हरजिंदर
तब तक उसे कोई नहीं जानता था.1995 में लोगों ने बिंजामिन विल्कोमिरस्की का नाम पहली बार तब सुना जब उसकी किताब- ‘फ्रैगमेंट्स: मेमायर्स आॅफ वारटाइम चाइल्डहुड‘ बाजार में आई.इस किताब में उन्होंने अपनी आपबीती लिखी थी, एक ऐसे यहूदी बच्चे की आपबीती जिसने अपना पूरा बचपन नाजी अत्याचारों के बीच बिताया था.काव्यमय भाषा में लिखी इस किताब को सबने हाथों-हाथ लिया और जल्द ही यह बेस्टसेलर में शुमार हो गई.किताब को बहुत अच्छे रिव्यू मिले और तमाम बड़े लेखकों ने इसकी तारीफ में कसीदे काढ़े.
जल्द ही यह भी पता पड़ गया कि बिंजामिन विल्कोमिरस्की दरअसल एक छद्म नाम है और जिसने यह किताब लिखी है उसका असली नाम दरअसल ब्रूनो डोसेकर है.खैर स्विटजरलैंड में रहने वाले 51 वर्षीय ब्रूनो डोसेकर की चल निकली.उनके ढेर सारे इंटरव्यू हुए, बचपन किन मुश्किलों में बीता इसे बताते हुए वे नहीं थकते थे.उन्हें कई सारे अवार्ड और इनाम-इकराम भी मिले.
तीन साल बाद स्विट्जरलैंड के एक पत्रकार डेनियल गंज़फ्रेड को लगा कि दाल में कुछ काला है.उन्होंने जांच की तो पाया कि जो कुछ भी किताब में लिखा गया सब झूठ था.ब्रूनो डोसेकर को अपने पूरे बचपन में ऐसी स्थितियों को कभी नहीं झेलना पड़ा.फिर बहुत से और लोगों, अखबारों वगैरह ने जांच की तो पाया कि डेनियल के निष्कर्ष सही हैं.सच साबित हो चुका था लेकिन ब्रूनो अड़ गए, वे वही सब बाते दोहराते रहे.मामला इतना बढ़ा कि बात मनोवैज्ञानिकों के हवाले कर दी गई.
उन्होंने अपने तरीके से ब्रूनों की जांच की.उन्होंने पाया कि ब्रूनो जो कह रहा है उसका यकीन उसके भीतर तक समाया हुआ है.वे भी हैरत में थे कि कोई शख्स खुद के गढ़े हुए झूठ पर इतना यकीन कैसे कर सकता है.
तभी दो मनावैज्ञानिकों ने ब्रूनो के दिमाग में घुसने का एक दूसरा तरीका सोचा.उन्हें लगा कि ब्रूनो का झूठ भले ही उसका सच बन चुका है, लेकिन उसके दिमाग में इसके अलावा भी तो कोई और सच होगा.उसके वास्तविक बचपन की बातें, उसके किस्से और अनुभव कुछ तो ब्रूनों के दिमाग के किसी कोने में बैठे होंगे.तमाम जांच के बाद वे इस नतीजे पर पहंुचे कि उस गढ़े हुए फसाने के अलावा ब्रूनो के दिमाग में कुछ और है ही नहीं.वह यह बताने तक में असमर्थ था कि वे कितने भाई-बहन हैं.
अब हैरान होने की बारी पूरी दुनिया के मनोवैज्ञानिकों की थी.उनके लिए यह पहला ऐसा केस था जिसमें उन्होंने जाना कि किसी व्यक्ति का व्यक्ति का झूठ उसकी असली यादाश्त और अनुभवों को भी खत्म कर सकता है.किस्सों कहानियों और जुमलों में हम ब्रेनवाश करने की बात करते हैं, लेकिन ब्रूनो ऐसा शख्स था जिसने खुद अपने झूठ से ही अपना ब्रेनवाश कर लिया था.ब्रूनो की उम्र इस समय 80 साल है और अभी भी उन्हें अपने झूठ के ही सच होने का पक्का यकीन है.
किसी का गढ़ा गया झूठ ही उसका यकीन कैसे बन सकता है इस पर मुझे कईं बरस तक हैरत होती रही.अब नहीं होती.बस जरा घर से निकलिए, हर गली, हर नुक्कड़ पर आपको कईं बिंजामिन विल्कोमिरस्की मिल जाएंगे.कईं सफेद झूठ अब खालिस सच के रूप में मान्य होते जा रहे हैं.मुझे मालूम नहीं कि सिर्फ हम ही बिंजामिन विल्कोमिरस्की के देश में बदल गए हैं, या बाकी दुनिया में भी यही हो रहा है.
Copyright @ 2019 All Right Reserved | Powred by eMag Technologies Pvt. Ltd.
Comments