आलोक कुमार
बांद्रा.विख्यात सोशल एक्टिविस्ट फादर स्टेन स्वामी का निधन हो गया.उनके निधन से देश-विदेश-प्रदेश में गम पसर गया.उनकी इच्छा पूरी नहीं हो सकी,जहां पर आजीवन काम किये,उनके बीच में रहकर दम नहीं तोड़ सके.शनिवार 3 जुलाई की रात में फादर उत्तेजित और बेचैन हो गये थे.उनकी हालात गंभीर होते देख चिकित्सकों ने रविवार 4 जुलाई की सुबह वेंटिलेटर पर रख दिये.सोमवार 5 जुलाई को दम तोड़ दिये.होली फैमिली हॉस्पिटल,बांड्रा के चिकित्सकों ने पूरी शक्ति लगा दी थी.आखिर विधि के विधान के सामने नस्तमस्तक हो गये.वे 84 साल के थे.
तमिलनाडू के रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी करीब पांच दशक से झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों में काम कर रहे हैं. विशेष रूप से वे विस्थापन, कंपनियों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों की लूट रोकने, विचाराधीन कैदियों को रिहा कराने और पेसा कानून लागू करवाने आदि के मुद्दे पर काम करते रहे हैं. यह भी उल्लेखनीय है कि जुलाई, 2018 में झारखंड की खूंटी पुलिस द्वारा पत्थलगड़ी आंदोलन मामले में फादर स्टेन स्वामी और कांग्रेस के पूर्व विधायक थियोडोर किड़ो सहित 20 अन्य लोगों पर राजद्रोह का केस दर्ज किया गया था, जिसे हेमंत सोरेन ने सीएम बनने के बाद वापस ले लिया था.
हालांकि भीमा-कोरेगांव मामले में 12 जुलाई 2019 को महाराष्ट्र पुलिस की आठ सदस्यीय टीम ने स्टेन स्वामी के घर पर छापा मारा था.लगभग चार घंटों तक उनके कमरे की छानबीन की गई थी। इसके बाद उनके कंप्यूटर के हार्ड डिस्क और इंटरनेट मॉडेम आदि को जब्त कर लिया गया था। इसके पहले 28 अगस्त, 2018 को भी महाराष्ट्र पुलिस ने स्टेन स्वामी के कमरे की तलाशी ली थी.
मालूम हो कि 8 अक्टूबर को झारखंड के प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी को भीमा कोरेगांव के मामले में रांची के नामकुम स्थित ‘बगाईचा’ से गिरफ्तार कर लिया गया था और अगले ही दिन मुंबई के एनआईए के विशेष अदालत में पेश कर मुंबई के तलोजा जेल भेज दिया गया था.
सोशल एक्टिविस्ट फादर स्टेन स्वामी का जाने का मतलब
मानवाधिकार का काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं को जोर का धक्का लगा.आखिरकार भारत सरकार और जाँच संस्था NIA क्या बला बन गया है, जो इन बुज़ुर्ग व पीड़ाओं को झेलने वालों पर रहम नहीं खाती है.यहां तक कोविड-19 के आलोक में माननीय सुप्रीम कोर्ट भी अधिक उम्र वालों को पेरोल पर छोड़ने की व्यवस्था दी.उसे भी पालन नहीं करती थी.
जो डर था,वह फादर स्टेन स्वामी के साथ हुआ. आखिरकार मनगढ़ंत विवाद में फादर को घसीटा गया. उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा था कि इस विवाद में शामिल नहीं है.फिर भी 84 वर्षीय बुर्जुग फादर पर रहम नहीं किया गया.भारत के सीबीसीआई के अध्यक्ष कार्डिनल ओसवार्ल्ड ग्रेसियस और अन्य बिशप ने पी.एम. नरेंद्र मोदी से मुलाकात के क्रम में फादर स्टेन के बारे में पैरवी करने पर पी.एम. मोदी ने कहा कि कानून का मसला है.कानून को काम करने दें यह कर पल्ला झार दिये.सरकार उनको इस दयनीय स्थिति तक पहुँचाने के लिए पूरी तरह ज़िम्मेवार है.
फादर के जिद्द पर होली फैमिली अस्पताल में भर्ती कराया गया था.कई बीमारियों से घिरे फादर कोरोना के शिकार हो गये.4 जुलाई को स्टेन स्वामी को वेंटिलेटर पर शिफ्ट किये जाने के बाद झारखंड जनाधिकार महासभा ने उनकी अविलंब रिहाई की मांग की थी.संगठन ने कहा था कि भारत सरकार और जाँच संस्था NIA इस बुज़ुर्ग की पीड़ाओं के लिए और उनको इस दयनीय स्थिति तक पहुँचाने के लिए पूरी तरह ज़िम्मेवार है.सम्बंधित NIA अदालत ने भी इनके मेडिकल और नियमित बेल याचनाओं पर कार्यवाही न कर इस यातना में अपनी भागीदारी बनायी है. महाराष्ट्र सरकार के मदद के आश्वासन भी आश्वासन ही रहे, कोई ठोस मदद नहीं मिली.
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