अंबरीश कुमार
क्या आप यमुना का पानी पी सकते हैं ? जवाब ना में ही मिलेगा .पर हमने यमुना का पानी पीया है .सीधे नदी से निकाल कर .अब वह जमाना तो रहा नहीं कि लोग एक लोटा और झोला उठा कर चल देते हों .श्री राम नाथ गोयनका दरभंगा से लोटा लेकर निकले और कलकत्ता होते हुए मद्रास पहुंचे और एक्सप्रेस समूह खड़ा कर दिया .अपने से जब उनकी मुलाक़ात हुई तो एक संदर्भ में इस किस्से का भी उल्लेख किया .खैर लोटा अब कौन लेकर चलता है सब तो मिनरल वाटर की बोतल लेकर चलते हैं .हमारे पास भी एक बोतल थी जिसका पानी खत्म हो चुका था .यमुना का पानी भरा और गटागट पी गए .ठंढा और मीठा पानी .अदभुत स्वाद .फिर कुछ देर बाद जब खाना खाने बैठे तो इसी यमुना की टेंगन जैसी कोई छोटी मछली और भात मिला .जग में जो पानी था वह नीचे बह रही यमुना का था .यह ढाबा यमुना पुल पर था .बगल से नीचे उतरने का रास्ता था जिससे नदी तक पहुंच सकते थे .पर हमें पहुंचते पहुंचते सूरज सर पर चढ़ चुका था .निकलने में ही कुछ देर तो हो ही चुकी थी .
कैम्पटी के मशहूर झरने के सामने जंगलात विभाग का जो मोनाल डाक बंगला है उसमें रात अच्छी गुजरी और सुबह समय पर चाय भी मिल गई .यह पहला डाक बंगला दिखा जिसमें पुस्तकों की अलमारी भी थी .रात में बरसात के चलते कुछ देर के लिए लाइट गई पर जल्दी आ गई .पर बरामदे में बैठना मुश्किल हो गया तो भीतर आये और अलमारी में भरी पुस्तकों पर नजर पड़ी .साथ बैठे अरविंद शमशाद बेगम के गीत सुनने में इतने मगन थे कि उन्हें मेरी बात ही न समझ आई .तब तक चौकीदार टमाटर खीरा आदि की सलाद काट कर टेबल पर सजा चुका था .उससे पूछा कि ये किताब किसने रखवाई तो उसका जवाब था ,नई डीएफओ साहिबा ने रखवाई है .समझ में आ गया एक महिला अफसर के आने से कितना फर्क पड़ जाता है .वर्ना डाक बंगले में मुर्गा ,मुर्गी शराब कबाब सब तो मिल जाता है पर पुस्तकों से भरी अलमारी नहीं मिलती .खैर अब तैयार होकर निकलना था जौनसार बाबर की तरफ विवादास्पद मंदिर देखने जहां दलितों के प्रवेश पर रोक थी .और हम सिर्फ सैलानी ही नहीं थे पत्रकार और एक्टिविस्ट दोनों भूमिका में थे .राष्ट्र सेवा दल का शिविर था जिसमें कई प्रदेशों से युवा कार्यकर्त्ता आये थे जिनमें लड़कियों की संख्या ज्यादा थी .लोक गायक बल्ली सिंह चीमा तो देहरादून से मंसूरी तक अपने साथ ही आये और उनसे परिचय भी पहली बार हुआ .ले मशाले चल पड़े हैं लोग मेरे गांव के ...वाले गीत से मशहूर हुए बल्ली सिंह चीमा से मिलना अच्छा लगा था .
खैर थोड़ी ही देर में हम चकराता वाले रास्ते पर थे .आगे हिमाचल की भी सीमा पड़ती है .हम लोगों को आने जाने में चार पांच घंटे से तो ज्यादा ही लगना था .इसलिए दोपहर के भोजन का इंतजाम करना था .कई लोग थे .तभी बताया गया कि पूरे रास्ते में सिर्फ एक बंगाली ढाबा पड़ता है उसके अलावा कहीं कुछ नहीं मिलेगा .तय किया गया कि इसी ढाबे वाले से खाना बनवा लिया जाएगा और लौटते समय खाना वहीँ खा कर लौटा जाए .बातचीत होते होते यमुना पुल आ गया .पहाड़ से उतरते उतरते हम घाटी में आ गए थे .हरियाली के बीच .ढाबे के सामने गाडी खड़ी हुई .चाय ली गई और उससे कहा गया कि बारह लोगों का खाना बना कर रखना है .सत्तर रूपये की थाली थी मछली चावल और रोटी वाली .शाकाहारी लोगों के लिए दाल और दही का भी विकल्प था .थोड़ी देर में आगे बढे तो यमुना को देखते रह गए .
