जामुन का सिरका ऐसे बनाइये !

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

जामुन का सिरका ऐसे बनाइये !

चंचल  
कुछ मत करिए ' यह उसका तकिया कलाम है . इसके बाद वो सब कुछ करिये जो वह बताएगी . जामुन को धोकर सूखा लो कि उसपर पानी की नमी न रह जाय . अब इसे परात में रख कर मसलों ,जिससे  गुठली अलग हो जाय और गूदा अलग . अब इसे बारीक कपड़े से छान लो . इसे एक साफ बोतल में रख दो . एक हफ्ते में सिरका तैयार . अब इसमें आम ,कटहल ,  बड़हर , जो भी डालना चाहें उसे उबाल कर या स्टीम देकर सूखा लें फिर सिरके में डाल दें . इस सिरके में तड़का लगता है सरसो के तेल को गर्म कर उसमे  सौंफ साबुत लाल मिर्च,  लहसन , अदरख  डाल दो . बस  
      -बस ?  
       -और क्या , पूछो  
      -बोतल ?  
   -  नशेड़ी , दुष्ट , नौटंकी ! अब तक दिमाग इसी बोतल पर था ?  
     -  नही यार ! सिरका से मामी की याद आ गयी . यही सीजन रहता था . हम ' गर्मियों की छुट्टी ' में ननिहाल भाग जाते थे . वो दिन बहुत नीचे तक गहराई में बैठ चुके हैं . हमारा ननिहाल खुशहाल परिवार था . सिरका को देखते ही हंसी छूट जाती है . सिरके के आम के फांक को चुरा लेता था . निहोरा मामी की खातिरदारी गजब की रही , अभी भी है . मामी   कोयले के अंगारे पर एक हाथ से  बेना डुलाती जाती , दूसरे हाथ से मक्के की बाल पलटती जाती .  - अभी  कोई हाथ न  बढ़ाये , पहिले 'भैने'  के .  भैने ( भांजा )  होने का सुख मामी की भाषा से परवान पा लेता . ये सब इस लिए बता रहा हूँ हम ज्यो ज्यों विकास (?) को ओर बढ़े (?) हैं बहुत कुछ छूटता जा रहा है . अब के बच्चों को यह सब नही मिल पा रहा है . उस शिक्षा में '  गर्मी की छुट्टी ' उत्सव का एक हिस्सा था .  भागो ननिहाल चलो . सुराज मिलिहैं . आम के बगीचे में  रात बिरात आम बीनना . छोटे मामा से तरकीब सीखना की किस तरह मिट्टी की हांड़ी में छेद करके उसमे दिया रखना , फिर उसकी रोशनी में  मलदहिया आम तलाशना वगैरह .   
    कल हमने भाषा और मुहावरों के दफन  किये जाने पर आपत्ति दर्ज कराया तो उसके कई आयाम निकले . कई लोंगो ने सहमति जताते हुए बताया कि उस शब्द सम्पदा की रुखसती से समाज बेपर्दा हो जाएगा . हमारे पास अनगिनत किस्से हैं . 'धक्कड़ के इक्का ' नाना के हुक्का ' मामा क  किताब ,  किशुनी की चिकोटी , छैबर सिंह दुर्गबन्स के कराहा ,  खोदाई दर्जी की सिलाई , छेदी के गट्टा .  कैसे दिन कटता होगा तब ,जब न स्मार्ट फोन था , न बुद्धू बख्सा , लेकिन कहानियां थी , कहकहे थे , अभाव था पर खटका नही था .  संस्मरण जो लिख रहा हूँ उसका बड़ा हिसा  ' बघेला पुरा ' के सुखदेव सिंह के कुंए से उठता है .

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