चंचल
आज रंजीत कपूर का जन्मदिन है . पटकथा लेखक , फ़िल्म निर्माता , निदेशक , प्रसिद्ध रंगकर्मी और सबसे बड़ी बात एक नेक , मासूम और दयानतदार इंसान . दिल्ली 'कमाने ' के दौरान जब कलम की दुनिया मे प्रवेश लिया तो ' रंगमंच ' को अपने लेखन का विषय बनाया . स्वर्गीय सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने हमे इस तरफ घुमाने में बहुत मदद किये . उसी जमाने मे ' सारिका ' बम्बई से दिल्ली आ गयी और इसके सम्पादन की जिम्मरवारी सम्भाली भाई अवधनारॉयन मुद्गल जी ने . मुद्गल जी ने हमे ' रंगमंच का कालम लिखने को कहा .
' सूत्रधार ' के नाम से हम कालम लिखते थे . रंगमंच के नजदीक जाने का दूसरा कारण था रिहाइश . NSD , श्रीराम सेंटर , कमानी आडिटोरियम , LTG , सप्रू हाउस सब एक साथ एक जगह मंडी हाउस की शोभा बढ़ा रहे थे और हम इसी मंडी हाउस से चंद कदम की दूरी पर , रेलवे लाइन के उस पार महावत खान रोड पर रह रहा था . सुबह की पहली चाय मंडी हाउस स्थित नाथू स्वीट से शुरू होती और ' जलपान ' मंडी हाउस की किसी इमारत , लान , या सड़क पर से उठता . इसी दौरान भाई रंजीत से मुलाकात हुई और बहुत अच्छे दोस्त बन गए .
वाकई वे खुशबुओं के दिन थे . कोई दिन ऐसा नही गुजरता था जब जम रंगमंच के किसी प्रदर्शन को न देख रहे हों . कमाल के ऐक्टर . भाई मनोहर सिंह , सुरेखा सीकरी जी , विवेक उपाध्याय , अनिल कपूर जो अब अन्नू कपूर हैं , के के रैना , पंकज कपूर, जहीर साहब उत्तरा बावकर जी , डाली अहलूवालिया , अनंग देसाई , बाद में आये रवि झांकल , रवि शर्मा , सीमा विश्वास , सौरभ शुकला , वागीश सिंह , हेमा सहाय , युवराज शर्मा , प्रमोद माउथे , रघुवीर यादव , अनुपम श्याम , बल्लभ व्यास वगैरह . यकीन मानिए अनगिनत नाम है . इनसब में कई नाम ऐसे हैं जो बहुआयामी हैं . रंगमंच पर उनसे कोई काम ले लीजिये . मंच पर , नेपथ्य में . निर्देशन से लेकर पटकथा तक , कॉस्ट्यूम से लेकर सेट डिजाइन तक . इनमे यम के रैना , भानु भारती , वागीश सिंह , ब व कारंथ जी , भाई राम गोपाल बजाज और रंजीत कपूर .
रंजीत कपूर और उनका पान से घुला मुह उनकी शिनाख्त है . दोस्तबाज अव्वल नम्बर के . खाने खिलाने के शौकीन . एक दिन कैफ़ी आज़मी साहब की अचानक की आमद पर किचेन में पक रहे मटन में मिर्च बढ़ानी पड़ गयी क्यों कि उस वक्त मटन कहाँ से मिलता ? और मिर्च इतनी तेज की कैफ़ी साहब , शायरी के बजाय एक ऐसा जुमला बोल गए जो आज भी गाहे ब गाहे दुहराया जाता है क्यों कि वह बहु अनुभूत है , जुमला है - मटन में और इश्क में आंसू न निकले तो वह अकारथ है .
रंजीत भाई के अनगिनत नाटक देखे हैं हमने , आखरी था - द जनपथ किस . इसके बाद हम दिल्ली कमा कर गांव चले आये , लेकिन दोस्ती आज भी हमारे सिरहाने है , अब तक उसी तरह .
जन्मदिन की बधाई रंजीत भाई .
(शुक्रिया Grusha Ranjeet Kapoor . आज रंजीत भाई का जन्मदिन है , की सूचना के लिए )
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