पांच अगस्त 2019 को दफा-370 खत्म किए जाने के वक्त जिन लीडरान को गिरफ्तार या नजरबंद करके वजीर-ए-आजम मोदी ने बारह से सोलह महीनों तक बाहर नहीं आने दिया. दफा तीन सौ सत्तर (370) हटाए जाते वक्त जिन लोगां को भरोसे में लेने लायक भी नहीं समझा गया. जिन लीडरान को मरकजी होम मिनिस्टर अमित शाह ने गुपकार गैंग कहकर तिरंगे की तौहीन करने वाले, पाकिस्तान की जुबान बोलने वाले और कश्मीर में गैर मुल्की दखल को मदऊ (आमंत्रित) करने वाला कहकर अपने तर्जुमानों और गुलाम मीडिया से महीनों बुराभला कहलवाया, गालियां बकवाई उसी गुपकार गठजोड़ के लीडरान का चौबीस (24) जून को दिल्ली में वजीर-ए-आजम की रिहाइश पर पीएम मोदी और अमित शाह दोनों ही खैरकमदम करते दिखे. वैसे एक सौ तीस करोड़ के अजीम (महान) मुल्क के वजीर-ए-आजम के लिए इस कहावत का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए लेकिन इस कार्रवाई पर ‘थूक कर चाटने’ वाली कहावत बिल्कुल फिट बैठती है.
श्रीनगर में डाक्टर फारूक अब्दुल्लाह के गुपकार रोड मकान पर महबूबा मुफ्ती की पीडीपी समेत आद्दा दर्जन से ज्यादा सियासी पार्टियों के लीडरान ने एक मीटिंग करके तय किया था कि उनके मतालबात क्या-क्या हैं. दफा 370 और 35ए को बहाल करने के लिए जम्मू कश्मीर की तमाम पार्टियां जद्दोजेहद करती रहेंगी. इसी को गुपकार डिक्लेरेशन कहा गया था. एलान हुआ था कि आइंदा तमाम कार्रवाइयां गुपकार डिक्लरेशन के मुताबिक ही होगी. गुपकार डिक्लरेशन के बाद होम मिनिस्टर अमित शाह ने डिक्लरेशन पर दस्तखत करने वाले लीडरान को गुपकार गैंग कह कर खिताब किया था. गैंग मतलब क्रिमिनल्स का गरोह अब उन्हीं गैंग लीडरान के सामने चौबीस जून को अमित शाह पूरी तरह छाए बिछाए (नतमस्तक) दिखे. वजीर-ए-आजम मोदी भी गुपकार गैंग के साथ साढे तीन घंटे तक मुस्कुराते हुए बात करते रहे यह भी कहा कि हम कश्मीरियों के साथ दिल्ली और दिल दोनों के फासले कम करना चाहते हैं. सवाल यह है कि अगर आपकी नियत फासले कम करने की ही थी तो चार अगस्त 2019 से तमाम लीडरान समेत हजारों कश्मीरियों को गिरफ्तार और नजरबंद क्यों किया था? पूरी कश्मीर वादी को जेल में क्यों तब्दील कर दिया था. गुलाम टीवी चैनलों ने गुपकार गैंग कहकर महीनों कश्मीरी लीडरान के लिए अमित शाह की तरह देश के कौमी परचम (तिरंगे) की तौहीन करने वाला और पाकिस्तान की जबान बोलने वाला गैंग कहा था, अब उन गुलाम चैनलों की समझ में नहीं आया कि आखिर वह इस बातचीत के बाद क्या स्टैण्ड लें.
वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी इंतेहाई चालाक किस्म के हुक्मरां हैं इस बातचीत का यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि अचानक उनके दिल में कश्मीरियों के लिए प्यार उमड़ पड़ा है या जैसा उनकी जानिब से कहा गया कि वह जम्मू कश्मीर में जम्हूरियत (लोकतन्त्र) बहाल करना और कश्मीर से दिल्ली और दिल दोनों का फासला कम करना चाहते हैं. इस बातचीत की पहल के पीछे मोदी की मजबूरी और गैर मुल्की दबाव है यह दबाव चीन, पाकिस्तान और अमरीका समेत कई तरफ से है. जल्द ही मोदी अमरीका के दौरे पर जाने वाले हैं. अमरीका का दबाव इसलिए है कि अमरीका जल्द ही अफगानिस्तान से अपनी फौज हटाने जा रहा है. उस सूरत में खतरा यह होगा कि अफगानिस्तान में सरगर्म दहशतगर्द गरोहों और कट्टरपंथी तालिबान भारत की जानिब ही रूख कर सकते हैं. अगर भारत और पाकिस्तान के दरम्यान रिश्ते बेहतर हांगे तो अफगानिस्तान में अमरीकी फौजियों के साथ लड़ रहे दहशतगर्दों और तालिबान को भारत की जानिब आने से रोकने में कामयाबी मिल सकती है. अमरीका की नई सरकार यह भी चाहती है कि साउथ एशिया में अम्न व अमान ही रहे ताकि उसके तिजारती और कारोबारी मामलात ठीक रहें.
