हेमंत के पांडे
बिहार के मिथिला (कोसी-सीमांचल) क्षेत्र में मछली-भात लोगों का पसंदीदा भोजन है.लेकिन अधिकांश लोग मछली का सिर और पूंछ वाला हिस्से को पसंद नहीं करते.इस अधिकांश में भी अधिकांश पुरुष ही हैं.अब इसकी एक बड़ी वजह लिंग आधारित भेदभाव है.
आम तौर पर घरों में जब भी मछली बनता है तो 'पसंदीदा पीस' यानी बीच वाला हिस्सा पुरुषों की थाली में दी जाती है.बाकी बचे हिस्से महिलाओं की थाली के नसीब में होती है. सो, अधिकांश पुरुष को सिरा वाले हिस्से को खाने लायक मानते ही नहीं हैं. मछली का सिर खाने का भी एक तरीका होता है.मैं ये पक्के तौर पर कह सकता हूं कि जितने पुरुष मछली खाते हैं, उनमें आधे को सिर वाला हिस्सा कैसे खाया जाता है, ये नहीं पता होगा.
अब इसमें एक और बात है.आमतौर पर कहा जाता है कि मछली का सिरा खाने से दिमाग बढ़ता है.इस धारणा को भी हम महिलाओं को लेकर जिस तरह की सोच है, उससे जोड़कर देख सकते हैं. भारतीय परिवार और समाज में ये पूर्वाग्रह है कि महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कम दिमाग होता है.आपसी बातचीत में ये कह भी दिया जाता है.इस पूर्वाग्रह के आधार पर ही पुरुष महिलाओं को कह देते हैं, "मछली का मुड़ी तुम खाओ, तुमको दिमाग कम है.दिमाग बढ़ेगा।"
जो साथी अपने समाज को गहराई से देखना और समझना चाहते हैं, वे खान-पान के तरीकों और लोगों की पसंद पर भी ध्यान दें.आप अपने परिवार या पड़ोस में देखिए कि जो खाना बनता है, उसे कैसे खाया जाता है? महिलाएं कब और कहां खाती हैं? कितने बजे खाती हैं? खाने के लिए उनकी थाली में क्या बचता है? इन चीजों को देखें.इस पर सवाल करें.समाज की कई सारी परतें खुल जाएंगी।
(गोपालगंज में अलग ही मामला है.खबरों के मुताबिक वहां मछली के सिर को लेकर झड़प हो गई.)
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