चिराग और पारस के बीच अब पटना में रस्साकशी

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

चिराग और पारस के बीच अब पटना में रस्साकशी

फ़ज़ल इमाम मल्लिक 
रामविलास पासवान की विरासत की जंग का मैदान अब पटना बनेगा. रामविलास पासवान की जयंती के बहाने पशुपति पारस और चिराग पासवान दो-दो हाथ करने की तैयारी में हैं. पारस कई रोज पहले पटना पहुंचे. चिराग पांच जुलाई को पटना पहुंचेंगे. उसी दिन रामविलास पासवान की जयंती है. चिराग हाजीपुर से आशीर्वाद यात्रा शुरू करेंगे. पारस पटना में कार्यक्रम करेंगे. पारस ने पटना में अपनी ताकत तो दिखा दी है. पटना में उनके पोस्टर चौक-चौराहों पर लगे हैं और हर प्रमुख जगहों पर उनके होर्डिंग लगा डाले गए हैं और ऐसा करते हुए इस बात का पूरा ख्याल रखा गया है कि पोस्टर-होर्डिंग के लिए चिराग को जगह न मिले. हालांकि चिराग अपने बचे-खुचे समर्थकों को संदेश भेज कर बड़ी तादाद में एयरपोर्ट पहुंचने का निर्देश दे चुके हैं. रास्ते में लोजपा कार्यालय भी है. लोजपा कार्यालय पर पारस का कब्जा है. इसलिए टकराव के आसार भी हैं. वैसे कहा जा रहा है कि चिराग अंदरखाने पप्पू यादव की मदद ले रहे हैं ताकि सूरजभान के असर को कम किया जा सके. 

रामविलास पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी की स्थापना की थी तो उन्होंने एक नारा दिया था- मैं उस घर में दिया जलाने निकाला हूं, जहां सदियों से अंधेरा है ! रामविलास पासवान ने राजनीतिक जीवन की शुरुआत इसी नारे से की थी. लेकिन अब उनके घर में ही अंधेरा पसर गया है. पार्टी संकट से जूझ रही है. समय के साथ उनके बेटे और सांसद चिराग पासवान ने पार्टी के पुराने नारे में बदलाव किया लेकिन चिराग में रामविलास पासवान वाली खूबियां नहीं हैं. वे जमीनी नेता भी नहीं हैं. पैराशूट से ही वे सियासत में टपके थे इसलिए अवाम से वे उतने ही दूर रहे, जितने नजदीक रामविलास पासवान या उनके चाचा पशुपति कुमार पारस या रामचंद्र पासवान.  

