रवि भोई
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव को ढाई साल बचे हैं , पर कांग्रेस और भाजपा दोनों ही कोरोना को भूलकर मैदान पर ऐसे ताल ठोंक रहे हैं, मानों चुनाव सिर पर आ पड़ा है. भाजपा भूपेश सरकार को घेरकर 2018 की हार का बदला लेने का कोई मौका गवांना नहीं चाहती, वह कांग्रेस राज के ढाई साल पूरे होने पर ही सरकार पर चढ़ाई कर वादाखिलाफी के ढ़ोल बजाने में लग गई, तो कांग्रेस महंगाई को हथियार बनाकर मोदी सरकार और भाजपा को निशाने पर ले रही है.
इसके लिए कांग्रेस ने अपने महिला और युवा विंग समेत सबको मैदान में उतार दिया. भाजपा विपक्ष में है, जनता में अपना वजूद और सक्रियता के लिए सरकार पर हमले स्वाभाविक है, पर भाजपा से मुकाबले के लिए कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देने की योजना और विधायकों को प्रवक्ता का दायित्व सौपने के फैसले को लोग कांग्रेस की हड़बड़ी के रूप में देख रहे हैं. भाजपा और कांग्रेस की रणनीति से राज्य का राजनीतिक पारा चढ़ा हुआ है. सवाल यह है कि अगले ढाई साल तक दोनों दल ऊँचे तापमान को कैसे बनाए रखेंगे , जिससे जनता को राजनीतिक गर्मी का अहसास होता रहे. भाजपा यहाँ कांग्रेस में कलह पर अपनी रोटी सेंकने की भी जुगाड़ में दिखती है. हवा देने पर भी फिलहाल उसे अब तक मौका तो नहीं मिला है. साम-दाम -दंड -भेद राजनीति के अंग है, यह तो चलता रहता है. दोनों दलों की सक्रियता या दांवपेंच से जनता को क्या फायदा होता है, यह देखना होगा.
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