यूएपीए कानून की जंग जारी रहे

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यूएपीए कानून की जंग जारी रहे

आलोक कुमार 
रांची.अनुसूचित जनजाति के बीच क्रियाशील फादर स्टेन स्वामी की संस्थागत मौत यूएपीए के कारण हो जाती है.देश की भारतीय संसद ने 1967 में गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) को बनाया था.हालांकि, 2004, 2008, 2012 और 2019 में इस कानून में बदलाव किए गए.लेकिन 2019 के संशोधन में इसमें कठोर प्रावधान जोड़े गए थे. 2019 के संशोधनों में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि इस कानून के तहत सरकार किसी संगठन या संस्थाओं को ही नहीं बल्कि किसी व्यक्ति विशेष को भी आतंकी घोषित कर सकती है. 

इस कानून को लेकर विपक्षी दल और एक्टिविस्ट हमेशा विरोध में रहे हैं.उनका डर है कि सरकार इस कानून का इस्तेमाल उन्हें चुप कराने के लिए कर सकती है.एक्टिविस्ट समूहों के लोग कहते हैं कि सरकार इस कानून का नाजायज और मनमाना इस्तेमाल करते हुए संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत मिले अधिकारों का हनन कर सकती है.उन्हें चिंता है कि इसका इस्तेमाल असली आतंकियों के साथ-साथ सरकार की नीतियों के विरोधी लेखकों, अभियुक्तों के वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर भी हो सकता है.  

इस काला कानून बन जाने के बाद से ही यह सवालों के कठघरे में है.विपक्षी दल और कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ता इसे लोकतंत्र विरोधी बताते हैं तो इसके समर्थक इसे आतंकवाद के खिलाफ, देश की एकजुटता और अखंडता को मजबूती देने वाला बताते हैं. 2019 के संशोधनों में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि इस कानून के तहत सरकार किसी संगठन या संस्थाओं को ही नहीं बल्कि किसी व्यक्ति विशेष को भी आतंकी घोषित कर सकती है. 


इसी यूएपीए के शिकार तमिलनाडु के रहने वाले जेसुइट फादर स्टेन स्वामी को हो गये.उनको महाराष्ट्र में पुणे के नजदीक भीमा कोरेगांव में यलगार परिषद का कार्यक्रम में भड़काऊ भाषण देने पर हिंसा भड़की थी में फंसा दिया गया. इस पूरे मामले में कुल 158 केस दर्ज हुए थे, जिसमें से दलितों पर 63 और सवर्णों पर 90 मामले दर्ज हुए थे इसके अलावा 9 अन्य मामले भी दर्ज किए गए थे.इतने से संतुष्ट नहीं हुए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचने में संलिप्तता का आरोप लगा दिया गया.  

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को यूएपीए कानून के सेक्शन 43डी (2) के तहत पुलिस हिरासत के समय को दोगुना तक बढ़ाने की शक्ति मिल सकती है.इसके तहत 30 दिन की पुलिस हिरासत मिल सकती है.वहीं, न्यायिक हिरासत 90 दिन तक की हो सकती है, जबकि अन्य कानून के तहत हिरासत केवल 60 दिन की होती है.इतना ही नहीं यूएपीए कानून के तहत केस दर्ज होने पर अग्रिम जमानत नहीं मिलती है. 

पत्रकार दिबांग कहते हैं कि उसे तो पार्किंसन था, पानी पीने के लिए स्ट्रॉ मांगी तो मिली तारीख पर तारीख.कोरोना हुआ, न खुद चल पाते और न खा पाते.आदिवासियों-वंचितों को न्याय और अधिकार के लिए ज़िन्दगी खपाई पर भीमा कोरोगांव मामले में स्टेन स्वामी, 84, को जमानत नहीं मिली.कोई आरोप साबित नहीं हुआ.यह तो 
क्रूरता है. यह न्याय है क्या? 

एक-एक कर मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील और लेखकों को देश के विभिन्न हिस्सों में गिरफ़्तारी की गयी. इसकी कड़ी निंदा की गयी. फ़ादर स्टेन स्वामी पिछले तीन दसकों से ग़रीब, मजलूम, आदिवासी, महिलाओं के लिए ज़मीनी स्तर पर काम करते आ रहे थे. ख़ास कर उन्होंने आदिवासियों के जल, जंगल ज़मीन की लड़ाई में हमेशा एक अभिभावक की भूमिका निभाई है.जेल में बंद बेगुनाह लोगों को जेल से मुक्त होने में सहायता की.मनरेगा में काम व रोजगार दिलवाने की पहल किया.पेसा कानून के अनुसार आदिवासी समुदाय अपनी परंपरा तथा रीतियों के अनुसार अपने सामुदायिक संपदाओं एवं विवाद निपटाने में सक्षम है. इस कानून के अन्तर्गत प्रत्येक गांव की ग्राम सभा का महत्वपूर्ण स्थान है.भू अर्जन तथा विस्थापितों के पुनर्वास के समय में ग्राम सभा की सहमति लेना अनिवार्य माना गया है.लागू करने की मांग की थी. 

