डाक बंगला से लेकर होम स्टे तक

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डाक बंगला से लेकर होम स्टे तक

अंबरीश कुमार  
कल किसी ने पूछा कि किस तरह यात्रा की जाए कि बहुत ज्यादा खर्च न हो .अपनी यात्राएं बचपन में परिवार के साथ साठ के दशक के शुरू हुई जब पापा रेलवे में इंजीनियर थे .वे दादी को चारो धाम की यात्रा करा रहे थे .द्वारका ,रामेश्वरम ,पुरी से लेकर कामख्या देवी के मंदिर तक .पहाड़ पर बद्रीनाथ केदारनाथ भी .रेलवे में तब ज्यादातर जगह रुकने की सुविधा आसानी से मिल जाती थी .तब का पहला दर्जा एक पूरा अलग डिब्बा होता था चार बर्थ का .नीचे की बर्थ पर दो बच्चे आसानी से सो जाते थे .होल्डाल और बड़े बक्से का ज़माना था .रेल के डिब्बे में नहाने की भी सुविधा थी .यह डिब्बा एक ट्रेन से काट कर दूसरी ट्रेन से जोड़ दिया जाता था .जैसे लखनऊ से मद्रास की सीधी ट्रेन नहीं होती थी .यहां से चार पांच डिब्बे किसी दूसरी ट्रेन से झांसी तक जाते फिर उन्हें दक्षिण की ट्रेन से जोड़ दिया जाता .फिर विजयवाड़ा में डिब्बा काट दिया जाता और दस बारह घंटे बाद इसे दूसरी ट्रेन में जोड़ दिया जाता .यह समय रिटायरिंग रूम या रेलवे आफिसर के गेस्ट हाउस में गुजरता .जिस स्टेशन पर यह सुविधा नहीं होती वहां कोई डाक बंगला या धर्मशाला में जगह ली जाती .तब धर्मशाला भी बहुत साफ़ सुथरी और बेहतर होती थी .खाना खाने का ज्यादातर इंतजाम साथ होता .एक बक्से में स्टोप ,बर्तन और राशन होता .सब्जी आदि स्थानीय बाजार से ली जाती .यह काम अमूमन मम्मी करती .एक बार दार्जिलिंग में वे रास्ता भी भटक गई थी पर कुछ देर बाद पता चल गया .यह संदर्भ इसलिए क्योंकि इससे यात्रा करने का एक तरीका मैंने भी सीखा .ठहरना अमूमन डाक बंगला में होता जो पत्रकार होने की वजह से आसानी से मिल भी जाता रहा है .इसके चलते देश के सौ से ज्यादा पुराने डाक बंगला में रुकने का अनुभव हुआ .पर यह सुविधा सब को तो नहीं मिल सकती पर कई डाक बंगला आम लोगों को भी किराये पर दिए जाते हैं पर उसके लिए समय पर बुकिंग करा लें .दीव ,दमन ,गोवा के सर्किट हाउस में आम लोगों के लिए भी बुकिंग होती है .ऐसे बहुत से डाक बंगला है . 
अब एक नई व्यवस्था शुरू हुई है होम स्टे की .यह सबसे बेहतर और किफायती है .इसे गोवा ने शुरू किया और अब यह महाराष्ट्र ,हिमाचल से लेकर उतराखंड के पहाड़ी सैरगाहों पर उपलब्ध है .होटल की अपेक्षा काफी सस्ता पड़ता है .हफ्ते दस दिन के लिए किसी भी पहाड़ी सैरगाह पर मिल जायेगा .खाना भी घर का और बहुत महंगा नहीं होता .दस पंद्रह हजार में पांच सात दिन आराम से रुक सकते हैं .पर खाना वही मिलता है जो स्थानीय लोग खाते हैं .किसी भी यात्रा में जायें तो बिजली की छोटी केतली दो कप ,डीप वाली चाय ,पावडर दूध के छोटे सैसे और सुगर क्यूब साथ रखे .कुछ बिस्कुट ,भुना चना आदि भी .इससे सिर्फ चाय के लिए सुबह कहीं दौड़ना नहीं पड़ेगा .अपना वाहन आज कल ज्यादातर लोग रखते ही हैं .होम स्टे में कई जगह किचन भी रहता है ऐसे में खुद खाना एक समय बनाना बेहतर होता है .मैं दीव के जिस डाक बंगला में रुका था उसमें तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल अक्सर ठंढ में आती थी .हमे एक फ़्लैट मिला था जिसमें किचन आदि सब था .हालांकि जरुरत नहीं पड़ी क्योंकि रेस्तरां से समय पर सब आ जाता था पर वह व्यवस्था काफी अच्छी लगी .फिर गोवा के सालिग्राम में एक एपार्टमेंट में दो बेडरूम वाला फ़्लैट मिला जिसमें एक समय का खाना खुद ही बनाना अच्छा लगता था .सारा सामन पास के सुपर मार्केट में मिल जाता था .  इसलिए होम स्टे वाली व्यवस्था बहुत अच्छी है .जहां भी जाना चाहें नेट पर सारी जानकारी मिल जाएगी .पहाड़ पर भवाली ,रामगढ़ ,अल्मोड़ा ,रानीखेत में शहर से हटकर या कौसानी के होम स्टे में रुकना बेहतर है .ये शहर के होटलों से सस्ते होते हैं ट्रेन की फोटो साभार 

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