कट्टरवाद बनाम उदारवाद

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कट्टरवाद बनाम उदारवाद

 पंडित रामकिशन 

पिछले दिनों लोक सभा चुनाव प्रचार के दौरान कट्टर हिंदुत्ववादीयों ने अपने श्चणिक राजनितिक लाभ के लिए जिस तरह का माहौल पैदा किया वह भयावह था.उनकी यह योजना न केवल इस देश के अल्पसंख्यकों को डराने धमकाने के लिए बनाई गई बल्कि देश के एक बड़े वर्ग को जो उदार हिंदूवादी हैं और सही मायने में सनातनी हिन्दू हैं उन्हें भी डराया धमकाया गया और अब बहुसंख्यक उदार हिन्दुओं को अपने रास्ते और सोच पर चलने को विवश किया जा रहा है. दरअसल हिंदुत्व की इस कट्टरपंथी अवधारणा से इस बात को बल मिलता है कि कट्टर हिन्दू, उदार हिन्दुओं को उसी प्रकार मारेंगे और अपने रास्ते पर चलने के लिए मजबूर करेंगे जिस प्रकार से दुनिया भर में मुसलमान, मुसलमानों को मार रहे हैं और अपने रास्ते पर चलने के लिए मजबूर कर रहे हैं. सीरिया, इराक, यमन और कई अन्य अरब देशों में आईएसआई, दाएश और अल क़ायदा जैसे संगठनों की हिंसा इसका उदाहरण हैं.इसके अलावा वहाबी और सल्फ़ी विचारधारा के मानने वाले मुसलमान भी सूफ़ी और अन्य उदारवादी मुसलमानो के ख़िलाफ़ जिहाद छेड़े हुए हैं. इस्लामी देशों में पहले सुन्नी मुसलमानों द्वारा शिया मुलमानों की हत्याऐं की जाती थीं. बाद में यही हिंसा सुन्नी मुसलमानों द्वारा उदार सुन्नी मुसलमानों के खिलाफ की गई. अफगानिस्तान, इराक, पाकिस्तान और सीरिया में मुसलमानों की हत्याओ की घटनायें इस बात का स्पष्ट उदाहरण हैं. इसी संदर्भ में पाकिस्तान में वहाबी मुसलमानों द्वारा सूफी मुसलमानों के खिलाफ हिंसा भी इसी बात को और पुख्ता करती  है. हिंदुत्व की कट्टरपंथी अवधारणा का दुष्परिणाम ये होगा की उदारवादी हिन्दुओं के खिलाफ नफरत  की भावना भड़काने (प्रोत्साहित करने) से हिंदुओं द्वारा हिन्दुओं के ख़िलाफ़ व्यापक स्तर पर हिंसा और हत्याएं होने की आशंका बढ़ जाएगी जो इस देश की एकता और अखंडता के लिए तो चुनौती होगी ही देश में गृहयुद्ध जैसे हालात पैदा कर देगी.  


समाजवादी नेता डा. राममनोहर लोहिया ने लगभग 70 वर्ष पहले भारत विभाजन के बाद लिखे अपने लेख में भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी लड़ाई को, हिंदू धर्म में उदारवाद और कट्टरता की लड़ाई बताया था. अपने एक खास लेख "हिन्दू बनाम हिन्दू" में वे लिखते हैं "भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी लड़ाई, हिंदू धर्म में उदारवाद और कट्टरता की लड़ाई है, जो पिछले पाँच हजार सालों से भी अधिक समय से चल रही है और उसका अंत अभी भी दिखाई नहीं पड़ता. इस बात की कोई कोशिश नहीं की गई, जो होनी चाहिए थी कि इस लड़ाई को नजर में रख कर हिंदुस्ताान के इतिहास को देखा जाए. लेकिन देश में जो कुछ होता है, उसका बहुत बड़ा हिस्साा इसी के कारण होता है. सभी धर्मों में किसी न किसी समय उदारवादियों और कट्टरपंथियों की लड़ाई हुई है. लेकिन हिंदू धर्म के अलावा वे बँट गए, अक्सवर उनमें रक्तोपात हुआ और थोड़े या बहुत दिनों की लड़ाई के बाद वे झगड़े पर काबू पाने में कामयाब हो गए. हिंदू धर्म में लगातार उदारवादियों और कट्टरपंथियों का झगड़ा चला आ रहा है जिसमें कभी एक की जीत होती है कभी दूसरे की और खुला रक्तरपात तो कभी नहीं हुआ है, लेकिन झगड़ा आज तक हल नहीं हुआ और झगड़े के सवालों पर एक धुंध छा गया है.


