कुदरत ने बड़े फुर्सत उकेरा है हर्षिल को

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कुदरत ने बड़े फुर्सत उकेरा है हर्षिल को

शीशपाल गुसाईं 
गंगोत्री से 25 किलोमीटर पहले हर्षिल को प्राकृतिक सुंदरता  कुदरत ने बड़े फुर्सत उकेरा है .नीचे गंगा.ऊपर देवदार के लक दक हरे तथा  ऊँचे पेड़ और ऊपर चोटियों पर बर्फ की चादर सी चांदी की आकृति... दुनिया की  सुकून भरी जगहों में एक का एहसास कराती है.  

ताजी हवा से मानो यह अहसास होता है कि, दुनिया की खूबसूरत जगह में आ गए हैं. इस ताज़गी को कौन नहीं, ग्रहण करना चाहेगा? यह कस्बा कंक्रीट छेड़छाड़ से बचा हुआ है. हर्षिल अंग्रेज विल्सन की बनाई हुई जगह है. 1815 में संपूर्ण उत्तराखण्ड अंग्रेजो के कब्जे में था तो टिहरी रियासत राजाओ के अधीन थी. इस बीच अंग्रेज विल्सन गंगोत्री के पंडो के गांव मुखबा पहुँच गया था. 

लेखक विख्यात भूगर्भ बैज्ञानिक डॉ खड्ग सिंह वल्दिया ने अपनी किताब में  विल्सन को एक भगोड़ा अंग्रेज सिपाही बताया है. खड्ग सिंह जी लिखतें हैं -विल्सन कस्तूरी मृग का शिकार करते करते मुखबा गांव पहुँचे.वहां मंदिर में नगाड़ा बजाने वाले श्री मौतुंग दास जी ने अपने घर मे शरण दी. उसने अपनी बहन का हाथ बिल्सन को दे दिया और बहन के देहांत के बाद अपना जमाई बना दिया.बिल्सन हर्षिल में जानवर और पंछी के अंगों को लंदन के बाजार में बेचने लगा.वहा मालामाल हो गया. फिर जुगाड़ से  टिहरी राजा के दरबार में गया और उत्तरकाशी से ऊपर के वनों का ठेका राजा से 400 रुपए प्रतिसाल हासिल कर लिया. वह पेड़ो का कटान करने लगा. बिल्सन.हरिद्वार तक सिलीपर गंगा में बहा के ले जाता था. वह सिलिपर उस दौर में रेलवे के काम आए. देखते ही वहा बड़ा ठेकेदार बन गया.बिल्सन को टक्कर लकड़ियों के एक बड़े ठेकेदार घना नंद खण्डूड़ी भी दे सकते थे. जिनका विल्सन के बाद यहां लकड़ी ठेकेदारी में साम्रज्य रहा.  

मसूरी के इतिहासकार  जय प्रकाश उत्तराखण्डी लिखते हैं बिल्सन बड़े योजनाकार थे. मसूरी में  जिस आईएएस एकेडमी में पूरे देश का टॉप का दिमाग ट्रैनिंग ले रहा है.वह बिल्सन ने बनाया है. भेरोंघाटी में रस्सी का पुल उसने बनाया. उस पुल में देवदार के फट्टे बिल्सन ने लगाए थे. और उसने लोगों, तीर्थ यात्रियों को सहूलियत दी. बिल्सन ने  तमाम चीजों से उस जमाने लैस कर दिये था. लोकल लोग उससे खुश रहने लगे. मसूरी के अंग्रेजी के वरिष्ठ पत्रकार श्री अजय रमोला बिल्सन को उस दौर का हर्षिल राजा मानते हैं.विल्सन ने हर्षिल और मसूरी के बीच कई बंगले बनाये.जो आज फॉरेस्ट के बँगले, गेस्ट हाउस हैं.बिल्सन ने स्वयं के रुकने के लिए बंगलो का निर्माण किया था. वह हर्षिल से मसूरी तक घोड़े पर चलता था.जहां जहां उसके पैर पड़े,वहीं बंगलों का निर्माण हुआ. और रास्ते बने.  

