खेल खेल में जेल !

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खेल खेल में जेल !

चंचल  
  राजनीति में  गिर गया , वरना अरसे तक यह मालूम ही नही रहा कि,  हम खिसकते- खिसकते  राजनीति  की तरफ जा रहे हैं .14 / 15 साल की उम्र न जेल जाने की होती है , न पुलिस से  लाठी खाने की , .साठ के दशक की बात है जब खेल खेल में , हम  जुलूस हो गए .बचपन के उस  मुकाम पर जब  हम जी रहे रोजही उपादानों को बे जाने समझे किये जा रहे  होते हैं,  जैसे  ' वह शक्ति हमे दो दयानिधे कर्तव्य मार्ग पर डट जाएं '  छुट्टी का दिन छोड़ कर हर रोज अलसुबह इसे गाते थे .सावधान मुद्रा में हाथ जोड़ कर आंख बंद करके .लेकिन इसका मतलब क्या है ? इसे लिखा किसने ? वगैरह वगैरह ,  की कोई जानकारी नही , लेकिन करते थे .कुछ इसी तरह का घपला इस पहले जुलूस में हुआ .भोर में होने वाली प्रभात फेरी से वाकिफ था . गठरी चोर हरी उपाधिया जेल से  निकले तो सुराजी बन गए थे .कांग्रेस का झंडा गोजी में डाल कर बरबख्त लिए घूमते रहते .अल सुबह प्रभात फेरी निकालते .गट्टे की लालच में गांव के गदेले प्रभात फेरी में निकलते  .' विजयी विश्व तिरंगा प्यारा , झंडा ऊंचा रहे हमारा ' गाते हुए  घूमते .लेकिन वह इस तरह का जुलूस नही था , उसमे कोई भीड़ भी नही रहती , जो सड़क के दोनों किनारे पर खड़ी देखती .हरी उपाधियां के जुलूस को कोई लोटा लिए मैदान भागता मिल भी जाता तो वह रास्ता छोड़ देता - ' रोज रोज की कबाहट , दुअन्नी देदो , पाव भर जौ मटर , कुच्छो दे दो लड़के पानी पी लेंगे '  .चुनांचे हरी का जुलूस जलूस नही होता , प्रभात फेरी होता .उसमे सब जिंदा बाद होता .गान्ही बाबा , चाचा नेहरू , भारत माता .सब जिंदाबाद .लेकिन इस जुलूस में सब मुर्दाबाद है .जिला कलेट्टर मुर्दाबाद , चंदभान गुप्ता मुर्दा बाद , जो जमीन को जोते बोए , हम जोर से बोलते - वो जमीन का मालिक है.बाजार  में घुसते ही बांके लाल शर्मा को प्यास लगती .लहुरी बनिया लोटा से पानी देने के पहले एक ठो गट्टा खा  के पानी पीने की जिद  करता देख कइयों को प्यास लग गयी .जुलूस में बमुश्किल से बीस लोग होंगे .तीनो दुकानदारों ने मिल कर आधा सेर गट्टा सामने रख दिया .साथ मे चल रहे दो पुलिसवाले भी प्यासे हो गए .जुलूस ने पहली बार देखा , पुलिस कभी कभी इंसान की तरह हरकत करती है .हंस के बात करना .आगे निकलने के लिए  जगह देना  वगैरह .उसे ये वाला जुलूस भा गया . 
    यकीन करिये उसे यह नही मालूम था कि वह जुलूस की लत में जा रहा है .उसे मुर्दाबाद वाला जुलूस भा गया .मुर्दाबाद से पुलिस का चेहरा बदल जाता है , कंजूस लहुरी जो और दिन पानी की बाल्टी तक नही फटकने देता है  , वह जुलूस देखते ही दान के चबूतरे पर जा बैठता  है .उसे थाना भी अच्छा लगा .और मजिस्टर की मुस्कान भी -  ' तुम कहाँ जा रहे हो , भाग जाओ घर .अभी बच्चे हो , इन लोंगो को जेल जाने दो .बड़ा हो जाना तो तुम भी जाना .' लेकिन हम जुलूस को पकड़े रहना चाहते थे . 
बे खौफ बोला था - नही हम भी जेल जांयगे . जुलूस में हरकत  हुई और नया नारा निकला - दम है कितना दमन में तेरे , देख लिया फिर देखेंगे .मजिस्ट्रेट मुस्कुराया - सात दिन की सजा . 
      -' बी क्लास दीजिये .'  राम गोविंद दुबे पढ़े लिखे थे .काशी विद्यापीठ बनारस छात्र संघ के अध्यक्ष हैं . 
       मजिस्ट्रेट उठते उठते बैठ गया - आप कुल ग्यारह लोग  हो .तीन बी क्लास दे दूं , काम चल जाएगा ?  
      -  नही सब को चाहिए .मजिस्ट्रेट ने कुछ लिखा .और उठ गया . उसने दर्ज किया ,जुलूस की एक सिफत और  .' मजिस्ट्रेट  मुजरिम की मर्जी से सजा देता है .' और मुस्कुराता भी है .'  
उसे जुलूस का मजा मिलने लगा . 
      और जेल ?  
अगले अध्याय में ,

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