समझा जाता है कि भाजपा सरकार अपनी नाकामियों से घबरा गई है.और जनता का ध्यान बांटने के लिए आतंकवाद की झूठी कहानी रच कर जनता के हितैषियों को डरा-धमका रही है. इस संदर्भ में फादर स्टेन लुर्द स्वामी का कहना था कि मैं निर्दोष हूं.अंडर - ट्रायल कैदियों को मुक्त करने की कोशिश कर रहा हूं.वहीं सरकार मुझे एक अंडर-ट्रायल कैदी बनाने की कोशिश कर रही है! सामाजिक कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी का कहना था कि आज मेरे लिए महत्वपूर्ण दिन है. मेरे खिलाफ मामला रद्द करने करने की याचिका बॉम्बे हाई कोर्ट में सुनाई जाएगी.भले ही न्यूनतम सत्य स्वीकार किया जाएगा.यदि नहीं तो हमें सच्चाई स्थापित होने तक जेल में काफी समय तक बिताना होगा. 

जानकार लोगों का कहना है कि इस यूएपीए काला कानून पर लगाम लगाने की जरूरत है.सरकार के विरूद्ध आवाज उठाने वालों का बुरा हाल कर दिया जाएगा.जिस प्रकार अगर किसी आरटीआई कार्यकर्ता ने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांग भी ली तो उसकी खैर नहीं नहीं होती है.बिहार में सुशासन राज में सरकारी सिस्टम में फैली गड़बड़ी की अगर किसी ने जानकारी मांगी तो उल्टे उसे ही फंसाने की साजिश रची जाती है.इतना ही नहीं आरटीआई कार्यकर्ता की जान खतरे में पड़ जाती है. नीतीश राज में पिछले एक दशक में 17 से अधिक आरटीआई कार्यकर्ता अपनी जान गवां चुके हैं और न जाने कितने लोगों पर झुठे मुकदमें और जानलेवा हमले हुए.सुशासन की पुलिस ने किसी भी मामले में आरोपियों की स्पीडी ट्रायल चला सजा नहीं दिला सकी और न ही झुठे मुकदमे लिखवाने वाले लोगों पर कोई कार्रवाई कर सकी.अब एक बार फिर से बिहार सरकार ने सभी डीएम-एसपी को एडवाइजरी जारी कर आरटीआई कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित करने वालों पर कार्रवाई करने को कहा है. 

तो केंद्र और राज्य सरकार से नागरिकों को अर्बन नक्सलाइट बचाने का समय आ गया है.जो अभी तलोजा जेल में बंद है उसको बेल देकर जल्द से जल्द आरोप मुक्त करने की कार्रवाई हो.ऐसा न हो कि मानवाधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी की तरह शहीद हो जाए. 

विधि का विडम्बना रहा कि बॉम्बे हाईकोर्ट में 5 जुलाई को फादर स्टेन स्वामी की जमानत याचिका पर सुनवाई होनी थी. इसी दौरान उनके वकील ने अदालत को उनकी मौत की जानकारी दी. 

इसके साथ ही 268 दिनों से कानूनी दांवपेंच से 84 वर्षीय स्वामी मुक्त हो गये.उनके निधन के बाद अब उनका पार्थिव शरीर के साथ जमानत की अर्जी भी दफन कर दिया.पर काला यूएपीए कानून की जंग जारी रहे.H 

हां,फादर स्टेन स्वामी का जिस अस्पताल में उपचार चल रहा था, उसके एक अधिकारी ने बंबई उच्च न्यायालय को सोमवार को इस बारे में बताया.उपनगरीय बांद्रा में होली फैमिली अस्पताल के निदेशक डॉ इयान डिसूजा ने उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति एस एस शिंदे और न्यायमूर्ति एन जे जमादार की पीठ को बताया कि 84 वर्षीय स्वामी की सोमवार अपराह्न डेढ़ बजे मृत्यु हो गई. 

डिसूजा ने अदालत को बताया कि रविवार तड़के स्वामी को दिल का दौरा पड़ा, जिसके बाद उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया. अधिकारी ने अदालत को बताया, ‘‘उनकी (स्वामी) हालत ठीक नहीं हो पायी और आज दोपहर उनका निधन हो गया.’’उन्होंने बताया कि फेफड़े में संक्रमण, पार्किंसंस रोग और कोविड-19 की जटिलताओं के कारण स्वामी की मौत हो गयी. 


उनका जन्म तमिलनाडु में 26 अप्रैल 1937 को हुआ था.20 वर्ष में 
जमशेदपुर जेसुइट प्रोविंश में 30 मई 1957 को प्रवेश किये.33 वर्ष में उनका पुरोहिताभिषेक 14 अप्रैल 1970 को हुआ.44 वर्ष में जेसुइट का अंतिम व्रत 22 अप्रैल 1981 को लिये. 84 वर्ष मे 5 जुलाई 2021 को निधन हो गया.वे 1971-1974 सोशल वर्क, जमशेदपुर और चाईबासा में किये . 1975-1991 आईएसआई, बैंगलोर में डायरेक्टर पद पर कार्य किये . 1993-95 सोशल वर्क,टीआरटीसी(संत जेवियर ) में किये.1996-2001जोहार ,चाईबासा में कार्य करने के बाद 2002-2020 बगइचा,रांची में जेल जाने से पूर्व तक कार्य किये. 

फादर स्टेन स्वामी 60 के दशक में तमिलनाडु के त्रिचि से झारखंड पादरी बनने आए थे. थियोलॉजी (धार्मिक शिक्षा) पूरी करने के बाद वह पुरोहित बने, लेकिन ईश्वर की सेवा करने की बजाय उन्होंने आदिवासियों और वंचितों के साथ रहना चुना. वे कई वर्षों से राज्य के आदिवासी और अन्य वंचित समूहों के लिए काम करते रहे. उन्होंने विशेष रूप से विस्थापन, संसाधनों की कंपनियों के ओर से लूट, विचाराधीन कैदियों के साथ-साथ कानून पर काम किया. 

 

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