिन हम किसी तरह की हिंसा का सहारा नही लेंगे , नही आपसे सहमत होंगे . तलवार की नोक पर अगर आप हमसे राम नाप जपवाना चाहें तो ऐसा नही होगा . मर जाना पसंद करूँगा . जोर जबरदस्ती नही .  हमारा हथियार है - सविनय अवज्ञा . इसे कहते है सिविन नाफरमानी या  सिविल डिसॉबीडीएन्ट . आम भाषा मे - न मारेंगे न मानेगे .  
कांग्रेस ने , गांधी ने,   सिविल नाफरमानी का यह हथियार अवाम को सौंप दिया . लड़ो ज़ुल्म के खिलाफ .  
तीन साल में कांग्रेस अंग्रेजी निजाम से भी ताकतवर हो गयी ( जनता में पकड़ के सवाल पर ) अंग्रेजी निजाम के पास जुल्म  की ताकत थी , हुकूमत की हनक थी , कांग्रेस लैस थी वह अवाम के दिल मे बैठ गयी थी , सत्य पर भरोसा बढ़ रहा था . तीन साल के अंतराल में कांग्रेस फिसल गई . कल यक वही जनता ललका कपड़ा देख कर भागती थी वही जनता 4 फरवरी 1922 को  गोरखपुर के चौरी चौरा में एक थाने में आग लगा देती है . 22 सिपाही मारे जाते हैं .  
     बापू असहज हो जाते हैं . हम अभी आजादी के काबिल नही हुए हैं , ताकत मिलते ही हम हिंसा की ओर चले , यह नही  होगा . फिर  अंग्रेजी हिंसा और हमारी हिंसा में क्या फर्क है ? सत्याग्रह आंदोलन वापस . यह गांधी जी का फैसला था . कांग्रेस से  असहमति पर चले गए  गांधी जी . 
     पूरी कांग्रेस एक तरफ , गांधी जी अकेले अपने असहमति के साथ दूसरी तरफ . कांग्रेस में असहमति इतनी बढ़ी कि पार्टी ही टूट गयी .   कांग्रेस  के जो बड़े नेता थे कांग्रेस छोड़ कर नई पार्टी बना ली . स्वराज पार्टी .  देशबन्दू चितरंजन दास , मोतीलाल नेहरू , विट्ठल भाई पटेल ,केलकर . लेकिन गांधी अपनी जगह अड़े रहे .  
     कांग्रेस में एक और टूट  हुई . देश बंधु  की स्वराज  पार्टी बनी . कांग्रेस के नौजवानों का दिल इस तरह टूटा कि वे कांग्रेस से बाहर निकल कर क्रांतिकारी दल बना लिए . इसमे चन्द्र शेखर आजाद , रोशन सिंह ,असफाकउल्लाह वगैरह शामिल थे .  
  गांधी जी दुनिया के उन शख्सियत में शामिल हैं बल्कि ऊपर है जिनके जीवन मे असहमति सबसे ज्यादा प्रभाव फैलाती रही . 

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