सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती की तो आया मोदी का बयान

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सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती की तो आया मोदी का बयान

हिसाम सिद्दीकी  
कोविड वैक्सीन के मामले में सुप्रीम कोर्ट की सख्ती काम आई और वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी सात जून को देश के नाम पैगाम लेकर टीवी पर आ गए. दो जून को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बजट में जिस पैंतीस हजार करोड़ की रकम का जिक्र वैक्सीनेशन के लिए किया गया था वह रकम कहां गई सरकार उसका हिसाब अदालत में पन्द्रह दिनों के अंदर पेश करे. अदालत ने यह भी कहा था कि शुरू में अगर कुछ लोगों को मुफ्त में वैक्सीन दी गई तो बचे हुए लोगों को अब क्यों नहीं दी जाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि मरकजी सरकार की वैक्सीन पालीसी क्या है और आखिर वैक्सीन खरीदने का काम रियासती सरकारों पर क्यों छोड़ दिया गया यह काम मरकजी सरकार खुद क्यों नहीं करती, मरकजी सरकार को चाहिए कि वह जरूरत के मुताबिक वैक्सीन खरीद कर रियासतों को मुफ्त में फराहम करे. शुरू में आपने पैंतालीस साल से ज्यादा उम्र के लोगों को वैक्सीन मुफ्त में मुहैया की फिर कहा कि अट्ठारह से ऊपर के लोगों को भी वैक्सीन लगाई जाएगी. साथ ही यह भी कह दिया कि रियासती सरकारें अपनी सतह से ही ग्लोबल टेण्डर करके वैक्सीन खरीदें यह तो अपनी जिम्मेदारी से फरार (पलायन) है. 
सात जून की शाम वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी ने टीवी पर आकर मुल्क को खिताब करते हुए कहा कि उनकी सरकार इक्कीस जून से अट्ठारह साल से ऊपर के तमाम लोगां को मुफ्त में वैक्सीन फराहम करेगी. उन्होंने कहा कि वैक्सीन बनाने वालों से उनकी पैदावार का तीन-चौथाई यानी पचहत्तर फीसद वैक्सीन भारत सरकार खुद खरीदकर रियासतों को देगी. मोदी ने रियासती सरकारों के सर सारा इल्जाम मढते हुए कह दिया कि रियासतें खुद चाहती थीं कि वैक्सीन की खरीद उन्हें उनकी सतह से करने दी जाए. वह अपनी जिम्मेदारी पूरी करने में नाकाम हो गए तो फिर कहने लगे कि भारत सरकार को वैक्सीन खरीदकर हमें फराहम करे हालांकि रियासतों के चीफ मिनिस्टर्स उनके इस बयान को गलत बताते हैं. 
सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती के साथ देश की वक्सीन पालीसी मालूम की है. शायद वजीर-ए-आजम मोदी ने टीवी के जरिए उसका जवाब देने की कोशिश की है. अपने बयान में मोदी ने कई गलतबयानियां की हैं. पहली तो यह कि वैक्सीन के मामले में वह और उनकी सरकार कभी भी संजीदा नहीं रही है. दुनिया के देशों ने गुजिश्ता साल अप्रैल-मई से ही वैक्सीन के आर्डर देने शुरू कर दिए थे कई मुल्कों ने रिसर्च के लिए वैक्सीन बनाने वाली कम्पनियों को मोटी-मोटी रकमें पेशगी के तौर पर दे दी थी लेकिन वजीर-ए-आजम मोदी तब यह समझ रहे थे कि वह तो ताली-थाली, घंटे-घड़ियाल और शंख बजवाकर फिर दिए और मोबाइल की लाइट जलवाकर कोविड को हरा लेंगे इसीलिए उन्होंने वैक्सीन पर गौर ही नहीं किया. उन्होंने एक तुक्का मारा था अगर कोरोना की पहली लहर ही रहती दूसरी न आई होती तो वह अपनी पीठ ठोंकते हुए दावा करते कि थाली, ताली, घंटे और शंख बजाने फिर दिए जलाकर हमने कुदरती इलाज के जरिए ही कोविड को हरा दिया. वह तो फंस इसलिए गए कि दूसरी लहर आ गई जो ज्यादा मोहलिक (घातक) थी. दूसरी लहर ने सरकारी इंतजामात की तमाम पोलपट्टी ही खोल दी. न आक्सीजन, न वेंटीलेटर, न दवाएं, न अस्पतालों में बिस्तर. जब आक्सीजन की कमी से लोग सड़कों तक पर मरने लगे तब सरकार ने कहा कि हमने हर अस्पताल में आक्सीजन प्लाण्ट लगाने की मंजूरी दे दी है. 