ईसाई, इस्लाभम और बौद्ध, सभी धर्मों में झगड़े हुए. कैथोलिक मत में एक समय इतने कट्टरपंथी तत्वि इकट्ठा हो गए कि प्रोटेस्टें ट मत ने, जो उस समय उदारवादी था, उसे चुनौती दी. लेकिन सभी लोग जानते हैं कि सुधार आंदोलन के बाद प्रोटेस्टें ट मत में खुद भी कट्टरता आ गई. कैथोलिक और प्रोटेस्टेंकट मतों के सिद्धांतों में अब भी बहुत फर्क है लेकिन एक को कट्टरपंथी और दूसरे को उदारवादी कहना मुश्किल है. ईसाई धर्म में सिद्धांत और संगठन का भेद है तो इस्‍लाम धर्म में शिया-सुन्नी का बँटवारा इतिहास के घटनाक्रम से संबंधित है. इसी तरह बौद्ध धर्म हीनयान और महायान के दो मतों में बँट गया और उनमें कभी रक्तहपात तो नहीं हुआ, लेकिन उसका मतभेद सिद्धांत के बारे में है, समाज की व्य वस्थाा से उसका कोई संबंध नहीं.

अपने इसी लेख में राममनोहऱ लोहिया कहते हैं की "हिन्दू धर्म मैं कट्टरपंथी जोश बढने पर हमेशा देश सामाजिक और राजनितिक द्रष्टि से टूटा है और भारतीय राष्ट्र में, राज्य और समुदाय के रूप में बिखराव आया है. मैं नहीं कह सकता की ऐसे सभी काल जिनमें देश टूटकर छोटे-छोटे राज्यों में  बंट गया, कट्टरपंथी प्रभुता के काल थे, लेकिन इसमें कोई शक नहीं की देश में एकता तभी आई  जब हिन्दू दिमाग पर उदार विचारों का प्रभाव था." वह आगे कहते हैं कि "महात्मा गाँधी की हत्या, हिन्दू-मुस्लिम झगडे कि घटना उतनी नहीं थी जितनी हिन्दू धर्म की उदार कट्टरपंथी धाराओँ के युद्ध की.इसके पहले कभी किसी हिन्दू  ने वर्ण, स्त्री, संपत्ति और सहिषुणता के बारे में कट्टरता पर उतनी गहरी चोट नहीं की थी."

इसके अलावा भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं द्वारा यह कहना कि जो लोग बीजेपी के विरोधी हैं  वो हिन्दू नहीं हैं और  उन्हें पाकिस्तान चले जाना चाहिए यह ठीक उसी प्रकार से है जिस तरह मुस्लिम कट्टरपंथियों के विरोधियों को इस्लाम एवं शरीयत के खिलाफ  बताया जाता रहा है. |विभाजन के समय हिंदुत्ववादी ताकतें महात्मा गांधी को पाकिस्तान का एजेंट कहा करती थी.इसी तरह की घटना की पुनरावृत्ति आगे चलकर तब हुई जब पंजाब में दशकों तक चले उथल -पुथल के माहौल में खालिस्तान समर्थक सिक्खों ने उदार सिक्खों को मारा था. कुछ माह पूर्व पश्चिम उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर ज़िले में कथित गौ हत्या से जुड़े एक विवाद में उग्र हिन्दुओं की एक भीड़ द्वारा एक हिन्दू पुलिस इंस्पेक्टर की हत्या भी इस बात का प्रमाण है जो हम(हिंदुत्व कट्टरवादी) कह रहे हैं वैसा ही करो वरना नतीजे भुगतने के लिए तैयार हो जाओ. 

