चंचल
अमेरिकी प्रवासियों ने बहुत मेहनत , मसक्कत किया कि किसी तरह महान शहनाई वादक बिस्मिल्ला खान साहब अमेरिका चले चलें . बिस्मिल्ला की सादगी भरी मांग थी - बनारस नही छूटता भाई - हम वहां बनारस बसा देंगे
- लेकिन गंगा कहाँ से लाओगे बच्चू ?
इसका जवाब नही बन सका और खान साहब यहीं बनारस में आखिरी सांस लिए और अलविदा कह गए .
प्रवासियों को अगर हुनर मालूम रहता कि उनके जीते जी गली को सीवर नाली में बदल दो , खान साहब को जहाँ चाहते , उठा ले जाते या गंगा में कूद जाते .
गुजरात में अपने आका केशु भाई को ठिकाने लगा कर , जब आडवाणी का सिपहसालार मोदी बनारस की ओर मुड़ा तो काशी की बाछे खिल गयी . जिस तरह सिकन्दर की तलवार का स्वागत पाखंडी दो मुहों ने किया था , उसी तरह मोदी का इस्तकबाल बनारस किया . हरहर महादेव की जगह हर हर मोदी , घर घर मोदी बनारस ने किया था . सियासत की गंध से ही जिसकी नाक सिकुड़ जाती रही और अपने पेशे की दुहाई देते मिलते वे कालीन बिछाए फर्सी सलाम में झुके मिले .
काशी अनमोल है , ग्लोब का दस्तावेज कहता है ,. उस काशी को उसने चंद सिक्के से खरीद लिया और तोड़ डाला. काशी की तमीज , तहजीब , जीवन शैली और आदिम सभ्यता को .
क्योटो बनाएंगे
काशी मुह बाए खड़ी , ताली बजाने लगी . औरंगाबाद से एक आवाज फिर सुनाई दी - काशी क्योटो का बाप है . एक नही अनेक क्योटो बन सकता है क्यों कि वह पूंजी से तामीर होता है , काशी पूंजी से नहीं पूजा से निकला निर्मल मन है . वास्तु शिल्प का अनूठा बसावट है , मौसम के मुताबिक हवा पानी के ताप और गति को यांत्रिक गलाजत से नही हल करता , यह गलियों के चढ़ान और ढलान से नियंत्रित करता रहा . इन्ही संकरी गलियों के तिलस्म का भूल भुलैया दुनिया को आकर्षित करता रहा . उसे तोड़ कर सपाट बना रहे हो ? काशी को जमीदोज कर कॉरिडोर नाम दे रहे हो ? वास्तु शिल्प पर स्पेंसर को पढ़ लेते - किसी शहर की सभ्यता और संस्कृति को खत्म करना हो तो उसके वास्तु शिल्प को खत्म कर दो . वैशाली , पाटलिपुत्र , दिल्ली , हस्तिनापुर , द्वारिका में उतने लोग नही मारे गए जितनी बार ये नगर तबाह हुए .
जब तुमने अपाहिज और विकलांग को दिव्यांग बोले तभी काशी को समझ लेना था इसके क्योटो का मतलब क्या होगा ? धूसर गंगा सीवर के रास्ते गली मोहल्ले में हैं और जहां धारा में बहती रहीं , वहां जल कुम्भी ओढ़े चुपचाप खड़ी हैं .
( गांगा को उपहार दे रही हैं गोमती )
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