आनंद मोहन 14 वर्ष बाद भी जेल में

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आनंद मोहन 14 वर्ष बाद भी जेल में

आलोक कुमार 
सहरसा.कोरोना के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने 07 मई को फैसला लिया कि कैदियों की सजा पर विचार करते हुए उन्हें टेम्पररी जमानत या पैरोल पर रिहा कर जेल की भीड़ को कम किया जाए.ऐसा आनंद मोहन के साथ नहीं हुआ. जेल में रहकर निर्दोष साहित्यकार पूर्व सांसद  आनन्द मोहन  ने रचा इतिहास! 
मैथिली भाषा को अष्टम सूची में शामिल करवाने वाले, साहित्यिक जगत में अपनी लेखनी से उद्वेलित करने वाले पूर्व सांसद आनंद   मोहन ने जेल में रहकर उर्दू से एमए कर लिया है. 
 
कोसी की धरती पर पैदा हुए आनंद मोहन सिंह बिहार के सहरसा जिले के पचगछिया गांव से आते हैं. उनके दादा राम बहादुर सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे. राजनीति से उनका परिचय 1974 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति आंदोलन के दौरान हुआ, जिसके कारण उन्होंने अपना कॉलेज तक छोड़ दिया. इमरजेंसी के दौरान उन्हें 2 साल जेल में भी रहना पड़ा. कहा जाता है कि आनंद मोहन सिंह ने 17 साल की उम्र में ही अपना सियासी करियर शुरू कर दिया था.ये आजाद भारत के पहले ऐसे राजनेता है जिसे फांसी की सजा सुनाई गई. हालांकि, इस सजा को बाद में ऊंची अदालत ने उम्र कैद में बदल दिया जिसके तहत आनंद मोहन सिंह आज भी आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं. 


कहा जाता है कि आनंद मोहन सिंह कई मामलों में आरोपित हैं. लेकिन 1994 में एक मामला ऐसा आया, जिसने ना सिर्फ बिहार बल्कि पूरे देश को हिलाकर रख दिया. दरअसल, जिस समय आनंद मोहन ने अपनी चुनावी राजनीति शुरू की थी, उसी समय बिहार के मुजफ्फरपुर में एक नेता हुआ करते थे जिनका नाम था छोटन शुक्ला.  आनंद मोहन और छोटन शुक्ला की दोस्ती काफी गहरी थी.  

5 दिसंबर 1994 को छोटन शुक्ला की हत्या कर दी गई. जिसके बाद आनंद शुक्ला ने छोटन शुक्ला की लाश के साथ राजनीतिक रैली निकाली. रैली में लाखों की भीड़ मौजूद थी. इसी बीच हाजीपुर के रास्ते नेशनल हाईवे नंबर 28 से एक लाल बत्ती की गाड़ी गुजर रही थी. गाड़ी में गोपालगंज के दलित आईएएस अधिकारी जी कृष्णैया मुजफ्फरपुर की आधिकारिक बैठक में हिस्सा लेकर  गोपालगंज वापस लौट रहे थे. 

लालबत्ती की गाड़ी देख भीड़ भड़क उठी और गाड़ी पर पथराव करना शुरू कर दिया, जी कृष्णैया को गाड़ी से बाहर निकाला गया और खाबरा गांव के पास भीड़ ने पीट-पीटकर उनकी हत्या कर दी. भीड़ को आनंद मोहन द्वारा उकसाया गया था. आरोप था कि उन्हीं के कहने पर भीड़ ने जी कृष्णैया की हत्या की.इस संदर्भ में कहा जाता है कि घटना के समय 65 किलोमीटर की दूरी पर हाजीपुर में थे आनंद मोहन.गिरफ्तारी के समय में मात्र 12 मिनट का फासला भी मुकदमा की झूठी गवाही देता है. 