वाल्टेतयर जानता था कि उसका विरोधी गलती पर ही है, फिर भी वह सहिष्णुंता के लिए, विरोधी के खुल कर बोलने के अधिकार के लिए लड़ने को तैयार रहता था. इसके विपरीत हिंदू धर्म में सहिष्णु ता की बुनियाद यह है कि अलग-अलग बातें अपनी जगह पर सही हो सकती हैं. वह मानता है कि अलग-अलग क्षेत्रों और वर्गों में अलग-अलग सिद्धांत और चलन हो सकते हैं, और उनके बीच वह कोई फैसला करने को तैयार नहीं. वह आदमी की जिंदगी में एकरूपता नहीं चाहता, स्वेोच्छाक से भी नहीं, और ऐसी विविधता में एकता चाहता है जिसकी परिभाषा नहीं की जा सकती, लेकिन जो अब तक उसके अलग-अलग मतों को एक लड़ी में पिरोती रही है.अत: उसमें सहिष्णुलता का गुण इस विश्वारस के कारण है कि किसी की जिंदगी में हस्त क्षेप नहीं करना चाहिए, इस विश्वाुस के कारण कि अलग-अलग बातें गलत ही हों यह जरूरी नहीं है, बल्कि वे सच्चासई को अलग-अलग ढंग से व्यणक्त कर सकती हैं.

कट्टरपंथी हिंदुत्ववादियों ने अक्स र हिंदू धर्म में एकरूपता कायम करने की कोशिश की है. जिसके नतीजे हमेशा बहुत बुरे हुए.भारतीय इतिहास का एक भी ऐसा काल नहीं बताया जा सकता जानता जिसमें कट्टरपंथी हिंदू धर्म भारत में एकता या खुशहाली ला सका हो. जब भी भारत में एकता या खुशहाली आई, तो हमेशा वर्ण, स्त्री , संपत्ति, सहिष्णुलता आदि के संबंध में हिंदू धर्म में उदारवादियों का प्रभाव अधिक था. हिंदू धर्म में कट्टरपंथी जोश बढ़ने पर हमेशा देश सामाजिक और राजनैतिक दृष्टियों से टूटा है और भारतीय राष्ट्र  में, राज्यब और समुदाय के रूप में बिखराव आया है.ऐसे सभी काल जिनमें देश टूट कर छोटे-छोटे राज्यों  में बँट गया, कट्टरपंथी प्रभुता के काल थे, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि देश में एकता तभी आई जब हिंदू दिमाग पर उदार विचारों का प्रभाव था.

मेरा मानना है की केवल उदारता ही देश में एकता ला सकती है. हिंदुस्ताोन बहुत बड़ा और पुराना देश है. मनुष्यी की इच्छाा के अलावा कोई शक्ति इसमें एकता नहीं ला सकती. कट्टरपंथी हिंदुत्वे अपने स्वशभाव के कारण ही ऐसी इच्छाो नहीं पैदा कर सकता, लेकिन उदार हिंदुत्वी कर सकता है, जैसा पहले कई बार कर चुका है. हिंदू धर्म, संकुचित दृष्टि से, राजनैतिक धर्म, सिद्धांतों और संगठन का धर्म नहीं है. लेकिन देश के राजनैतिक इतिहास में एकता लाने की बड़ी कोशिशों को इससे प्रेरणा मिली है और उनका यह प्रमुख माध्य म रहा है. हिंदू धर्म में उदारता और कट्टरता से महान युद्ध को देश की एकता और बिखराव की शक्तियों का संघर्ष भी कहा जा सकता है.

(लेखक पंडित रामकिशन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के योद्धा एवं स्वंत्रता सेनानी रहे हैं. वे तीन  बार राजस्थान विधान सभा के सदस्य और एक बार लोक सभा के सदस्य भी रह चुके हैं और 91 वर्ष की उम्र मैं भी सक्रिय हैं.)

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