दिसम्बर 2020 तक मोदी यह समझ बैठे थे कि अब तो कोरोना गया उसपर ज्यादा माथा पच्ची करने की जरूरत नहीं है. इसीलिए जहां एक तरफ बेश्तर मुल्कों ने वैक्सीन के लिए अप्रैल-मई में ही आर्डर कर दिए थे रिसर्च के लिए मोटी-मोटी रकमें वैक्सीन बनाने वाली कम्पनियों को दे चुके थे वहीं मोदी सरकार ने पहला आर्डर इस साल जनवरी में दिया. क्लीनिकल ट्रायल और मैनुफैक्चरिंग के नाम पर सकारी वेबसाइट के मुताबिक सिर्फ छियालिस करोड़ ही दिए गए चूंकि मोदी को हर मामले में अपनी तस्वीर चस्पा करने की आदत है इसलिए वैक्सीन बनाने वाली दोनों कम्पनियों यानी पुणे की सीरम इंस्टीट्यूट आफ इण्डिया और हैदराबाद की भारत बायोटेक में किट पहनकर पहुंच गए. गुलाम मीडिया और सोशल मीडिया पर अपने वीडियो कुछ इस अंदाज में वायरल कराए जैसे खुद मोदी ने ही उन कम्पनियों में जाकर वैक्सीन बनाई हो. याद रहे कि जब मंगलयान लांच हो रहा था उस वक्त भी मोदी इसरो में पहुंच गए थे और मंगलयान को फेल कराकर वापस आए थे. 
अपने बयान में मोदी ने यह भी कहा कि दो वैक्सीन पूरी तरह मेक इन इण्डिया हैं यानी कोविशील्ड और कोवैक्सीन हैं इनके अलावा कम से कम सात विदेशी कम्पनियों से भी बातचीत चल रही है. भारत बायोटेक की कोवैक्सीन तो पूरी तरह भारतीय है लेकिन सीरम इंस्टीट्यूट की कोविशील्ड तो भारतीय नहीं है न ही उसकी रिसर्च के लिए मोदी सरकार ने कोई पैसा दिया. कोविशील्ड तो पूरी तरह आक्सफोर्ड और आस्ट्रजेनिका की रिसर्च पर तैयार की गई फिर मोदी उसे भारतीय वैक्सीन क्यों बता रहे हैं? अब तो सीरम इंस्टीट्यूट के मालिक और सीईओ अदार पूनावाला खुद ही लंदन भाग चुके हैं. लंदन जाकर उन्होने कहा कि भारत में उनकी जान को खतरा था इसीलिए अपने पूरे कुन्बे के साथ वह लंदन आ गए हैं. अब वह कई मुल्कों में कोविशील्ड बनाने की फैक्ट्रियां शुरू करने पर गौर कर रहे है. हां एक कोवैक्सीन जरूर पूरी तरह भारतीय और मेक इन इंडिया है. शायद इसीलिए वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) ने जानिबदारी (पक्षपात) करते हुए कोवैक्सीन को एप्रूवल नहीं दिया और कोविशील्ड को एप्रूवल दे दिया. 
वजीर-ए-आजम मोदी ने अपने बयान में यह तो कह दिया कि इक्कीस जून से अट्ठारह साल उम्र के ऊपर वाले तमाम शहरियों को वैक्सीन देने का काम शुरू हो जाएगा लेकिन सवाल यह है कि क्या इतने टीके सरकार के पास मौजूद हैं या उनके बयान के दो हफ्तों के अंदर वैक्सीन बनाने वाली कम्पनियां इतनी बड़ी मिकदार में (मात्रा) में वैक्सीन बनाकर सरकार को सप्लाई कर देगी या फिर उनका यह बयान भी महज एक जुमला ही साबित होगा. कोरोना की तीसरी लहर का खतरा भी सर पर मंडरा रहा है. डाक्टरों का ख्याल है कि शायद नवम्बर तक तीसरी लहर आएगी जो बच्चों के लिए ज्यादा नुक्सानदेह होगी क्या सरकार उसका मुकाबला करने के लिए तैयार है? 
जदीद मरकज 

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