सर्वविदित है कि गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया के हत्या मामले में उम्र कैद की सजा भुगत रहे हैं पूर्व सांसद श्री आनन्द मोहन.उन्होंने जेल को अवसर के रूप में तब्दील कर दिया है.जेल में सजा काटने के दौरान आनंद ने पहले भी कई पुस्तक लिख चुके हैं. जिसमें "कैद में आजाद कलम", "स्वाधीन अभिव्यक्ति" और "पर्वत पुरुष दशरथ मांझी" जैसी पुस्तक शामिल है.जिसे सीबीएसई के आठवीं कक्षा में के सिलेबस में चलाया जा रहा है."कैद में आजाद कलम' को संसद के ग्रंथालय में भी जगह दी गई है.पूर्व सांसद आनंद मोहन की लिखी कहानी 'पर्वत पुरुष दशरथ' काफी फेमस है. 

आनंद मोहन और लवली आनंद की शादी 1991 में हुई थी. जेल में रहते हुए भी साल 2010 में वे अपनी पत्नी लवली को कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव और 2014 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़वाने में कामयाब रहे. भले ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोषी करा दिए जा चुके अपराधियों के चुनाव लड़ने में रोक लगा दी हो लेकिन बिहार में आनंद मोहन का दबदबा आज भी कम नहीं हुआ है.  

सांसद लवली आनंद न्यायालय और सरकार से न्याय की उम्मीद करती है.कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाल में ही कहा था कि हमें पुराने साथी आनंद मोहन की भी चिता है, ऐसे में हम मुख्यमंत्री के आभारी हैं.आनंद मोहन को गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया की हत्या में उम्रकैद की सजा हुई है. वह 2007 से जेल में हैं.17 मई को 14 वर्ष की सजा पूरी हो चुकी है.  

आनंद मोहन के बेटे विधायक चेतन आनंद ने कहा कि कोरोना संक्रमण व लॉकडाउन की वजह से रिहाई से पहले बनने वाला बोर्ड अभी तक गठित नहीं हो पाया है.उन्होंने मांग की है कि राज्य सरकार सक्रिय होकर और हमारे पिता की रिहाई कराए.   

मामले के तहत आनंद, उनकी पत्नी लवली समेत 6 लोगों को आरोपी बनाया गया. साल 2007 में पटना हाईकोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराया और फांसी की सजा सुनाई. आजाद भारत में यह पहला मामला था, जिसमें एक राजनेता को मौत की सजा दी गई थी. हालांकि, 2008 में इस सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया. साल 2012 में आनंद सिंह ने सुप्रीम कोर्ट से सजा कम करने की मांग की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया और वे आज भी आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं. 

पूर्व सांसद लवली आनंद और बेटे विधायक चेतन आनंद ने उनकी रिहाई की मांग उठाई है. आनंद मोहन की रिहाई के लिए उनके परिवारवालों के साथ-साथ समर्थकों ने सोशल मीडिया पर मुहिम छेड़ रखी है.  

17 मई को 14 वर्ष की सजा पूरी होने के 45 दिनों से जेल में  

पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई की मांग को लेकर फ्रेंड्स ऑफ आनंद के सदस्यों ने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को पोस्टकार्ड भेजने का अभियान शुरू कर दिया है. फ्रेंड्स ऑफ आनंद के समर्थकों ने बताया कि यह अभियान पांच जून को जेपी संपूर्ण क्रांति दिवस से शुरू किया गया है.इस अवसर पर फ्रेंड्स ऑफ आनंद के वरिष्ठ एवं सक्रिय कार्यकर्ता उज्जवल सिंह ने बताया कि यह अभियान आनंद मोहन की रिहाई तक जारी रहेगा.श्री उज्जवल ने बताया कि शनिजिले के सैकड़ों लोगों ने पोस्टकार्ड पर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को उनकी रिहाई के लिए पोस्ट कार्ड के जरिए पत्र लिखा है. श्री उज्जवल ने बताया कि वर्षों से फ्रेंड्स ऑफ आनंद के समर्थकों की ओर से पूर्व सांसद की रिहाई को लेकर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम चलाए जाते रहे हैं लेकिन सरकार के कानों पर जूं नहीं रेंग रही है। 

 

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