विजयवर्गीय की औकात भी तो पूछ लेते !

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विजयवर्गीय की औकात भी तो पूछ लेते !

संजय कुमार सिंह 

नेता पत्रकारों से औकात पूछे और खबर भी न छपे तो नेताओं का दिमाग खराब होगा ही. भाजपा महासचिव के विधायक पुत्र ने इंदौर नगर निगम के अधिकारी की बल्ले से पिटाई की और इस बारे में जब न्यूज़24 ने कैलाश विजयवर्गीय से बात की तो उन्हीने आपा खो दिया. एंकर ने कैलाश विजयवर्गीय से सवाल पूछा तो कैलाश विजयवर्गीय ने कहा - तुम जज नहीं हो, वो विधायक है, तुम्हारी हैसियत क्या है? पिटाई पर मीडिया से बात करते हुए उनके बेटे और विधायक आकाश ने कहा कि ये तो सिर्फ शुरुआत है, हम इस भ्रष्टाचार और गुंडई को खत्म कर देंगे. हमारी कार्रवाई की लाइन - आवेदन, निवेदन और फिर दे दनादन है. मध्य प्रदेश के अखबारों में तो यह खबर ठीक छपी पर राष्ट्रीय अखबारों में कइयों ने इसे अंदर के पन्ने पर लिया और सामान्य सूचना की तरह ही छापा. मैं जो अखबार देखता हूं उनमें किसी में आज पहले पन्ने पर फॉलो अप नहीं है.  

सत्तारूढ़ दल के अनुभवी और बंगाल में सफलता दिलाने की विशेष जिम्मेदारी संभाल रहे महासचिव और उनके बेटे से संबंधित मामला हो तथा आवेदन निवेदन और फिर दे देनादन जैसी स्वीकारोक्ति तो खबर एक दिन में खत्म भी नहीं होनी चाहिए. खासकर तब जब मामले में कुछ खुलासे रह गए हों या दिलचस्प हों. दैनिक भास्कर ने गुरुवार को ही दिल्ली संस्करण में पहले पन्ने पर खबर छापने के साथ अंदर के पन्ने पर सात कॉलम में खबर छापी थी. राजस्थान पत्रिका ने दिल्ली संस्करण में पहले पन्ने पर खबर के साथ तीन फोटो छापी थी. इनके मुताबिक, आकाश ने पहले तो अफसर को पीटा, कपड़े फाड़ दिए फिर धरना देने पहुंच गए. बाद में हाथ जोड़कर माफी मांगी. हालांकि, अदालत ने उनकी जमानत अर्जी खारिज कर दी और 11 जुलाई तक जेल भेज दिया. अदालत ने कहा कि विधायक से ऐसी उम्मीद नहीं थी.

दैनिक भास्कर की खबर के साथ उस जर्जर मकान की फोटो भी थी जिसे आकाश पक्का बताकर गिराने का विरोध कर रहे थे. अखबार ने लिखा था कि विधायक ने मकान की फोटो निगमायुक्त को भेजकर कार्रवाई नहीं करने का अल्टीमेटम दिया था. नई दुनिया की एक खबर के मुताबिक, जिस मकान को तोड़ने पर विवाद हुआ, वह मकान निगम ने 2018 में ही जर्जर घोषित कर दिया था. निगम की जांच में यह मकान रहने के लिए अनुपयुक्त घोषित किया जा चुका था और निगम ने मकान तोड़ने के लिए अप्रैल 2018 में ही नोटिस जारी किया था. तब प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और निगम में अभी भी भाजपा बहुमत में है. निगम ने 17 सितंबर 2018 और 10 जून 2019 को उक्त मकान की स्ट्रक्चरल रिपोर्ट ली थी. इसी आधार पर इस जर्जर और बेहद खतरनाक मकान को जनहित में गिराने के लिए 27 मई 2019 और 14 जून 2019 को भी नोटिस जारी किए गए थे. 

निगम रिपोर्ट के मुताबिक अनुमान है कि यह विवादित भवन 1930 के आस-पास बना होगा. दो हजार वर्गफीट पर बने इस मकान में भूतल के अलावा पहली मंजल भी है. और चूने की जुड़ाई से बना हुआ है. इसका प्लास्टर कई जगह से उखड़ रहा है. लकड़ी और कंक्रीट से बनी छत पर जगह-जगह दरार है. पाट भी सड़ गए हैं. यह कभी भी गिर सकता है. पहली मंजिल की दीवारों में चूने की जुड़ाई की गई है. जगह-जगह से प्लास्टर गिर रहा है. इस मंजिल में भी लकड़ी के पाट सड़ने लगे हैं. इसके बावजूद मकान मालिक या किराएदार ने इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की. यह मकान में लोग किराए पर भी रहते हैं. ऐसी हालत में मुझे कोई कारण नजर नहीं आता है कि एक जर्जर मकान को तोड़ने का विरोध किया जाए. इसमें राजनीति हो सकती है, मुमकिन है दूसरी जर्जर इमारतों को छोड़कर इसे पहले गिराने के लिए चुना गया हो. 

तथ्य यह है कि पर्याप्त और उपयुक्त कारण के बावजूद जनहित में की जा रही सरकारी कार्रवाई रोकने का दावा करने वाला विधायक अधिकारी को बल्ले से मारे और उसका पिता जो उसी दल का महासचिव है, पूछने पर कहे कि तुम्हारी औकात क्या है तो पत्रकारों का काम है कि उनके कारनामे जनता की जानकारी में लाए जाएं. स्थानीय अखबारों की यह सूचना विरोधस्वरूप राष्ट्रीय अखबारों में भी प्रमुखता से छपनी चाहिए थी. पत्रकार अपने संस्थान और बिरादरी से अलग नहीं होता है. और दुनिया जानती है कि एकजुटता में ही ताकत है. स्वार्थवश राजनीतिक दल की सेवा करना एक बात है और उन्हें सर पर चढ़ा लेना बिल्कुल अलग. सोचना मीडिया संस्थानों को है कि वे स्थिति सुधारने के लिए कुछ करना चाहते हैं कि नहीं और क्या कैसे करेंगे. मुझे नहीं लगता कि इस मामले में मीडिया ने कैलाश विजयवर्गीय की आवश्यक सेवा की है. उनकी पार्टी से तो कोई उम्मीद ही नहीं है.

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