हर्षिल 80 के दशक में एक दो पीढ़ी के लोगों की नज़र में तब आया, जब यहाँ मशहूर अभिनेता श्री राजकपूर  ने *राम तेरी गंगा मैली* का डाकघर के इर्दगिर्द फ़िल्म का फ़िल्मकान किया था. हर्षिल का डाकघर, इसलिए भी ऐतिहासिक हो जाता है कि यह डाकघर भारत का तिब्बत की ओर अंतिम डाकघर हैं. मंदाकिनी (गंगा) राजीव कपूर (नरेन) की सारी कहानियों में हर्षिल, महान नदी गंगा, डाकघर में नज़र आती है. खूबसूरत नज़ारों, बर्फीले पहाड़ो की वज़ह से हर्षिल का डाकघर रातोरात सुर्खियां बटोरने लगा. गंगोत्री जाने वाले सैलानी  हर्षिल में आकर इसके अप्रतिम सौंदर्य को जीवन भर नहीं भुला पाते हैं. मैदानों में भरी पड़ी टेंशन की जिंदगी से कुछ दिनों के लिए यहां सुकून से बिताया जा सकता है.यहां देवद्वार के हरे भरे पेड़ों और नीचे बहती महान नदी भागीरथी की धारा से मन प्रफुल्लित हो जाता है. अंग अंग काम करने लग जाता है. मस्तिष्क खिल उठता है. दिमाग चल पड़ता है. बशर्ते फोन की घंटियां ना बजे, मोबाइल फोन को स्विच ऑफ कर या घर में ही छोड़ कर कुछ दिनों के लिए आया जाय, तो बेहतर होता है. वहां फोन घंटियाँ जीवन के जंजाल में डुबो देती हैं.  

आर्मी की एक यूनिट यहां रहती है.करीब 12 सौ फ़ौजी. जिनकी ड्यूटी तिब्बत की सीमा पर नेलांग और को पांग में रहती है. उनका बेस कैंप हर्षिल में आना जाना लगा रहता है. इसका सबसे बड़ा अधिकारी कर्नल यहाँ बैठता है. वर्तमान में सीडीएस जनरल विपिन रावत यहां अपने आर्मी चीफ के कार्यकाल में अलग-अलग तिथियों में 2 दिन रात्रि विश्राम के लिए रुके थे. वह भारत के पहले आर्मी चीफ थे जो तिब्बत के बॉर्डर के पास हर्षिल में बासा रहे. जनरल रावत  30, 35 साल पहले जब यहां चीन से तनाव था, तब कर्नल पोस्टिंग में रहे. यहीं से नेलांग जाते थे. उन्हें हर्षिल बहुत पसंद है. तभी तो इतना व्यस्त व्यक्ति दो दिन तक रुका रहा.और यात्री भी यहाँ आते हैं. इसकी अपार खूबसूरती के कायल होकर.  

बिल्सन भले भगोड़ा था, चाहे ठेकेदार था, या राजा था, लेकिन वह पहला अंग्रेज व्यक्ति था, जिसने इंग्लैंड से उस सेब और राजमा के  बीज लाये थे, जिसे हम और दुनिया आज बड़े चाव से खाती है. हर्षिल के सेब की दुनिया में बहुत मांग है. यह पूरा ही नहीं होताहै. आज भी यूएसए, यूएई, यूके में यहां का पहला ग्रेड का सेब अडानी निर्यात करता है. अडानी के यहाँ सेब के बागान हैं. सेब और राजमा 200 साल बाद भी आज हर्षिल की पहचान बने हुए हैं. यहाँ की राजमा भी भोजन में उत्कृष्ट, स्वादिष्ट है. हर्षिल की राजमा के नाम पर और राजमा भी बिक रही है.लेकिन कद्रदान तो पहचान जाते हैं. बिल्सन के लाये बीज की अलग ही बात है ..!साभार  
 

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