पिता से विरासत मिली तो चिराग के पंख लगे. रामविलास पासवान ने उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया और इसके बाद ही लोक जनशक्ति पार्टी में पुरानी और नई पीढ़ी के बीच एक लकीर पनपी जो रोज ब रोज चौड़ी होती गई. चिराग ने इस लकीर को पाटने की बजाय उसे गहरी और चौड़ी होने दिया. रामविलास पासवान ने इस लकीर को मिटाने की कोशिश जरूर की. लेकिन वे ऐसा नहीं कर सके. उन पर पुत्र मोह का ओरोप भी लगा, जो गलत भी नहीं था. अपनी दूसरी पत्नी के दबाव में चिराग को पहले संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाया और फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष. न तो पशुपति पारस ने इसका विरोध किया और न ही उनके दूसरे भाई रामचंद्र पासवान ने. लेकिन यह भी सही है कि रामविलास पासवान के इस फैसले से दोनों भाई खुश नहीं थे. लेकिन दोनों चुप रहे. यह भी सही है कि लोजपा में टूट की बड़ी वजह चिराग की ताजपोशी ही रही. चिराग आज पारस या उनके साथियों को भले दोष दें लेकिन सच यह है कि इसके लिए वे भी कम जिम्मेदार नहीं हैं. पार्टी में बाहरी ताकतों का दबदबा बढ़ा और चिराग ने पुराने लोगों को हाशिये पर पहुंचा दिया. सियासी तौर पर देखा जाए तो कमबोशे ऐसी ही स्थिति राजद में भी है. नए रंगरूटों के आने के बाद लालू यादव के पुराने संगी-साथी दरकिनार कर दिए गए हैं. उनकी पूछ नहीं है. असंतोष वहां भी है और पार्टी के अंदर का संतोष बाहर नहीं आरहा है तो इसकी वजह लालू यादव हैं, तेजस्वी नहीं. लालू यादव के बाद राजद का हाल लोजपा जैसा न हो जाए, इसकी आशंका तो है. लेकिन लोजपा तो बिखर ही गई. रामविलास पासवान को भी परिवार में पनपते कलह का अहसास था लेकिन एक अनदेखा दबाव था उन पर और इसी दबाव ने उन्हें चुप रहने पर मजबूर किया होगा. फिर उनकी सेहत खराब रहने लगी और नतीजा यह निकला कि वे लोक जनशक्ति पार्टी में पनपी दरार को पाटने की उस तरह कोशिश नहीं कर पाए जिस तरह करनी चाहिए थी. चिराग को खुला मैदान मिल गया था और वे अपनी मन-मर्जी पार्टी में थोपने लगे. इससे बहुत सारे पार्टी के वरिष्ठ नेता आहत भी हुए. विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने के फैसले ने पार्टी में दरार को और चौड़ी किया. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने चिराग को ऐसा करने से रोका भी लेकिन वे तो सपनों के पंख पर सवार थे. वे नीतीश कुमार को मिट्टी में मिलाने का एलान चीख-चीख कर रहे थे. नतीजा यह निकला कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने चुप्पी साध ली. चिराग यह भूल गए कि वे जिस सियासी जमीन पर खड़े थे, भले वह जमीन उन्हें रामविलास पासवान से विरासत में मिली हो लेकिन इस जमीन को तैयार तो पशुपति पारस और रामचंद्र पासवान ने ही किया था. रामविलास पासवान केंद्र की राजनीति में सक्रिय हुए तो उनके दोनों भाई ही बिहार में रामविलास पासवान को मजबूत करने और पार्टी को आगे बढ़ाने में लगे रहे. चिराग के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद भी पार्टी को दोनों चाचा ही आगे बढ़ाते रहे थे और पशुपति पारस के बिहार का अध्यक्ष रहते हुए लोक जनशक्ति पार्टी ने 2019 में लोकसभा की सभी छह सीटों पर जीत दर्ज की थी. इसके बाद उन्हें बिहार के अध्यक्ष पद से हटाया गया तो उसक मलाल तो था ही, विधानसभा चुनाव में अपने को नजरअंदाज किए जाने की पीड़ा भी थी. चिराग ने पारस ही नहीं दूसरे वरिष्ठ नेताओं से भी राय-मश्विरा की जरूरत महसूस नहीं की. इससे बगावत की आंच सुलगी और चुनाव से पहले ही पार्टी टूटने की खबरें आन लगीं थीं लेकिन पहले रामविलास पासवान बीमार पड़े और फिर उनका निधन हो गया तो पारस और उनके समर्थकों ने पांव पीछे खींच लिए क्योंकि उस समय विद्रोह करते तो चिराग हमदर्दी बटोर ले जाते और पारस के हाथ कुछ नहीं लगता. लेकिन विद्रोह अंदर-अंदर पनपता रहा. चिराग इसे भांप नहीं पाए या फिर उन्हें लगा होगा कि उनकी स्थापित सत्ता को कौन चुनौती दे सकता है. हो सकता है भाजपा के साथ मिलने का भी उन्हें गुमान तब रहा हो.   