एक पहाड़ की परिक्रमा कर आती यमुना का दृश्य अदभुत था .इस यमुना तक हम गए पुल से नीचे उतर कर .यहां से फिर चढ़ाई शुरू हो चुकी थी .कुछ देर तक यमुना के साथ साथ चलते रहे .यहीं पर हिमाचल से आते कुछ ट्रक भी दिखे .यह रास्ता छोटा माना जाता है .पर अपने को यमुना का यह रूप और रंग दोनों अलग दिखा .पता नहीं आपने कहां पर यमुना को देखा है और किस रंग में देखा है .कहीं हरा तो कहीं नीला रंग .कितना साफ़ पानी .इतना साफ़ कि पास से नदी में तैरती मछलियां भी दिख जाएं .
जाते समय पुल के पहले बंगाली रेस्तरां वाले को बता दिया था कि करीब बारह लोग लौट कर खाना यही खायेंगे .वह मछली रोटी और चावल की थाली सत्तर रूपये में देता है .शाकाहारी लोगों के लिए सब्जी दही भी रखता है .यह बंगाली परिवार कई साल पहले चौबीस परगना से आया था और अब यमुना के पानी से गुजारा कर रहा है .सुबह यमुना से जो मछली पकड़ी जाती है वह खरीद लेता है और दिन रात ट्रक वालों के साथ कुछ सैलानियों को मछली भात परोसता है .साथ में जो पानी होता है वह भी यमुना का .हम लोग यमुना नदी के तट तक गये पर उसका प्रवाह देख कर आगे नहीं बढे .फिर जौनसार बाबर मंदिर की तरफ जाना था इसलिए आगे बढ़ गये .यमुना साथ साथ थी और एक बड़े पहाड़ की परिक्रमा करती नजर आ रही थी .यह बहुत ही हरा भरा इलाका है .एक तरफ खेत तो दूसरी तरफ पहाड़ .खेतों की तरफ ही कुछ हजार फुट नीचे यमुना .पर फल के पेड़ बहुत कम दिखे .हां एक ट्रक दिखा तो जबर सिंह ने बताया कि ये हिमाचल का सेब लेकर नीचे जा रहा है .
.इस रास्ते पर चकराता करीब चालीस किलोमीटर दूरी पर है .करीब बीस साल पहले सविता के साथ गया था और वहा के एकमात्र डाक बंगले में तीन दिन रहा था .वह बहुत ही रोमांचक यात्रा थी और एक बड़े हादसे से सविता बच कर आ गई थी .वहा से शिमला का भी शार्ट कट है .यह सब याद कर रहा था तभी जौनसार आ गया .यह अद्भुत क्षेत्र है .यह समूचा क्षेत्र जनजाति के लिए आरक्षित है .यह काम साठ सत्तर के दशक के बीच हुआ था .जिसके चलते यहां के बाभन और ठाकुर बिरादरी को आरक्षण का लाभ मिलता है और जो दलित है उनसे ज्यादा फायदे में अगड़ी जातियां रहती है .यहां दलित किसी की जमीन इसलिए नही ले सकता क्योंकि वह जनजाति वाले की होती है भले ही वह ठाकुर हो .जो महासू देवता का मंदिर है उसपर भी ठाकुर बिरादरी का दबदबा है .कोई दलित यहां प्रवेश नहीं कर सकता .इसपर लिख रहा हूँ .मंदिर परिसर में कई मोटे बकरे नजर आये जो मंदिर की संपति होते है और वे चढ़ावे में आते है इनके लिए एक बाड़ा भी बना है .मंदिर में अपने साथ कई दलित नौजवान इस मंदिर में पहली बार गये .पुजारी ने प्रबंधको को इशारा किया कि सबका ब्यौरा ले और इनसे बासद में निपटा जायेगा .खैर यह मुद्दा अलग है और इसपर खबर भी लिखना है इसलिए मूल मुद्दे पर आता हूं .नदी और पानी के मुद्दे पर .पर्यावरण के मुद्दे पर .यमुना को दिल्ली में देखता रहा हूं .कभी नहाने की हिम्मत तक नहीं हुई उसी यमुना का बोतल भर पानी पिया तो मिनरल वाटर से बेहतर लगा .
यमुना का हरा रंग और तलहटी तक दिखाई देने वाला पानी जिसे हमने दिल्ली तक पहुंचाते पहुंचाते जहरीला बना दिया .असली यमुना तो यहां दिखी .एक हरे भरे पहाड़ की परक्रमा कर रही यमुना की फोटो ली तो कुछ देर खड़ा रहा गया .ऐसा दृश्य बहुत कम दिखता है .फिर चले तो उसी यमुना पुल के बंगाली रेस्तरां या ढाबा पर रुके .अरविंद की इच्छा थी और झारखंड बंगाल के भी कुछ लोग मछली खाना चाहते थे .यह छोटी मछली थी जिसे उसने सही शब्दों में मछली की दाल बनाकर दे दिया था .सिर्फ नमक हल्दी मिर्च वाले पानी में उबली हुई .पर यमुना से सुबह ही पकड़ी गई मछली बहुत ताज़ी थी इसलिए स्वादिष्ट लगी .साथ में यमुना का पानी भी . फोटो वही की है .
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