बातचीत के पीछे मोदी के जो मकामी मकासिद हैं वह यह हैं कि तकरीबन दो सालों में भारत सरकार न तो आम कश्मीरियों का भरोसा जीत सकी है न कश्मीरी पंडितों की अपने वतन वापसी का कोई रास्ता निकल सका है न कश्मीर में अम्न कायम हो सका है. इसलिए मोदी और अमित शाह चाहते हैं कि जल्द से जल्द एलक्शन कराकर कश्मीर को चुनी हुई सरकार के हवाले करके अपनी जान छुड़ा लें और चुनकर आने वाली सरकार सारी दुश्वारियां झेलने का काम करें. मोदी का एक और अहम मकसद है जम्मू रीजन में डिलिमिटेशन कराकर कश्मीर वादी और जम्मू के असम्बली सीटों का फर्क कम करना. कश्मीरी सियासतदानों की मर्जी के बगैर डिलिमिटेशन का काम मुकम्मल नहीं हो पा रहा था. याद रहे कि कश्मीर वादी से छियालीस (46) असम्बली मेम्बर चुने जाते हैं जबकि जम्मू रीजन से अभी तक सैंतीस (37) असम्बली मेम्बर ही आते है. डिलिमिटेशन के बाद जम्मू रीजन में सात सीटों का इजाफा करने का मोदी का मकसद है ताकि जम्मू की सीटें असम्बली में बढकर चौवालीस हो जाए. इसके पीछे अस्ल मकसद यह है जम्मू की सारी सीटें जीतकर कश्मीर में मुसलमान के बजाए गैर मुस्लिम वजीर-ए-आला भी बनाया जा सके चौबीस जून की मीटिंग में मोदी कश्मीरी लीडरान से यह मंजूर कराने में कामयाब हो ही गए कि डिलिमिटेशन की कार्रवाई में सभी पार्टियां और लीडरान तआवुन करेंगे.
पांच अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर को खुसूसी दर्जा देने वाली दफा 370 को खत्म करके लद्दाख को जम्मू कश्मीर से अलग करके लद्दाख और जम्मू कश्मीर को दो यूनियन टेरिटरीज में तब्दील कर दिया था ताकि दोनों यूनियन टेरिटरीज पर सीद्दे मरकजी होम मिनिस्ट्री का कण्ट्रोल रहे. यह कण्ट्रोल फाइलों में तो कायम हो गया लेकिन अमली तौर पर होम मिनिस्टर अमित शाह दोनों ही यूनियन टेरिटरीज को चलाने में नाकाम ही रहे हैं. चौबीस जून की मीटिंग में गुपकार गठजोड़ के लीडरान खुसूसन महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्लाह ने वजीर-ए-आजम मोदी से साफ कह दिया कि वह लोग 370 की वापसी की जद्दोजेहद जारी रखेंगे और पूरी शिद्दत के साथ अदालत के जरिए कानूनी लड़ाई लड़ते रहेंगे. उनका कहना था कि दफा 370 सिर्फ जम्मू कश्मीर को खुसूसी दर्जा ही नहीं देती थी बल्कि इसी दफा के जरिए जम्मू कश्मीर का भारत में इलहाक (विलय) हुआ था उन्होने मोदी से कहा कि 370 हटाने का आपका एजेण्डा था लेकिन यह फैसला ठीक नहीं हुआ. बाद में छब्बीस (26) जून को श्रीनगर में गुपकार गठजोड़ की जानिब से वाजेह कर दिया गया कि डिलिमिटेशन के बाद पहले जम्मू कश्मीर को मुकम्मल रियासत का दर्जा दिया जाए उसके बाद ही असम्बली एलक्शन होने चाहिए.जदीद मरकज़
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