डॉ शारिक़ अहमद ख़ान
आज के दौर में छोले-भटूरे हर शहर में मिलते हैं,ये पंजाबी खानपान का हिस्सा हैं,पंजाब से दिल्ली पहुंचे और दिल्ली के स्ट्रीट फ़ूड के तौर पर प्रसिद्ध हुए.छोले-भटूरे से पूरा देश तब परिचित हुआ जब देश का बँटवारा हुआ और रिफ़्यूजी पाकिस्तान से इंडिया आए.रिफ़्यूजी देश के हर हिस्से में आबाद होने लगे.क्योंकि रिफ़्यूजी उजड़कर आए थे और इस वजह से उन्हें यहाँ अपना पेट पालने के लिए और ख़ुद को स्थापित करने के लिए कठिन श्रम करना था.पाकिस्तान से आने वाले बड़ी-बड़ी हवेलियों वाले रिफ़्यूजी भी शुरू में शरणार्थी कैंपों में रहने लगे.बहुत से ऐसे शरणार्थी जिनके पास माल-मत्ता बच गया था उन्होंने बड़े कारोबार शुरू कर लिए लेकिन आम रिफ़्यूजियों के पास तो पैसे थे नहीं,लिहाज़ा उन्होंने जो काम मिला वो करना शुरू किया,छोटी-मोटी नौकरियाँ करने लगे,ख़ुद के ठेले-खोमचे लगाने लगे,दुकानें खोलने लगे.पंजाबियों में जो सिख थे वो पूरे उपमहाद्वीप की सबसे मेहनती और ख़ुद्दार क़ौम है.
काम कोई भी हो वो उसे छोटा बड़ा नहीं मानते,मेहनत से करते हैं,जीवन से निराश हिंदुओं और ज़िन्दगी से निराश मुसलमानों की तरह मंदिर-मस्जिद के बाहर बैठकर भीख नहीं मांगते.ख़ैर,बहुत से रिफ़्यूजियों ने हिंदोस्तान के शहरों में छोले-भटूरे बेचने शुरू किए,पंजाबियों के हाथ के बने छोले लोगों को पसंद आने लगे,क्योंकि ये स्वादिष्ट होते हैं.
छोले-भटूरे की पूरे देश में चल निकली.तस्वीर में लखनऊ के लालबाग़ की सरदार जी दुकान है.यहाँ दो दुकानें हैं,दोनों लज़ीज़ छोले-भटूरे बनाते हैं.दोनों दुकानों में से एक बरामदे वाले सरदार जी की दुकान है और दूसरी में हलवा-कुल्चे और मिस्सी रोटी भी बनती हैं.आजकल लॉकडाउन में सरदार जी के यहाँ बैठकर छोले-भटूरे खाने की सुविधा नहीं है,लेकिन दुकान खुली है और इनकी दुकान से घर ले जाकर इनके व्यंजन नोश फ़रमाने की सुविधा है,लिहाज़ा आज सुबह लाए.छोले-भटूरे को नाश्ते के तौर पर उत्तरी हिंदोस्तान और पाकिस्तान में बड़ी शोहरत हासिल है.
Copyright @ 2019 All Right Reserved | Powred by eMag Technologies Pvt. Ltd.
Comments