विधानसभा चुनाव से पहले जदयू को मिट्टी में मिलाने की कसम खाने वाले खुद मिट्टी में मिल गए. फिलहाल वे अकेले रह गए हैं. ऐसे में चिराग के लिए बहुत मुश्किल वक्त है. पार्टी के बंगला में चाचा पारस डेरा जमाते हैं या चिराग देखना दिलचस्प है. हालांकि फिलहाल तो पारस के पक्ष में सब कुछ दिख रहा है. चिराग के पास दिल्ली में मौजूद नेताओं का साथ जरूर है लेकिन बिहार में उनके रवैया से आहत नेताओं का बड़ा समूह पारस के साथ है. संसदीय दल के नेता तो पारस बन ही गए हैं. अगर केंद्रीय मंत्रिमंडल में उन्हें जगह मिल जाती है, जिसकी संभावना है तो फिर चिराग का बंगला और सूना होते देर नहीं लगेगी. वैसे मामला चुनाव आयोग के बाद मामला अदालत में भी पहुंचेगा. चिराग अब पांच जुलाई से हाजीपुर से आशीर्वाद यात्रा पर निकलेंगे. बिहार फर्स्ट-बिहारी फर्स्ट के नारे को लेकर भी वे बिहार कुछ इलाके में घूमे थे. लेकिन बिहार में चिराग का जनाधार नहीं है, उस यात्रा से भी पता चल गया था. वे हवाई नेता हैं. बल्कि सच तो यह है कि नेता बनाए गए हैं. आम कार्यकर्ताओं को उनसे शिकायत रही है. इसलिए बिहार में उनके समर्थन में बहुत कम लोग सामने आए. पटना की सड़कों पर पारस के समर्थन में जितने पोस्टर हैं, चिराग के पोस्टर तो दिखाई भी नहीं देते. पारस बिहार के अध्यक्ष रहे हैं. बिहार के हर जिले में उनकी पकड़ है. चिराग की पकड़ बिहार में उतनी नहीं है क्योंकि उन्होंने बिहार में काम ही नहीं किया है. जाहिर है कि उनके सामने चुनौती ज्यादा बड़ी है. पटना में पार्टी के आफिस पर पारस का कब्जा हो गया है और संसदीय दल के नेता पद पर भी. दोनों गुट फिलहाल बैठकें भी कर रहा है और कानूनी सलाह-मश्विरा भी ले रहा है. चिराग ने दिल्ली में कार्यकारिणी की बैठक बुलाई तो लोजपा (पारस गुट) के राष्ट्रीय अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस ने इस बैठक को असंवैधानिक करार दिया. पारस ने कहा कि लोजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक 17 जून को पटना में हो गई और  सर्वसम्मति से उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया. चिराग की बुलाई गई बैठक असंवैधानिक व पार्टी संविधान के खिलाफ थी.  लोजपा में फूट के लिए जिन सौरभ पांडेय को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है उन्होंने एक चिट्ठी जारी कर बताने की कोशिश की है रामविलास उन्हें अपना बेटा मानते थे. वैसे इस चिट्ठी पर सवाल उठ रहे हैं. पारस कहते हैं कि चिट्ठी के कई पन्ने गायब हैं. दो पन्नों में मेरा जिक्र था. चिराग में भी भावनात्मक कार्ड खेला है और चार पेज की चिट्ठी लिखी है. चिट्ठी में भाजपा को नसीहत दी है कि वे नीतीश कुमार से सावधान रहें. वे पलटी मार सकते हैं. लेकिन नीतीश कुमार के पलटी मारने की बात करते हुए वे अपने पिता के इतिहास को भूल जाते हैं कि उन्होंने कब-कब और किन-किन गठबंधनों से पलटी मारी थी. 

फिलहाल चिराग बचाव की मुद्रा में हैं. आशीर्वाद यात्रा पर नजरें रहेंगी. लेकिन पारस फ्रंटफुट पर हैं. दीवार फिल्म का वह संवाद याद आरहा है कि मेरे पास मां है तो इसी तरह कहा जा सकता है कि पारस के साथ सूरजभान हैं. सूरजभान होने का मतलब बिहार के लोग बेहतर तरीके से समझ सकते हैं. दबंग और बाहुबली सूरजभान का बिहार में दबदबा है. उनका रिकार्ड आपराधिक रहा है. अरसे तक वह जेल में रहा है और सूरजभान चाह ले तो चिराग को उनके संसदीय क्षेत्र में भी घेर सकता है. चिराग के लिए पारस से बड़ा खतरा सूरजभान है और वह सूरजभान, पारस के साथ खड़ा है. यह आम कहावत है कि चिराग तले अंधेरा, लोक जनशक्ति पार्टी में यह कहावत सही साबित हो रही है. फर्क बस इतना है कि चिराग के आसपास पसरी रोशनी उसकी अपनी नहीं रामविलास पासवान की है और रामविलास पासवान अब नहीं हैं. 




 

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :