चंचल
दुनिया याद करती रहेगी .15 जून चे ग्वेरा के जन्मदिन पर -एरनेस्तो ' चे ' गवारा . इतिहास बहुत ठस्स होता है , आप उस पर कहीं से भी ' अगर ' 'मगर ' ' किंतु ' परन्तु ' नही चिपका सकते .वरना यह खुल कर कहा जा सकता है कि चेग्वेरा अगर भारत पहले आ चुके होते या अगर पंडित नेहरू से पहले मिल लिए होते या महात्मा गांधी के सिविल नाफरमानी की कीमत समझ चुके होते तो चे कभी भी हिंसा को स्वीकार नही करते .इतना ही नही अपनी आखिरी दिनों तक उन्हें भारत का यह अहिंसक प्रतिवाद का अंश सालता रहा .
पंडित नेहरू के निमंत्रण पर अर्जनटिना निवासी पर क्यूबा क्रांति का नायक और फिदल कास्त्रो का विश्वसनीय दोस्त , कास्त्रो सरकार में मंत्री रहे चेग्वेरा भारत आये .भारत नया नया आजाद हुआ था .लेकिन पंडित नेहरू की दूरदृष्टि ने चेग्वेरा को दीवाना बना दिया .चेग्वेरा नेहरू से मिलने के पहले डिस्कवरी आफ इंडिया पढ़ चुके थे .निहत्थी जनता का विद्रोह और उसका परिणाम चेग्वेरा को गांधी जी के नजदीक कर दिया था .
क्यूबा वापसी पर चेग्वेरा ने भारत यात्रा पर जो तीन पेज की रपट कास्त्रो को दिया उसमे इन सब बिंदुओं का जिक्र है .
अशोका होटल में जहां चेग्वेरा रुके थे , वहां रेडियो की रिपोर्टर भानुमति जी ने जो इंटरवियू लिया उसमे एक दिलचस्प सवाल था - आपने हिंसक क्रांति का रास्ता क्यों चुना ?
चेग्वेरा का जवाब कमाल का था - हमारे पास न तो गांधी का दर्शन था , न ही हमारे पास नेहरू थे , और सबसे बड़ी बात हम भारत नही थे हमारे समाज की विकासयात्रा इस तरह की नही रही जैसा भारत का है .
आगे चल कर कास्त्रो और चेग्वेरा के बीच साम्यवाद को लेकर विवाद बढ़ गया था .चेग्वेरा सोवियत यूनियन से अलहदा राय रखते रहे .
आज उनका जन्मदिन है , सलाम कामरेड चे
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